राफेल डील को लेकर जब पहली बार राहुल गांधी ने संसद में मोदी सरकार पर आरोप लगाया था और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने जवाब दिया था तभी देश की जनता समझ गई थी राहुल गांधी का आरोप बेबुनियाद है। फिर भी राहुल गांधी ने राफेल डील पर अपने निराधार आरोप को चुनावी मुद्दा बनाने का फैसला कर लिया है। अब जब बुधवार को राहुल गांधी ने फिर इस मुद्दे को संसद में उठाया तो कांग्रेस पार्टी की हकीकत सामने आ गई। भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने संसद में तथ्य के आधार पर खुलासा कर दिया कि आखिर राहुल गांधी किस की लड़ाई लड़ रहे है? उन्होंने बताया कि राहुल गांधी राफेल डील की नहीं बल्कि अभी तक के अपने रक्षा सौदा के दलालों की लड़ाई लड़ रहे हैं। संसद में निशिकांत दुबे ने स्पष्ट कहा कि कांग्रेस को इस डील में कमीशन नहीं मिलने की वजह से ही राहुल गांधी इस डील को बदनाम कर इसे निरस्त करवाना चाहते हैं ताकि दुनिया की दूसरी कंपनी के साथ उनके एजेंटों संजय भंडारी, सुमित चड्ढा, सुधीर चौधरी आदि के माध्यम से समझौता हो और उन्हें कमीशन मिले। मालूम हो कि संजय भंडारी वही शख्स हैं जिसके खिलाफ सीबीआई से लेकर ईडी तक छापे मार चुकी है। यहां तक उस पर डिफेंस फाइल चुराने का भी संदेह जताया जा चुका है।
यह तो सर्वविदित है कि कांग्रेस के शासनकाल में जितनी भी डिफेंस डील हुई है वे सब के सब एजेंटों के माध्यम से हुआ है, वह चाहे अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर खरीद डील विदेशी एजेंट क्रिश्चियन मिशेल के माध्यम से हुआ हो या फिर संजय भंडारी और सुधीर चौधरी जैसे देसी एजेंटे के माध्यम से हो। दुबे ने कहा कि दुनिया में डसॉल्ट के राफेल के अलावा एययरबस विथ यूरो फाइटर , स्वीडन का साव, ग्रीपेन, यूएस बोइंग का एफए-18, सुपर ऑर्नेक्स तथा रसिया का मिग-35 जैसी पांच छह कंपनिया हैं जो राफेल जैसे जहाज का निर्माण करती है। उन्होंने कहा कि राफेल डील कांग्रेस इसलिए नहीं कर पाई क्योंकि उसमें उसे कमीशन नहीं मिला था। इसलिए वह इन पांच छह कंपनियों खासकर एयरबस विथ यूरोफाइटर से डील करने के पक्ष में थी ताकि कांग्रेस और राहुल गांधी को सुधीर चौधरी और संजय भंडारी के माध्यम से कमीशन मिल सके।
#RafalePolitics #राफ़ेल मुद्दे को राहुल गांधी चुनाव तक जिंदा रखेंगे क्योंकि चुनाव "परसेप्शन" पर लड़े और जीते जाते हैं।
मीडिया में भी कुछ लोगों की इस मुद्दे में खास दिलचस्पी है, जानते हैं क्यों ?
राफेल की प्रतिद्वंदी कंपनी है यूरो फाइटर।और कई पत्रकार इस कंपनी के पे-रोल पर हैं।
— Ashok Shrivastav (@AshokShrivasta6) January 5, 2019
मालूम हो कि मीडिया में भी कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी इस मुद्दे में खास दिलचस्पी है, क्योंकि राफेल की प्रतिद्वंद्वी कंपनी यूरो फाइटर है और कई पत्रकार इस कंपनी के पे-रोल पर हैं।
एक बड़ी महिला संपादक के पति #राफ़ेल की प्रतिद्वंद्वी कंपनी यूरो फाइटर के बांग्लादेश प्रतिनिधि हैं। और अंग्रेजी के एक बड़े डिफेंस पत्रकार भारत में यूरो फाइटर के लॉबिस्ट हैं। ये पत्रकार कुछ समय तक डीडी न्यूज़ में भी काम कर चुके हैं।#Rafale #RafalePolitics
— Ashok Shrivastav (@AshokShrivasta6) January 5, 2019
मालूम हो कि सुधीर चौधर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथा के रिश्तेदार हैं और संजय भंडारी का रिश्ता राहुल गांधी के बहनोई और सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा से है। उन्होंने यह भी खुलासा किया है कि राबर्ट वाड्रा का इंग्लैंड में जो भी बेनामी संपत्ति है उसका मालिकाना हक भंडारी के पास ही है।
दुबे ने बताया कि किस प्रकार 2012 में राफेल डील के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट के लिए संजय भंडारी ने अपनी कंपनी ओआईएस के माध्यम से प्रयास किया था। संयोग से भंडारी को ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट नहीं मिल पाया। अगर उसे कॉन्ट्रैक्ट मिल गया होता तो कांग्रेस वह डील पक्की कर चुकी होती। राफेल डील से कांग्रेस को कमीशन मिलने का रास्ता बंद हो जाने की वजह से ही कांग्रेस राफेल डील के खिलाफ है। इसलिए राहुल गांधी सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगा कर राफेल डील खत्म करवाना चाहते हैं। नहीं तो क्या वजह थी कि जो राफेल विमान मोदी सरकार तीन साल में भारत ला रही है उसकी पहली खेप कांग्रेस के डील के मुताबिक 2023 में आती। जबकि मोदी सरकार के कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक राफेल के पूरे 36 विमान 2022 तक आ जाएंगे।
