बात 2001 की है। मैंने नया-नया दैनिक जागरण ज्वाइन किया था। किसी घटना की रिपोर्टिंग करके लौट रहा था। दिल्ली परिवहन निगम की बस में मेरे बगल में एक लड़का बैठा था। तभी मेरे मोबाइल पर किसी का फोन आया। मैं फोन पर बातें करने लगा। बात करने के उपरांत जब मैंने मोबाइल रखा तो बेहद उत्साहित भाव से मेरे बगल में बैठे उस लड़के ने पूछा, ‘सर आप पत्रकार हैं?’
मैंने कहा- ‘हां।’
‘सर क्या रिपोर्टर?’
‘हां, रिपोर्टर ही हूं।’
‘सर यह मेरी खुशनसीबी है कि आज बस में मैं एक रिपोर्टर के साथ बैठा हूं। आप किस अखबार में रिपोर्टर हैं?’ उस उत्साहित लड़के ने पूछा।
‘दैनिक जागरण में हूं।’ मैंने जवाब दिया।
‘सर आपसे हाथ मिला सकता हूं।’
‘हां क्यों नहीं?’ यह कहते हुए मैंने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ा दिया।
एक पत्रकार के लिए प्रशंसा और उत्साह का वह जो भाव मैंने उस लड़के में देखा था, आज 2018 आते-आते पूरी पत्रकारिता जगत के लिए वह समाप्त होते देख रहा हूं। दुख होता है, लेकिन यह भी लगता है कि इसके लिए जनता नहीं, बल्कि पूरी मीडिया और पत्रकार बिरादरी दोषी है। जिन्हें भ्रष्टाचार उजागर करने की जिम्मेदारी इस लोकतंत्र ने सौंपी थी, वही लोग भ्रष्टाचारियों के साथ मिलकर हवा निगलने और कोयला खाने लगे तो जनता आक्रोशित होगी ही!
आज पत्रकारों को दलाल, प्रेस्टीट्यूट, पेड मीडिया, फेक न्यूज मेकर, लुटियन मीडिया, लुटियन दलाल, पेटिकोट पत्रकार, माइनो मीडिया, पीडी पत्रकार-जैसे न जाने कितने ही अशोभनीय शब्दों से नवाजा जा रहा है! कर्नाटक में ऐसा ही एक वाकया इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई के साथ हुआ! लेकिन उन्हें इसका अफसोस शायद नहीं लगता, क्योंकि उनकी पत्रकारिता कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की चरण वंदना में उसके बाद भी दम तोड़ती ही नजर आयी। इसके अगले ही दिन वह ट्वीटर पर कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के प्रति सहानुभूति बटोरते वाले उसके सोशल मीडिया हैंडलर की भूमिका में दिखे!
I will stay in politics but this is my last election, I will never fight an election again, will be 75 when next election is fought ! @siddaramaiah tells me on the campaign trail in Chamundeshwari.. #ElectionsOnMyPlate
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) May 9, 2018
राजदीप सरदेसाई कर्नाटक के विधानसभा चुनाव को कवर करने के लिए इंडिया टुडे की ओर से वहां गये हुए हैं! टेलीविजन पत्रकारिता में यह एक नया ट्रेंड विकसित हुआ है कि बीट-रिपोर्टर की जगह लुटियन संपादक चुनावों की कवरेज के लिए गन-माइक हाथ में पकड़े इलाके में खुद घूमते फिरते हैं और जानबूझ कर ऐसे लोगों को पकड़ते हैं जो उनके एजेंडे को सूट करता है। उनके सवाल और उनकी रिपोर्टिंग से स्पष्ट हो जाता है कि वह अपने बीट-रिपोर्टर की जगह खुद वहां क्यों चले जाते हैं?
दरअसल ऐसे संपादक अपनी पत्रकारिता से अपनी फेवरेट राजनीतिक पार्टी के लिए चुनाव को प्रभावित करने का एजेंडा चलाने के लिए खुद मौके पर जाते हैं। क्या आपने इन संपादकों कभी किसी मर्डर स्थल पर रिपोर्टिंग करते देखा है, जबकि टीवी न्यूज में सबसे अधिक टीआरपी क्राइम की खबरों और शो पर ही आती है! ये संपादकनुमा प्राणी आपको राजनीति, फिल्म और एलिट के कॉकटेल पार्टी की कवरेज में ही मिलेंगे, यह तय है! इसीलिए बीट-रिपोर्टर की जगह राजदीप सरदेसाई, अरुणपुरी, शेखर गुप्ता, प्रणय राय जैसे बड़े संपादक राजनीति के मैदान में रिपोर्टिंग करने उतर जाते हैं! लेकिन वह भूल जाते हैं कि उनके एजेंडे को जनता अब समझने लगी है, इसलिए ऐसे संपादकों को खुलेआम सड़क पर, रेस्तरां में, मॉल में, चौक पर जनता पकड़ कर सवाल पूछने लगी है!
