जब देश एक, कानून एक, मामला एक जैसा तो फिर कोर्ट के क्रियान्वयन में भेद क्यों? जिस प्रकार एक नन के आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल को केरल हाईकोर्ट ने जमानत दी है उससे वहां के जजों के भेदभावपूर्व रवैये पर सवाल उठना लाजिमी है। एक तो पहले पुलिस प्रशासन ने उसे गिरफ्तार करने में देरी की और अब कोर्ट ने रेप जैसे घृणित आरोप में उसे इतनी जल्दी बेल दे दी। वहीं इसी प्रकार के आरोप में फंसे हिंदू बाबाओं को बेल नहीं मिलती। उदाहरण तो कई हैं लेकिन हम यहां उनका नाम लेकर महिमामंडन नहीं करना चाहते। साथ ही हम यह भी नहीं चाहते कि किसी रेप आरोपी को क्रिश्चियन होने और सरकारी संरक्षण का लाभ दिया जाए।
मुख्य बिंदु
* केरल की ही रहने वाली नन ने जालंधर बिशप पर कई बार रेप करने का आरोप लगाया था
* रेप के आरोप के बाद भी चर्च के वरिष्ठ अधिकारियों ने आरोपी बिशप को पद से नहीं हटाया
Kerala HC grants bail to Repist Bishop Franco Mulakkal who is the accused in Kerala nun rape case. Same Law but not equal implementation. #MeToo agenda of converted Tanushree is successful.
— प्रशान्त पटेल उमराव (@ippatel) October 15, 2018
मालूम बिशप फ्रैंको मुलक्कल पर केरल की रहने वाली चर्च के ही एक नन का कई बार रेप करने का आरोप है। पीड़िता नन ने आरोपी बिशप की शिकायत चर्च के बड़े अधिकारियों से भी की लेकिन परिणाम कुछ भी नहीं निकला। अंत में उन्होंने पुलिस में जाकर आरोपी बिशप के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। एफआईआर दर्ज होने के बाद भी उसे अपने पद से न तो हटाया गया न ही उसकी गिरफ्तारी हुई। बाद में जब जन दबाव पड़ा तो पुलिस ने आरोपी बिशप को गिरफ्तार किया। ध्यान रहे कि जिस बिशप को गिरफ्तार करने में उतना समय लगा उसे जमानत देने में थोड़ा भी समय नहीं लगा । जिस प्रकार देश के हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में बैठे जज एक विशेष समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अख्तियार करते आ रहे हैं उससे न्याय को लेकर संदेह उत्पन्न होने लगा है।
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URL: Rape accused bishop got bail question on court’s discriminatory attitude
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