1st #Rafale aircraft to be delivered in September 2019. 36th aircraft to be delivered by 2022: RM @nsitharaman in LS. Process of negotiations completed in 14 months. Did not run for 10 years. 36th aircraft delivery advanced by 5 months. (This since Squadron strength falling)
— GAURAV C SAWANT (@gauravcsawant) January 4, 2019
इंडिया टुडे के कार्यकारी संपादक गौरव सावंत ने अपने ट्वीट में लिखा है कि जिस राफेल डील समझौते को मोदी सरकार ने 14 महीने में पूरे कर लिए उसे कांग्रेस की यूपीए सरकार ने 10 साल में भी पूरा नहीं कर पाई। जहां पड़ोसी देशों के मजबूत होने की बात है तो उन्होंने अपने ट्वीट में रक्षा मंत्री के हवाले से लिखा है कि जहां हमारा पड़ोसी देश चीन 2004 और 15 के बीच में चौथे और पांचवे जेनरेश के जे-10, जे-11, जे-15 एसयू-27 और 30 तथा स्टील्थ फाइटर्ज जैसे 400 एयरक्राफ्ट अपनी वायु सेना के बेडे़ में शामिल कर लिया जबकि इस दौरान भारत की स्क्वाड्रन क्षमता घटा दी गई। देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने का काम कांग्रेस की सरकार ही कर सकती है।
China acquired 400 aircraft between 2004-15. 4th Generation: J 10, J 11, J 15, Su-27 & Su 30 & 5th Gen stealth fighters. Pak doubled no of F-16 & added 43 JF-17s and in India squadron strength went down from 42 (?) to 36 in 2007 & 33 Sqn in 2015: RM @nsitharaman. #Rafale
— GAURAV C SAWANT (@gauravcsawant) January 4, 2019
जो कांग्रेस और राहुल गांधी आज मोदी सरकार पर राफेल डील को निराधार आरोप लगा रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि जब उनकी सरकार थी तब तत्कालीन रक्षा मंत्री ने अपने बयान में कहा था कि देश के पास विमान खरीदने के लिए धन नहीं हैं। जो कांग्रेस की सरकार पिछले दस सालों में एक राफेल विमान तक नही खरीद पाई वहीं मोदी सरकार पांच साल में 36 राफेल विमान खरीद लिया है। आज वही कांग्रेस मोदी सरकार पर अपने चुनावी हित साधने के लिए बेवजह आरोप लगा रही है।
In 1984, Indira Gandhi as PM ordered 40 Mirage 2000 jets with France. An offer to build a full Mirage 2000 production line at HAL in India was turned down after Soviet Union successfully persuaded her to also purchase MiG-29 jets.
Another #RahulLie busted.https://t.co/upxqSiiyKz
— Amit Malviya (@amitmalviya) January 4, 2019
राहुल गांधी जिस एचएल की बात बार-बार उठा रहे हैं वह वही एचएएल है जिसने मिग 2000 जहाज बनाने में अपनी असमर्थता जता चुका है। एचएएल ने मीग 2000 जहाज बनाने का प्रस्ताव नहीं स्वीकार किया था। यह वाकया 1984 का है जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फ्रांस से 40 मिग-2000 खरीदने का आदेश दिया था। उन्होंने मिग 2000 विमान देश में ही बनाने का प्रस्ताव एचएएल को दिया था। लेकिन एचएएल ने विमान बनाने में असमर्थता जताते हुए वह प्रस्ताव लौटा दिया था। अंत में तब रूस ने इंदिरा गांधी को मिग-29 खरीदने पर मना लिया था।
अंत में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि कांग्रेस किसी प्रकार राफेल डील को निरस्त कर दुनिया की उन कंपनियों से सौदा करना या कराना चाहती है जहां उनके अपने दलाल बैठे हैं। इसलिए तो काग्रेस ने हमेशा ही रक्षा सौदा दलालों के माध्यम से किया है। पहली बार मोदी सरकार ने रक्षा सौदा के लिए दलाल को हटाकर दो सरकारों के बीच में समझौता किया है।
URL : Rahul Gandhi is not fighting for Raphale, fighting for defense brokers!
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