ऐसा ही कुछ 7 मई 2018 को राजदीप सरदेसाई के साथ कर्नाटक में हुआ। वैसे तो अमेरिका के मेडिसिन स्क्वायर पर वहां बसे भारतीयों को गंदी गाली देने और शर्ट की बाहें मोड़ते हुए हाथापाई करते देश की जनता ने राजदीप सरदेसाई को पहले ही देखा है, लेकिन इस बार यह भारत के अंदर हुआ। हालांकि इस बार राजदीप ने अपने जवान होने के ऐहसास को खुद पर हावी नहीं होने दिया और शर्ट की बाहें नहीं चढ़ाई, जैसा कि अशोभनीय आचरण उन्होंने अमेरिका में किया था! राजदीप के संयम की तारीफ करनी होगी, लेकिन जनता उन्हें देखकर यदि असंयमित हो रही है तो इसके लिए उन्हें या उनकी बिरादरी को झांकना भी खुद के अंदर ही होगा या खुद की रिपोर्टिंग को पूर्वग्रहमुक्त होकर खुद ही पढ़ना और देखना होगा।
राजदीप सरदेसाई बेंगलूरी के रिचमंड सर्कल रेस्तरां में सुबह का नाश्ता कर रहे थे। आईटी के शहर में गुस्से से भरा एक टेक-युवा राजदीप के पीछे पहुंचा और उन पर चिल्लाने लगा। उस युवा ने कहा- तुम भारत में पैदा हुए हो, हिंदुओं से नफरत मत करो!
राजदीप सरदेसाई- तुम्हारे अंदर किसी भी तरह का शिष्टाचार नहीं है!
गुस्सैल युवा- शिष्टाचार तो तुम्हारे अंदर नहीं है। तुम खबरों के अंदर बहुत सारा झूठ परोसते हो।
"Rajdeep's Madison Square Moment in BLR Today"
During breakfast in a Richmond Circle restaurant, unknown angry techie shouts at him:
Techie: You are born in India, dont hate Hindus.
Rajdeep: Don't you hv any decency.
Techie: You dont have decency. U spread so much crap in news! pic.twitter.com/9JpU8UWmYM
— Girish Alva (@girishalva) May 7, 2018
बहुत सारे पत्रकारों को बुरा लगा कि एक वरिष्ठ संपादक को सरेआम इस तरह घेरा जा रहा है! राजदीप की तरह पेशा करने वाले पत्रकारों व संपादकों ने ट्वीटर पर इसके खिलाफ अभियान ही चला दिया। लेकिन इस अभियान में फिर से वो वही गलती कर बैठे और गलती फिर से राजदीप ने भी की। विरोधियों को हिंदू गुंडा कहा जाने लगा। राजदीप ने ट्वीट किया कि यह देश हिंदू पाकिस्तान बनने की राह पर है! यानी गंभीरता से अपने अंदर और अपनी रिपोर्ट में झांकने की जगह यह जमात, फिर से ट्रॉलिंग पर उतर आया! जब खुद को पढ़ा-लिखा और बड़ा पत्रकार कहने वाला यह जमात ट्रॉलिंग करे तो जनता फिर क्या करे?
