भारत की राज सत्ता हमेशा प्रो-मुस्लिम रही है, जिस कारण भारत बंटा भी और आज तक मजहबी अराजकता का शिकार भी है। नुपुर के पक्ष में खड़े इस छात्र अशरफ का साथ देने की जगह राज सत्ता भीड़ का साथ दे रही है! क्योंकि सत्ता को हमेशा भीड़ चाहिए वोट के लिए, इसीलिए वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कुचलता है, जैसे नुपुर की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को किसी इस्लामी मुल्क की तरह यहां की राज सत्ता ने कुचल डाला!
हिंदू धर्म व्यक्तिगत स्वतंत्रता को आधार देता है। राज सत्ता मजहबी भीड़ के साथ खड़ा होकर हमेशा से स्वतंत्र हिंदू स्वर को कुचलता रहा है। किसी भी राज सत्ता के लिए स्वतंत्र चेतना से अधिक भीड़ व्यवहार महत्वपूर्ण है। यही सच है! चूंकि भारत का हिंदू राजनीति जातियों और राजनीतिक पार्टियों में बंटा है, इसलिए वह भी स्वतंत्र हिंदू स्वर के साथ खड़ा होने की जगह अनेक किंतु -परंतु करते हुए अपनी-अपनी जातियों, और उससे भी अधिक अपनी राजनीतिक पार्टियों के पक्ष में खड़ा हो जाता है।
यही कारण है कि हिंदुओं का एक मात्र देश भारत उससे छिनता जा रहा है, उसकी सीमाएं छोटी होती जा रही हैं, लेकिन फिर भी उसे समझ में नहीं आ रहा है! धर्म और राष्ट्र से ऊपर हिंदू अपनी जाति, अपनी राजनीतिक पार्टी, किसी व्यक्ति अथवा किसी संस्था को प्रश्रय देता रहा है, और यही उसके विघटन का मुख्य कारण है! ऋषियों ने जिस स्वतंत्र हिंदू चेतना को उठाने पर बल दिया, वही अंत में हिंदुओं को बचाएगा। स्वतंत्र चेतना ही किसी राम, कृष्ण, शिवाजी और महाराणा को गढ़ता है!