एक छोटी से पुस्तक हाथ लगी जिसका शीर्षक है ‘दिल्ली में हिन्दू राजवंश का स्वर्णिम काल’, इसके लेखक है दर्शनम् के संस्थापक राकेश शुक्ला। राकेश जी ट्वीट दिन भर ट्विटर पर धमाल मचाते रहते हैं। गागर में सागर भरना क्या होता है, लेखक ने अपनी इस पुस्तक में चरितार्थ करने का प्रयास किया है।
इस्लामिक और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा लिखे (विकृत) इतिहास को पढने पर दिल्ली की छवि कैसी बनी है, हम अच्छे से जानते हैं। वामपंथियों के इतिहास अनुसार दिल्ली शब्द सुनते ही दिमाग में आता मुगल, मुस्लिम, बादशाह, मुगल सल्तनत आदि। दूसरे शब्दों में लिखूं तो दिल्ली माने सब कुछ इस्लामिक।
लेकिन सत्य कुछ और है। लेखक राकेश शुक्ला की केवल 48 पृष्ठों की छोटी सी पुस्तक वैचारिक विमर्श की दिशा बदलने वाली प्रतीत होती है। यह पुस्तक आपको तथाकथित मुगल सल्तनत दिल्ली में हिन्दू राजवंश के स्वर्णिम काल के दर्शन कराएगी।
पुस्तक के लेखक दिल्ली की जड़े महाभारत के इन्द्रप्रस्थ में दर्शाते हैं, वहीं एक रोचक तथ्य जिससे मैं आज तक अनजान था वह भी सन्दर्भ सहित बताते हैं। वह तथ्य है दिल्ली शब्द की जड़ों के बारे में, जिसके अनुसार गौतमवंशीय राजाओं के परवर्ती मयूर वंश के शासक कन्नौज राजा ढिल्लू द्वारा इस प्रदेश को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया गया था। कन्नौज के सेनापति सरुपदत्त द्वारा महरौली क्षेत्र में नया नगर बसाया गया। उस नगर का नाम उन्होंने अपने राजा ढिल्लू पर रखा डिल्लिका। अर्थात दिल्ली शब्द की जड़ें डिल्लिका में है। लेखक अपनी पुस्तक में मुगल सल्तनत के मिथक को तोड़ते हुए बता रहे हैं कि दिल्ली का 5,000 वर्ष का समृद्धशाली इतिहास है। खांडवप्रस्थ से इंद्रप्रस्थ फिर ढिल्लिका से दिल्ली बनने तक की यात्रा में हिन्दू राजाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। परन्तु कुछ तथाकथित इतिहासकारों द्वारा दिल्ली के हिन्दू शासन वाले समृद्धशाली कालखंड को दबाकर दिल्ली को तबाह करने वाले मुगल शासकों की दिल्ली निरूपित करने का षडयंत्र किया गया और उससे पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह प्रदर्शन बनता गया कि दिल्ली मुगलों की रही है। जबकि दिल्ली में मुगलों का शासन बहुत सीमित अवधि तक रहा है।
पुस्तक में लेखक हिन्दू राजाओं की वंशावली भी बताते हैं जिसके अनुसार राजा देवसिंह को हराकर दिल्ली के राजा अनंगपाल प्रथम बने। 686 ईसवी में पांडवंश का शासन फिर लौटा। राजा अनंगपाल प्रथम ने उजड़े इन्द्रप्रस्थ को फिर बसाया। राजा अनंगपाल की 20 पीढ़ियों ने यहां शासन किया है। उनके पांच पुत्रों में तुडंगपाल ने तुगलकाबाद बसाया था जिसका प्राचीन नाम अड़गपुर था, वहीं महिपालपुर महिपाल का बसाया हुआ है और सूरजकुंड सूरजपाल द्वारा बसाया गया था। लेखक के अनुसार कागड़ी भाषा में लिखी प्राचीन पुस्तक राजवली में दिल्ली का इतिहास 4100 वर्ष का बताया गया है। राजावली पुस्तक में महाभारत काल के बाद दिल्ली पर जितने राजवंशों ने राज किया उनका वर्णन दिया गया है। जिसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर, राजा परीक्षित से लेकर राजा पृथ्वीराज चौहान तक हिन्दू राजाओं की 66 पीढ़ी ने दिल्ली में शासन किया है। राजवली पुस्तक के अनुसार इन राजाओं ने 4100 वर्ष राज किया था।