इन पत्रकारों को यह सोचना चाहिए कि आखिर जनता उन्हें हिंदू विरोधी क्यों कह रही है? इन पत्रकारों को यह सोचना चाहिए कि जनता ऐसा क्यों कह रही है कि ये लोग खबर की आड़ में झूठ परोसते हैं? राजदीप सरदेसाई, उनकी पत्नी सागरिका घोष, शेखर गुप्ता, सिद्धार्थ वरदराजन, बरखा दत्त, विनोद शर्मा की छवि आज मुसलिम-ईसाई तुष्टिकरण और हिंदू विरोध की बन गयी है तो समस्या उनकी रिपोर्टिंग में है, न कि देश की इतनी बड़ी जनता में।
Respect @sardesairajdeep for his decency in the face of such hooliganism. Hopefully now journos would understand that Hindu right-wingers are a menace which needs to be fought, not appeased. https://t.co/2JAmqlpqHN
— Aditya Menon (@AdityaMenon22) May 8, 2018
आप देखिए न! 2002 से लगातार राजदीप-बरखा की जोड़ी ने पत्रकारिता की मर्यादा को तार-तार करते हुए हिंदू-मुसलमान के आधार पर दंगों की रिपोर्टिंग की। राजदीप अरुणपुरी की बहन मधु त्रेहान के वेब ‘न्यूज लॉंड्री’ में बड़ी बेशर्मी से हिंदू-मुसलमान के आधार पर दंगों की रिपोर्टिंग को अपनी ओर से क्रांतिकारी बदलाव साबित करने का प्रयास करते दिखते हैं। अभी हाल ही में दप्रिंट के शेखर गुप्ता, बरखा दत्त, स्वाति चतुर्वेदी जैसे पत्रकारों ने ने कठुआ केस में हिंदू-मुसलमान के आधार पर समाज में नफरत फैलाने का धंधा चलाया।
द स्टेट्समैन, पायोनियर, नवभारत टाइम्स, एनडीटीवी, फर्स्टपोस्ट, द वीक, रिपब्लिक टीवी, डेक्कन क्रोनिकल, इंडिया टीवी और इंडियन एस्सप्रेस ने खुलेआम पत्रकारिता की पूरी गरिमा, नैतिकता और नियम को लात मारते हुए कठुआ केस में बलात्कार आरोपी को हिंदू और पीडि़ता बच्ची को मुसलमान बताते हुए उस बच्ची का नाम तक प्रकाशित किया और दिखाया। दिल्ली हाईकोर्ट ने इन सभी मीडिया हाउस पर 10-10 लाख का जुर्माना लगाया और इन पर पोस्को-एक्ट के तरह कार्रवाई की। कोर्ट की यह कार्रवाई दर्शाती है कि यह मीडिया हाउस और इसके संपादकों की मानसिकता बीमारी और दूषित हो चुकी है। अब ऐसे में कोई व्यक्ति आपको सरेराह घेर कर सवाल नहीं पूछेगा तो और क्या करेगा?
राजदीप सरदेसाई आप जैसों को जनता ने लोकतंत्र की पहरेदारी का जिम्मा सौंपा था, लेकिन आपने ही दाउद के पक्ष में लेख लिखा, ‘कैश फॉर वोट’ में कांग्रेस के हित में सीडी को दबाने का काम किया और गुजरात दंगे में तीस्ता सीतलवाड़ के साथ साजिश में शामिल होकर पूरे पेशे को बदनाम किया। राजदीप शिष्टाचार जनता नहीं भूली है, बल्कि आप पत्रकारिता के सारे शिष्टाचार को भूल कर एजेंडा चलाने में लग हुए हैं! 10 साल तक शासन करने वाली पार्टी के सर्वेसर्वा से जब आप भ्रष्टाचार पर कोई सवाल पूछने की जगह पूछेंगे कि ‘आप अपनी सास के लिए खाना बनाती थीं?’ फिर जनता चिढ़ेगी नहीं तो क्या वाह-वाह करेगी?
Shocked at the harassment of @sardesairajdeep at a BLR restaurant. That the offender is a well-heeled techie reminds us decency or lack of it has nothing to do with social status. The poorest in remotest places have strong views but welcome & engage with journalists
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) May 8, 2018
आज 10 हजार के मोबाइल से यही जनता आपसे सवाल पूछती है तो आप उसे ट्रॉल कहते हो और आपकी बीबी सागरिका उन्हें हिंदू गुंडे! अब बताओ, आपने तो उनके लिए कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा है! आप लोग चाहते हो कि आप जो दिखाएं, जनता अपनी आंख-कान बंद कर उसे बस देखे, कोई सवाल न करे! यह संभव नहीं! यह मानव हैं, भेड़ नहीं!
याद रखना, हमारा संविधान और हमारा लोकतंत्र केवल भ्रष्ट नेता, नौकरशाह, न्यायधीश या व्यावसायी से ही केवल सवाल पूछने का अधिकार नहीं देता, बल्कि सवाल पूछने वाले पत्रकारों के भ्रष्टाचार पर भी वह मुखरता से सवाल पूछने का हक प्रदान करता है? वह व्यक्ति आपसे केवल सवाल पूछ रहा है! हो सकता है कि उसका तरीका गलत हो! लेकिन जो पत्रकार बिरादरी पूरे देश को फेक न्यूज और फेक नरेशन से गुमराह करता हो, उससे कोई शालीनता से व्यवहार करे? माफ करना, न्यूटन का नियम तो यहां भी लगता है!
आप लोगों के आत्ममंथन का समय है! आखिर 15 साल में पत्रकार सम्मान से अपमान की ओर कैसे चले गये? जनता को दोष देने की जगह, अपनी रिपोर्टिंग में झांकिए! समाधान वहीं छिपा है! https://t.co/gPaVcnCsWa
— Sandeep Deo (@sdeo76) May 8, 2018
URL: Rajdeep’s Madison Square Moment in bangalore
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