वेब सीरीज़ रिव्यू
स्वरा भास्कर को आशा नहीं होगी कि उनकी नई वेब सीरीज़ ‘रसभरी’ को दर्शक उनकी सार्वजानिक छवि से जोड़ लेंगे। एक उन्मुक्त, कामुकता से भरी स्त्री की ये सार्वजनिक छवि उनकी ही गढ़ी हुई है। उनके दिए गए बयान ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। मुझे आश्चर्य है कि इस फिल्म को करने से पहले उन्होंने नहीं सोचा कि वे भारत की राष्ट्रीय राजनीति की एक अहम पार्टी के लिए झंडा बुलंद करती है। क्या होगा जब उनकी ‘रसभरी’ की बनाई इमेज, उनकी राजनीतिक छवि से घुल-मिल जाएगी।
बोल्डनेस के नाम पर उन्होंने जो गंध परोसी है, वह अपचनीय है। मेरठ के एक स्कूल में शानू बंसल दूसरे किसी शहर से अंग्रेज़ी पढ़ाने के लिए आई है। 11वीं में पढ़ने वाला नंदकिशोर उस पर इतना लट्टू हो जाता है कि उम्र में कहीं बड़ी अध्यापिका को अपने बच्चों की माँ बनाना चाहता है। वह ग्यारहवीं में पढ़ने वाले बच्चों के लिए मैडम नहीं बल्कि ‘आइटम’ है।
चूँकि फिल्म के कई निर्देशक हैं, इसलिए कहना होगा, निर्देशकों की कल्पना की उड़ान इस स्तर तक पहुँच गई कि आधा मेरठ उसके निवास पर रंगरलिया मनाने पहुँच जाता है। रसभरी में इतना रस है कि कोई भी उसके जाल से बच नहीं सकता। केबलवाले से लेकर अध्यापक से लेकर, पुलिस अधिकारी तक उसकी चपेट में आ जाते हैं। नंदकिशोर भी यही चाहता है क्योंकि पढ़ाई से ज्यादा उसका मन रसभरी में लगने लगा है।
निर्देशक ने स्वरा भास्कर की बोल्ड छवि को इस फिल्म के जरिये भुनाने की कोशिश की है। अपनी गंद को जस्टिफाई करने के लिए एंगल ये डाला गया है कि शानू बंसल पर रसभरी नामक प्रेतात्मा सवार है, जो उससे ये व्यभिचार करवाती है। एक व्याभिचारिणी किसी भी क्षण उस अध्यापिका में प्रवेश कर जाती है और उससे एक स्टूडेंट को चुंबन करा देती है।
चूँकि निर्देशक के पास अपनी अश्लीलता परोसने के लिए एक स्ट्रांग पॉइंट है, तो वे सारी सीमाओं को लांघ जाते हैं। एक एंगल ऐसा डाल दिया कि शानू को कुछ याद ही नहीं रहता, जो रसभरी ने उससे करवाया। अंत तक स्पष्ट नहीं हो पाता कि ऐसा उसकी दमित यौन इच्छाओं के कारण होता है कि उसके दिमाग ने ‘रसभरी’ की कल्पना कर ली है। ये एंगल प्रियदर्शन की फिल्म ‘भूल-भुलैया’ में लिया गया था।
सीरीज़ में मेरठ को ‘बैकड्रॉप’ के तौर पर इस्तेमाल करते उसे इस सुंदर शहर की खासी बेइज़्ज़ती की गई है।आप संवादों पर गौर कीजिये, हर एक संवाद को लेकर एफआईआर होनी चाहिए। ‘मेरठ में करवाचौथ का क्या काम।’ ‘ब्लाउज़ का एक बटन खुला रह जाएगा, तो कौनसा निमोनिया हो जाएगा।’
फिल्म में मेरठ के पुरुषों को लेकर बहुत घटिया टिप्पणियां की गई है। हद तो ये है कि स्कूल में जो लड़की राखी भाई बनाती है, बाद में उसके साथ ही गुल खिलाए जाते हैं। मेरठ के टीनएजर्स पढ़ाई नहीं करते बल्कि सेक्स मेनियाक हैं। फिल्मों से तो किसी शहर की छवि बनाई जाती है, ताकि लोगों के मन में उसके लिए सम्मान पैदा हो। यहां तो मेरठ शहर को लेकर एक से के निम्न स्तर के कमेंट किये गए हैं।
आईएमडीबी जैसी संस्था ने ‘रसभरी’ को 2.7 स्टार्स दिए हैं। इसे इतने कम सितारे मिलने का कारण अश्लीलता नहीं है। दरअसल पटकथा के स्तर पर फिल्म बेहद कमज़ोर है। निर्देशक अंत तक इस बात को स्थापित ही नहीं कर सके कि ‘रसभरी’ और ‘शानू बंसल’ अलग-अलग कैरेक्टर हैं या शानू ही रसभरी है।
इस सस्पेंस को तोड़ना इसलिए आवश्यक था कि रसभरी की कामुक छवि को लेकर निर्देशक ने फिल्म में अश्लीलता की भरमार कर डाली। ऐसी फिल्मों को दिखाने का एक नज़रिया होता है, जो इसमें कहीं दिखाई नहीं दिया। रसभरी जैसी फ़िल्में सिनेमा जैसे उत्कृष्ट माध्यम पर कलंक की तरह चिपक जाती है। मेरठ जैसे प्यारे शहर को बदनाम करने का प्रयास करती है।
स्वरा भास्कर और उनके जैसी अभिनेत्रियों को ये सीखना होगा कि ये इंटरनेट का युग है। यहाँ पर आप जो कहेंगे, लिखेंगे, उससे आपकी एक सार्वजनिक छवि बनती है। उस छवि के आधार पर दर्शक आपकी फ़िल्में देखता है। आपकी उसी इमेज को मन में लेकर आपकी फिल्म देखता है।
स्वरा भास्कर को इस फिल्म के बाद अब अच्छे ऑफर नहीं मिलेंगे। ये एक तरह से उनका ‘गिवअप मूव’ है। ‘रसभरी’ उनके फ़िल्मी कॅरियर की आखिरी अश्लील सलामी है, बदतर और निकृष्ट। स्वरा ने अपने पिता से ट्वीट करके कहा है कि जब मैं आसपास रहूं, ये फिल्म न देखें। यानी स्वरा समाज को अश्लीलता परोस सकती है लेकिन चाहती है पिता न देखें। उदार पिता ने भी प्रशंसा कर दी है। कहाँ से आते हैं ऐसे लोग।