ईवीएम हैकथॉन डिजैस्टर में फंसे राहुल गांधी को उबारने के लिए ही कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा को मैदान में उतारा है। अपनी डूबती नैया को आखिरी सहारा के रूप में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी की बेटी और राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को आधिकारिक रूप से राजनीति में प्रवेश करा दिया गया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव बनाने के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया है। प्रियंका गांधी अपना पदभार पहली फरवरी को संभालेगी। ऐसा नहीं कि नेहरू- गांधी परिवार इस प्रकार का पत्ता पहली बार फेंका है। इस परिवार का इतिहास रहा है कि जब कभी विरोध बढ़ता है या लोकप्रियता घटती है या अपने दूसरे सदस्य को आगे कर दिया जाता है। कांग्रेस के इस कदम के कई कारण माने जाते हैं जो इस प्रकार हैं।
1. प्रियंका गांधी को अचानक पार्टी का महासचिव बनाया जाना यह दिखाता है कि कांग्रेस के नेता अपने अध्यक्ष राहुल गांधी को विफल मान चुके हैं। राहुल ने पार्टी के लिए जो भी कदम उठाए हैं उसका परिणाम उल्टा आया है। पार्टी नेता मान चुके हैं कि अब और राहुल गांधी के हाथ में पार्टी का पतवार रहा तो नाव का डूबना तय ही समझो। इसलिए पार्टी ने प्रियंका के रूप में अपना आखिरी पत्ता चल दिया है।
2. जवाहर लाल नेहरू ने भी अपने खिलाफ बढ़ते विरोध और घटती लोकप्रियता को रोकने के लिए इंदिरा गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाया था। उन्होंने अपने बचाव में इंदिरा गांधी को आगे कर देश की राजनीति पर पारिवारिक वर्चस्व कायम किया था। लेकिन उसका दूरगामी परिणाम सामने आया। इंदिरा गांधी के पार्टी में आने के बाद ही कांग्रेस पार्टी बंट गई थी।
3. इंदिरा गांधी ने भी उस समय संजय गांधी को राजनीति में लेकर आई थी जब उनका राजनीतिक सूर्य गर्दिश में था। राजनीति में जहां इंदिरा गांधी की लोकप्रियता घटने लगी थी वहीं राजनीतिक अपराध का शिकंजा भी कसने लगा था। क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट में उनके चुनाव की वैधता का केस चल रहा था। उसका फैसला सभी को पता था। तभी उन्होंने अपने बेटे संजय गांधी को राजनीति में लाकर देश में इमरजेंसी लगा दी थी।
4. इंदिरा गांधी की मौत के बाद जब राजीव गांधी को 1984 में बलात पार्टी में लाकर प्रधानमंत्री बनया गया था तब उनके साथ सोनिया गांधी को लगा दिया, ताकि विदेशी बहू होने के रुतबा का लाभ उन्हें मिल सके। लेकिन बाद में यह पत्ता भी उल्टा पड़ा था, क्योंकि जब कांग्रेस से वीपी सिंह निकाले गए थे तब उन्होंने सोनिया गांधी का नाम लेकर राजीव गांधी पर विदेशी दलालों के साथ संपर्क होने का आरोप लगाकर पूरी बाजी पलट दी थी। और 1989 में राजीव गांधी को हार का मुंह देखना पड़ा था।
5. साल 2004 में जब सोनिया गांधी के सहारे मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने सत्ता संभाली, उस समय भी उन्होंने किसी दूसरे कांग्रेसी नेता पर भरोसा करने की बजाए अपने बेटे राहुल गांधी पर भरोसा किया। उन्होंने राजनीति की एबीसी नहीं जानने वाले राहुल गांधी को आगे कर दिया। उनके इस फैसले का परिणाम क्या निकला आज सबके सामने है। इतने दिनों तक राजनीति में होने के बाद भी राहुल गांधी को कोई गंभीर नेता मानने को तैयार नहीं है। राहुल गांधी के आने के बाद ही सबसे ज्यादा दिनों तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी के सांसदों की संख्या लोकसभा घटकर 44 पर आ टिकी।
