
रश्मि सामंत के लिये हिंदू होना बनी सज़ा
ये एक ऐसी भारतीय लड़्की की कहानी है जो अपनी, मेहनत, अपनी लगन और अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर आक्स्फोर्ड विश्विद्यालय के छात्र संघ की अध्यक्ष बनी, उसकी प्रेसिडेंट बनी.
और विश्व भर में प्रसिद्ध आक्स्फोर्ड विश्विद्यालय के इतिहास मे ऐसा पहली बार हुआ कि एक भारतीय उनके छात्र संघ का अध्यक्ष बना. और कर्नाटक के शहर उडूपी की इस भारतीय लड़्की ने इस प्रकार आक्स्फार्ड विश्वविद्यालय मे एक नया कीर्तिमान स्थापित किया.
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हम बात कर रहे हैं रश्मि सामंत की जो कि आक्स्फर्ड विश्वविद्यालय के छात्र संघ की अध्यक्ष बनीं. लेकिन उनके चुनाव मे जीतने की देर भर दी की कि जीतने के कुछ घंटों बाद से ही रश्मि के विरुद्ध आनलाइन ट्रोल्स सक्रिय हो गये, उन्हे रेसिस्ट, संकीर्ण विचारघारा का व्यक्ति, एक ऐसा व्यक्ति जो लोगों के सेक्शुयल ओरिएंटेशन की वजह से उनके खिलाफ भेदभाव बरतता है, और भी न जाने उन्हे क्या क्या ठहराने के लिये रश्मि सामंत के विरुद्ध एक पूरी आनलाइन कैम्पेन चलने लगी.
रशिम के वर्षों पुराने पहले पोस्ट सोशल मीडिया से निकाले गये और इन पोस्ट्स के आधार पर उन्हे ट्रोल किया जाने लगा. उनकी एक सालों पुराने पोस्ट जिसमे रश्मि मलेशिया घूमने गयी थीं और उन्होने मज़ाकिया लहज़े मे एक सोशल मीडिया मे डली फोटो मे खुद को चिंग चैंग कहकर संबोधित किया था, उनकी उस पोस्ट को लेकर बवाल मच गया कि रशिम रेसिस्ट हैं.
इसके अलावा रश्मि सामंत ने कही बोलते समय वूमैन और ट्रांस्वूमैन शब्दों का अलग अलग इस्तेमाल किया तो उन पर आक्स्फोर्ड के एल जी बी टी अधिकारों की रक्षा करने वालों की तरफ से आरोप लगने लगे कि रश्मि ट्रांस फोबिक हैं. जो कि एक बेहद अजीब सी बात है. क्योंकि अमेरिका जैसे देशों मे भी ट्रांस वूमैन संबोधन का प्रयोग होता है. और इस संबोधन का प्रयोग मात्र करने का अर्थ यह कदापि नही है कि ट्रांस्जेंडर लोगों का कोई अपमान कर रहा है.
तो इस प्रकार से रश्मि की कई सोशल मीडिया पोस्ट्स वगैरह को बाहर निकालकर उनपर बहुत से आरोप लगाये गये और उन पर इतना ज़्यादा मानसिक दबाव बनाया गया, उन्हे इतना अधिक ट्रोल किया गया कि आखिरकार उन्हे इस्तीफा देना पड़ा. हमने रशिम से टेलिफोन पर बातचीत की और उन्होने हमे बताया कि उनसे पहले तो सिर्फ क्षमा मांगने को कहा गया था. और उन्होने अंतत: माफी मांग ली, लेकिन इसके बावजूद उनके विरुद्ध एक ऐसा नकारात्मक माहौल तैयार किया गया कि उन्हे इस्तीफा देना पड़ा.
