रोहित श्रीवास्तव। जी हाँ, सही पढ़ा आपने! राम मंदिर विवाद में माननीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राम मंदिर को लेकर चल रहा मामला कोर्ट के लिए इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि उसके लिए किसी भी तरह की जल्दबाजी की जाए। साथ ही कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई को जनवरी तक टाल दिया है। ऐसे में हम सभी माननीय न्यायालय का पूरी तरह से सम्मान करते हैं। हम यह भी समझते हैं कि माननीय न्यायालय ने इस फैसले को अपनी पूर्ण बुद्धिमत्ता का उपयोग कर सुनाया होगा।
लोकतंत्र के इस स्तम्भ पर सभी को पूरा भरोसा भी होना चाहिए। लेकिन माननीय न्यायालय के इस फैसले ने कई महत्वपूर्ण प्रश्न भी खड़े किए हैं। यह प्रश्न केवल हमारे नहीं हैं अपितु उन करोड़ों भारतीयों के हैं जिनके मन में भगवान श्रीराम वास करते हैं। प्रभु श्रीराम उनके लिए केवल आस्था का विषय नहीं है वरन उनके जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। एक ऐसा अंग जिसके अभाव में उनका जीवन व्यर्थ है।
ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि माननीय न्यायालय का यह फैसला करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ नहीं है? क्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी जायज़ है? आखिर ऐसा क्यों है कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई को बार-बार टाला जा रहा है? क्या ऐसे ज्वलंत प्रश्नों के उत्तर माननीय न्यायालय को नहीं देने चाहिए?
कथित मानवाधिकार की टोली इस फैसले से खुश नज़र आती है। वे इसे सुप्रीम कोर्ट की पारदर्शिता बताते हैं। यह वही कथित मानवाधिकार की टोली है जो एक आतंकी याकूब मेनन को फांसी से बचाने के लिए आधी रात में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाती है। उसको जीवन दान देने की याचना करती है। दूसरी तरफ यह वही सुप्रीम कोर्ट है जो उनकी इस याचना को आधी रात में सुनती है। क्या इसे सुप्रीम कोर्ट का दोहरा मापदंड न माना जाए? सुप्रीम कोर्ट के पास ऐसे आतंकी की याचिका सुनने का समय है लेकिन राम मंदिर से जुड़े इस मामले को सुनने का समय नहीं है।
URL: Ram not only ‘faith’ but an integral part of millions of Hindus
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