नैतिकता व चरित्र की शिक्षा , केवल धर्म से मिलती है ;
इससे विहीन जो राजनीति है , केवल वैश्या बन सकती है ।
राजनीति को वैश्या करने वाले , होते भड़वे ;
सारे मीठे – फल खा जाते , जनता पाती कड़वे ।
यही पतन का मुख्य है कारण , हर झगड़े की जड़ है ;
यही वजह अब्बासी – हिंदू की , यही पाप की जड़ है ।
इसी के कारण गुंडे फैले , भीषण अत्याचार है ;
लोभ ,लालच , बेईमानी ,हिंसा , कितना भ्रष्टाचार है ?
लोकतंत्र क्या ? भ्रष्ट – तंत्र है , गंदी-वासना के पुतले ;
धर्म – सनातन भूल चुके हैं , बने हुये हैं कठपुतले ।
धर्म का सच्चा – मर्म न जानें , जीवन का उद्देश्य न जानें ;
जैसे हों नाली के कीड़े , धर्म से जो हैं अनजाने ।
पता नहीं क्यों आये धरती पर ? और कहां फिर जाना है ?
सबका सब अनजाना उसका , जिसने धर्म नहीं जाना है ।
यंत्र समान है उसका जीवन , सच्चा-आनंद नहीं पाया ;
जीवन का उद्देश्य न जाना , अपना प्राप्तव्य नहीं पाया ।
माया-मोह में फंस जाते हैं , फंसकर उसी में मर जाते हैं ;
जैसे चींटे गुड़ को पाकर , चिपक-चिपक कर मर जाते हैं ।
अब लौं नसानी अब न नसाओ,अब तो अपनी आंखें खोलो
अब तक जो भी नष्ट कर चुके, शेष बचे में अच्छा कर लो ।
लोभ , लालच , बेईमानी छोड़ो , चरित्रहीनता ठुकराओ ;
धर्म – सनातन सर्वश्रेष्ठ है , अब तो उसकी राह में आओ ।
सब को सब कुछ मिल सकता है,धर्म-सनातन दे सकता है ;
नोबेल-प्राइज लगे धूल सम , इतना ऊंचा उठ सकता है ।
अपनी सारी मक्कारी छोड़ो , धर्म के प्रति गद्दारी छोड़ो ;
कैप्टन हो तुम इस जहाज के , उसको सही दिशा में मोड़ो ।
तुष्टीकरण हटाओ सारा , पूरा अल्पसंख्यकवाद मिटा दो ;
पूरी निष्ठा धर्म पे रखो , व गुंडों को धूल चटा दो ।
अब तक व्यर्थ तुम्हारा जीवन , अब सार्थकता ले आओ ;
रामराज्य सर्वोत्तम शासन , देश को हिंदू-राष्ट्र बनाओ ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”