6 . अब जब राहुल गांधी के बारे में सब जान चुके हैं कि इनसे पार्टी का भला नहीं होने वाला है, तभी तुरुप के इक्का के रूप में प्रियंका गांधी को पार्टी में शामिल किया गया है। भले ही आधिकारिक रूप से प्रियंका को अभी पार्टी में शामिल करने की घोषणा की गई हो जबकि परोक्ष रूप से वह पार्टी का काम बहुत पहले से करती रही हैं। फिर भी पिछले चुनाव में वह मोदी को नहीं रोक पाई थी।
7. पिछले चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री पद के दावेदार रहे नरेंद्र मोदी को काफी अपमानित भी किया था। उन्होंने मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि सरकार 56 इंच के सीना से नहीं बल्कि बड़े दिल से चलती है। देश आक्रामक ताकत से नहीं बल्कि नैतिक बल से चलता है। इसके साथ ही उन्होंने अपने पिता के बारे में बोलने पर मोदी को सबक सिखाने की बात कही थी। लेकिन प्रियंका गांधी के मोदी के खिलाफ दिए बयान का न तो यूपी में न ही देश की जनता पर कोई असर पड़ा था। जबकि देश और बनारस की जनता ने मोदी को जिता कर प्रियंका गांधी को माकूल जवाब दिया था।
8 अमेठी संसदीय सीट पर राहुल गांधी के हारने के बादल मंडराने लगे हैं। गौर हो कि पिछले चुनाव में भाजपा नेता स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को जबरदस्त टक्कर दी थी। हालांकि स्मृति हार गई थी, लेकिन उन्होंने अमेठी को अपने से कभी अलग नहीं किया। इस पांच साल के दौरान उन्होंने इतना काम किया है कि राहुल गांधी के यहां से जीतने पर संदेह गहराने लगा है।
9. प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव बनाने के साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई है। कांग्रेस को लगता है कि प्रियंका गांधी में योगी और मोदी को टक्कर देने की क्षमता है। वह ऐसा कर पाती है या नहीं यह तो समय बताएगा, लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पाया तो कांग्रेस एक बार फिर कोई बहाना ढूंढ ही लेगी क्योंकि कांग्रेसियों को आखिर रहना तो गांधी परिवार की छांव में ही है।
Interesting thing about #PriyankaGandhi entry in active politics is that as general secretary in charge of UP East she is taking on PM Modi on his turf, Varanasi.
— barkha dutt (@BDUTT) January 23, 2019
10. प्रियंका गांधी के आधिकारिक रूप से पार्टी में आने का असर क्या होगा यह तो समय बताएगा लेकिन प्रियंका के महासचिव बनाने की घोषणा के साथ ही बरखा दत्त और सागरिका घोष जैसी लुटियंस पत्रकारों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई है। ये सभी गिरते पड़ते अभी से कांग्रेस को जिताने में जुट गए हैं।
Big move by @INCIndia : #PriyankaGandhi officially enters politics. She's always had big support among local cong workers in UP who relate to her more than they do with @RahulGandhi https://t.co/2Whpx2P2eM
— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) January 23, 2019
साथ ही प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समकक्ष खड़ा कर दिया है। सामने अंधेरा देख ये लोग ये भी नहीं समझने को तैयार हैं कि जहां मोदी के पास 13 सालों के मुख्यमंत्री होने और पांच साल प्रधानमंत्री होने का अनुभव है वहीं प्रियंका गांधी का अभी तक का परिचय जमीन घोटाले के आरोपी रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी तथा गांधी परिवार की बेटी तक सीमित है।
URL : rahul gandhi appointed priyanka gandhi as jeneral secretary in congress !
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