आईएसडी नेटवर्क। सातवें वीकेंड में भी पुष्पा: द राइज़ के लिए दर्शकों का प्रेम कम होता नज़र नहीं आ रहा है। ओटीटी पर उपलब्ध होने के बावजूद गणतंत्र दिवस के अवकाश पर इस फिल्म ने दो करोड़ का कलेक्शन किया। ओटीटी पर होने के बाद भी दर्शक इसे बड़े स्क्रीन पर देखना चाहते हैं। इस सप्ताह हिन्दी पट्टी में पुष्पा ने सौ करोड़ का कलेक्शन पार कर दिया है। निश्चित ही हिन्दी फिल्म निर्माताओं के लिए अब ये कंटेंट युद्ध बहुत विकट होता जा रहा है।
पुष्पा की विश्वव्यापी सफलता ने बॉलीवुड को बड़ी चुनौती दे दी है। बाहुबली के बाद पुष्पा ही एक ऐसी फिल्म है, जो प्रदर्शन के सातवें सप्ताह तक न केवल टिकी हुई है अपितु निर्माता को तगड़ा आर्थिक लाभ भी दे रही है। ऐसा बहुत कम देखने में आया है कि एक बार ओटीटी पर आ जाने के बाद कोई फिल्म थियेटर में भारी मात्रा में दर्शक खींच रही हो। पुष्पा पिछले वर्ष के अंत में 17 दिसंबर को प्रदर्शित हुई थी।
पहले दिन हिन्दी पट्टी में इसने तीन करोड़ का कलेक्शन किया था किन्तु तब ट्रेड पंडितों को अनुमान नहीं था कि ये फिल्म हिन्दी बॉक्स ऑफिस पर सौ करोड़ी बनने जा रही है। ‘बाहुबली द बिगनिंग’ के कीर्तिमान को अल्लू अर्जुन तोड़ सकते हैं। बाहुबली के पहले भाग ने हिन्दी पट्टी में 117 करोड़ का कलेक्शन किया था। यदि पुष्पा कुछ दिन और थियेटर में टिकी रह जाती है तो वह बाहुबली के कलेक्शन को पार कर सकती है।
कुछ मीडिया संस्थान लिख रहे हैं कि पुष्पा ने बाहुबली का कीर्तिमान तोड़ दिया है, जो कि सही नहीं है। तुलना छठवे सप्ताह के कलेक्शन पर की जा रही है। छठवे सप्ताह में पुष्पा बाहुबली से कुछ आगे निकलती दिखाई दे रही है लेकिन कुल कलेक्शन के कीर्तिमान को तोड़ने के लिए पुष्पा को अभी प्रतीक्षा करनी होगी। अल्लू अर्जुन का क्रेज इस कदर है कि उनके फिल्माए गए दृश्यों और गीतों पर मीम्स बनाए जा रहे हैं।
सोशल मीडिया पूर्ण रुप से पुष्पा के रंग में रंगता दिख रहा है। उत्तर भारत के क्षेत्रों में पुष्पा के कलेक्शन अब भी बढ़ रहे हैं। देखा जा रहा है कि फिल्म के बढ़ते कलेक्शन को देख मीडिया के एक धड़े ने पुष्पा के विरुद्ध दुष्प्रचार शुरु कर दिया है। अपितु इन सबके बाद भी अल्लू अर्जुन की विजय पताका हिन्दी पट्टी में अनवरत लहरा रही है।
उल्लेखनीय है कि कोई फिल्म ‘कल्ट’ का दर्जा तब पाती है, जब उसकी कथा और काल दर्शकों से जुड़ा हुआ हो। इस मामले में पुष्पा दर्शकों के दिल के पास दिखाई देती है। बाहुबली का काल वर्तमान नहीं था और यही कारण है कि उस पर मिम्स और रील्स पुष्पा के अनुपात में कम बनी है। लाल चंदन के पृष्ठभूमि में बनी इस कहानी के नएपन और भारत के ग्राम्य जीवन के दृश्य भी इसकी सफलता का कारण बन रहे हैं। उल्लेखनीय है कि बहुत वर्षों से ग्राम्य जीवन बॉलीवुड की फिल्मों से अदृश्य सा हो चला है।