राफेल डील पर विपक्ष के बेतुके सवालों तथा प्रशांत भूषण जैसे अनभिज्ञों के कुतर्कों से बेहतर है कि रक्षा मामले के विशेषज्ञों या उसे कवर करने वाले पत्रकारों की राय समझनी चाहिए। राफेल डील पर प्रशांत भूषण जैसे लोग ही हल्ला मचा रहे हैं जिसे रक्षा मामले की तनिक भी जानकारी नहीं है। जबकि राफेल डील पर किसी भी रक्षा विशेषज्ञ की कोई भी नकारात्मक टिप्पणी नहीं आई है। काफी दिनों से रक्षा मामले को कवर करने वाले पत्रकार विष्णु सोम ने राफेल एयरक्राफ्ट से लेकर उसकी डील की सराहना की है। विष्णु सोम एनडीटीवी में डिफेंस एडिटर तथा प्रिंसिपल एंकर है। उन्हों राफेल डील पर लगातार 12 ट्वीट कर उसकी खूबी गिनाई है। अनभिज्ञों की राय पर कोई धारणा बनाने से बेहतर है कि विशेषज्ञों की राय समझी जाए। उन्होंने विपक्षी दलों के चिढ़ाते सवालों के इतर 1.7 बिलियन वाले राफेल सौदे की पड़ताल की है। डिफेंस मामले को कवर करने वाले पत्रकार विष्णु सोम ने राफेल डील को उत्तम बताया है।
मुख्य बिंदु
* हमारे देश में कानून पढ़ने वाले भी धरती से तारे की दूरी नापने के सिद्दांत प्रतिपादि करने का दावा करते हैं
* पहले और अब के राफेल डील के तहत प्रति एयरक्राफ्ट की कीमत की तुलना करना असंभव है, उसके पुर्जे तक की कीमत बताए जा रहे हैं
1/12-In the continued absence of conclusive answers from the govt and the often nonsensical tirade from those opposition, I decided to dig a little further into the Rafale controversy. Here are some details on the E 1.7 billion amount referred to as India Specific Upgrades.
— Vishnu Som (@VishnuNDTV) 13 September 2018
वैसे तो मोदी सरकार पहले से कहती आ रही है कि भारतीय वायु सेना से सलाह मशवरा करने के बाद उनकी सहमति और मांग को देखते हुए ही राफेल डील को आगे बढ़ाया गया है। विष्णु सोम ने अपने दूसरे ट्वीट में पुष्टि की है कि भारतीय वायु सेना के अनुरोध पर ही राफेल डील की गई है तथा आईएएफ राफेल एयरक्राफ्ट को फ्रांस की तुलना में और अधिक सक्षम बनाने को कहा गया है। वर्तमान राफेल डील यूपीए द्वारा की गई डील से कई मायने में बहुत ही उम्दा है। किसी को विश्वास हो या नहीं हो लेकिन यह सच है कि वर्तमान राफेल डील के तहत जो 14 विशेष बदलाव हुए हैं वे पहले की यूपीए डील से गायब थे। ये जो विशेष 14 बदलाव हुए हैं उससे राफेल एयरक्राफ्ट और ही उम्दा बन गया है। ये विशेष बदलाव किसी की कल्पना की मनगढ़ंत कहानी नहीं है बल्कि वे उपकरण हैं जो राफेल एयरक्राफ्ट को और भी ताकतवर बनाते हैं। जबकि यूपीए द्वारा की गई डील में इनमें से एक भी उपकरण एयरक्राफ्ट में नहीं लगने वाला था। अब बताइये ऐसा एयरक्राफ्ट भारतीय वायु सेना के लिए किस काम का होता?
जिस राफेल डील को लेकर कांग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी बवाल मचाए हुए हैं अगर उनके हिसाब से डील पर आगे बढ़ा जाता तो कभी यह डील हो नहीं पाता। सोम ने अपने ट्वीट में बताया है कि निश्चित रूप से राफेल डील की शुरुआत यूपीए सरकार ने की थी। लेकिन उसकी कीमत तथा लागत को लेकर यूपीए सरकार के दौरान हिंदुस्तान एरोनॉनिटक्स लिमिटेड तथा फ्रांसिसी कंपनी डसॉल्ट के बीच बातचीत शुरू हुई थी। खास बात है कि शुरुआती बातचीत तो दोनों के बीच हुई लेकिन निर्णायक कीमत और लागत को लेकर उन दोनों के बीच कभी बातचीत आगे नहीं बढ़ पाई।
भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो पढ़ाई तो की हो कानून की लेकिन पृथ्वी से तारे नापने के सिद्धांत प्रतिपादित करने का दावा करते हैं। मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए वे राफेल डील के हर पूर्जे की कीमत बताकर घोटाले का दावा करते हैं, जबकि विष्णु सोम का कहना है कि यूपीए सरकार के दौरान हुए डील और वर्तमान सरकार के साथ हुए डील के तहत प्रति एयरक्राफ्ट की कीमत की तुलना करना असंभव है।
जहां तक विमान के अपग्रेडेशन की बात है तो पहले से काफी बेहतर है। इस डील के तहत विमान में बैंड जैमर, टॉवड डेको सिस्टम, अपग्रेड इंजन, रडार में अतिरिक्त मोड और फ्रंट सेक्टर ऑप्ट्रोनिक्स में हाई रिज़ॉल्यूशन के अलावा, क नए उपकरण लगाए गए हैं। इसके अलावा संरचनात्मक दृष्टि से भी यह विमान ज्यादा बेहतर है। यहां तक कि अभी फ्रांस जिस राफेल प्लेन का उपयोग कर रहा है उससे भी बेहतर है। इसमें नई इजरायल उपग्रह संचार प्रणाली समायोजित की जा सकती है। जबकि यूपीए द्वारा की गई डील के तहत ये सब अपग्रेडेशन नदारद थे।
वर्तमान सरकार द्वारा राफेल डील के तहत भारतीय वायुसेना को जो राफेल लड़ाकू विमान मिलने जा रहा है उसमें यह मैटोर तथा स्काल्प मिसाइल ले जाने की क्षमता है। जो पिछले डील के तहत नहीं मिलने वाला था। इस लड़ाकू विमान में लक्ष्य साधने से लेकर विशेष हथियार रखने तक के लिए विशेष उपकरण लगाने की व्यवस्था है। जो इसे अन्य लड़ाकू विमान से अलग और विशेष बनाता है।
इस विमान में भारत की मांग के अनुरूप विशेष बदलाव भी किया गया है मसलन इस विमान में भारत की मांग पर “मॉड्यूलर डेटा प्रोसेसिंग यूनिट” (एमडीपीयू) भी लगाई गई है जो नई पीढ़ी के मिशन का एक नया कंप्यूटर है।
राफेल डील को विशेषज्ञों द्वारा तकनीकी रूप से इतना बेहतर बताने के बाद भी कुछ अनभिज्ञ हैं कि इसमें खामियां निकालने से बाज नहीं आते। वे न केवल लागत को लेकर बल्कि विमान में खामियां निकाल कर मोदी सरकार की आलोचना करने में जुटे हैं।
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URL: Rafael Deal opponents know about its reputation, then surround the Modi government-1
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