इस छोटी सी पुस्तक में बहुत से ऐतिहासिक तथ्य दिए गये हैं। जिनमें से एक तथ्य उदाहरण स्वरुप प्रस्तुत करता हूँ,”राजा हुंडाहराय के 9 वंशजों ने 360 वर्ष, 11 माह, 13 दिन राज किया। राजा समुद्रपाल के 16 वंशजों ने 405 वर्ष, 5 माह 19 दिन राज किया। राजा त्रिलोकचंद के 10 वंशजों ने 119 वर्ष, 10 माह 29 दिन राज किया। राजा हटतप्रेम के 4 वंशजों ने 49 वर्ष, 11 माह 10 दिन राज किया। राजा वहीसेन के 12 वंशजों ने 158 वर्ष, 9 माह, 7 दिन राज किया। राजा दीपसिह के 6 वशजों ने 104 वर्ष, 6 माह 24 दिन राज किया।”
पुस्तक पाठक को बताती है कि मुगल शासकों द्वारा हिन्दू राजाओं द्वारा बनवाई गई इमारतों को या तो नष्ट कर दिया गया या फिर अतिक्रमण करके उन पर अपना नाम चस्पा करा दिया गया। इसके लिए लेखक कुतुब मीनार और लालकिला का उदाहरण साक्ष्यों और चित्रों सहित प्रस्तुत करते हैं। पृष्ठ 11-12 पर राजा अनंगपाल ने बसाया दिल्ली पाठक को रोचक जानकारी प्रदान करता है। मैं जब स्कूल मैं पढ़ता था तब एक पाठ पढ़ा था ‘फूल वालों की सैर’, लेखक राकेश की इस पुस्तक से पता चला कि राजा अनंगपाल ने महरौली में योग माया मंदिर का भी पुननिर्माण करवाया था। योगमाया को तोमरवंश की कुलदेवी माना जाता है। मंदिर के बगल में एक जलाशय बनाया गया था, जिसे अनंगताल बावड़ी के नाम से जाना जाता है। यह जलाशय अभी भी उपयोग में है। मुगलकाल में इस मंदिर का महत्व कम करने के लिए फूल वालों की सैर शुरू कर दी गई थी, जो आज भी हो रही है। इस आयोजन में सूफी (मुस्लिम) गायन का आयोजन होता है।
पुस्तक में मुगलों को आर्यवर्त से दूर रखने वाले पराक्रमी राजा बीसलदेव के पराक्रम पर विस्तार से लिखा गया है। राजस्थान के अजमेर में बीसलपुर बांध पर बना बालदेव मंदिर का निर्माण राजा इन्ही बीसलदेव ने कराया था। आगे पृथ्वीराज चौहान द्वारा गोरी के गुरुर तोड़ने के बारे में लिखा हुआ है। यह पुस्तक आपको यह भी बताएगी कि मुगल राजा हेमचन्द्र विक्रमादित्य से घबराते थे। वहीं बालाजी विश्वनाथ ने मुगलों से चौथ वसूला था, ये जानकारी मुझे नही थी, यह जानकारी इस पुस्तक को पढने के बाद ही मिली है। इस ऐतिहासिक तथ्य पर अब और पढना चाहूँगा।
पुस्तक आगे हिन्दुस्तान के इतिहास में 41 लड़ाईयां लड़ने वाले और सभी जीतने वाले मराठा योद्धा बाजीराव पेशवा के पराक्रम के बारे में बताती है, साथ ही मुगल आक्रान्ता तैमुर से पंजाब छीनने वाले दत्ताजी शिंदे के बारे लिखा गया है, ये दत्ताजी शिंदे ही थे जिन्होंने लाल किले के सामने गौरी शंकर मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था। दत्ताजी शिंदे के बारे में जो संक्षिप्त वर्णन दिया गया है उसे पढ़कर पाठक सोचने पर विवश होगा कि देशद्रोही इतिहासकारों ने बहुत कुछ छुपाया है।
मराठा सेनानायक महादजी शिंदे से जुड़ा हुआ इतिहास भी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है और साथ ही गुरुनानक देव जी से शुरू करते हुए 1469 से 1802 तक पराक्रमी सिख योद्धाओं द्वारा दिल्ली के लाल किले केसरिया ध्वज फहराने का संक्षिप्त इतिहास वर्णन है।
लेखक राकेश शुक्ला की यह छोटी सी पुस्तक वास्तव में भारत को भारत की दृष्टि से देखने का एक उत्कृष्ट प्रयास है। वास्तव में यह पुस्तक वामपंथी और इस्लामिक तथाकथित इतिहासकारों के पाखंड दिल्ली सल्तनत नामक झूठ का पर्दाफ़ाश करने की दिशा में एक उत्तम प्रयास है। दिल्ली पर हिन्दू राजवंशों ने राज किया है यह पुस्तक यह सत्य स्थापित करती गई। यह पुस्तक एक बार में ही पढ़ी जा सकती है, हिन्दू बच्चों को यह पुस्तक अपरिहार्य रूप से पढाया जाना चाहिए।