जिस दिन वे चुनाव जीतीं, उसके कुछ दिन के भीतर ही उनकी पुरानी सोशल मीडिया पोस्ट्स खदेड़ कर उनके विरुद्ध बाकायदा एक कैम्पेन चलाई गयी. तो नतीजा यह हुया कि चुनाव जीतने के कुछ दिन बाद ही उन्हे इस्तीफा देना पड़ा. लेकिन यहां को सबसे बड़ी बात हुयी वह यह कि उनके इस्तीफा देने के कुछ समय बाद आक्स्फोर्ड विश्वविद्यालय के किसी फैकल्टी ने उनके मां बाप की फेसबुक प्रोप्फाइल को ट्रोल करना शुरू कर दिया. किसलिये? क्योंकि उनके माता पिता की फेसबुक प्रोफाइल की डी पी पर जय श्री राम का फोटो फ्रेम लगा था. उनके माता पिता को इस पूरे प्रकरण मे घसीटा गया. उनके हिंदू होने की वजह से उन्हे और उनकी बेटी यानि रश्मि को हिंदुत्व का एजेंट, फार राइट विंगर, न जाने क्या क्या बोला गया. यहां तक कि यह भी कहा गया कि रश्मि सामंत नरेंद्र मोदी की एजेंट हैं और उनकी चुनाव कैम्पेन मोदी ने फंड की है!
उनके माता पिता के चेहरों पर वर्चुयल तरीके से कालिख भी पोती गई, उस फोटो मे जहां वे जय श्री राम के फ्रेम के साथ खड़े थे.
और यह सब सिर्फ इसीलिये क्योंकि उनके माता पिता ने एक फोटो फ्रेम का इस्तेमाल किया था सोशल मीडिया पर जो उस धर्म से जुड़ा था, जिस धर्म के वे उपासक हैं, जिस धर्म के प्रति उनकी आस्था है. उन्होने किसी भी राजनीतिक मुद्दे पर कोई भी टिप्पणी नही की थी, किसी धर्म विशेष के खिलाफ, किसी दूसरे धर्म के विरुद्ध अपशब्द नही कहे थे, नही लिखे थे. लेकिन उन्हे मात्र हिंदू होने के लिये, हिंदू धर्म का उपासक होने के लिये इस प्रकार से बेइज़्ज़त किया. क्या इसके लिये ब्रिटिश सरकार को आक्स्फोर्ड विश्वविद्यालय के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही नही करनी चाहिये? कि जिस विश्वविद्यालय मे दुनिया भर से कितने ही धर्मों के छात्र छात्रायें पढाई के लिये आते हैं, वहां एक लड़्की को हिंदू होने की वजह से इतना अपमान सहना पड़्ता है. पहले उसे ऐसी बातों को लेकर ट्रोल किया जाता है जो उसने वर्षों पहले न जाने किस संदर्भ मे लिखी थीं, उसे इस्तीफा देने के लिये बाध्य किया जाता है और फिर उसके माता पिता को उनके हिंदू होने की वजह से हैरेस किया जाता है, उन्हे आनलाइन न जाने क्या क्या कहा जाता है.
उस छात्रा के लिये यह सब कितनी बड़ी मानसिक यातना रही होगी, आप सब सोच सकते हैं. वो कितने खुले मन से, कितने आदर्श विचारों के साथ वहां पढाई करने गई होगी, जो कि सभी छात्र छात्रायें जाते हैं.
इन विश्विद्यालयो मे जो छात्र छात्रायें पढाई करने आते हैं, उनकी मानसिकता शायद ऐसी नही होती, लेकिन जो वहां के छात्र संघ हैं, जो स्टूदेंट यूनियन हैं, वो अल्ट्रा लेफ्ट द्वारा नियंत्रित हैं. और इनमे जिस किसी की भी सोच अल्ट्रा लेफ्ट नही होती, उसे इन संघों मे रहने नही दिया जाता.
हालांकि रश्मि पर जो आरोप लगे थे और उसके इस्तीफे की वजह उसका हिंदू होना नही थी. उसे सीधे तौर पर कभी भी उसके हिंदू होने के लिये ट्रोल नही किया गया. खुद रश्मि ने भी यह बात स्वीकारी है कि उसे हिंदू होने की वजह से ट्रोल नही किया गया. उस पर दूसरे आरोप लगाये. लेकिन फिर जिस प्रकार से उसके मां बाप को पूरे प्रकरण मे घसीटा गया सिर्फ उनकी धार्मिक आस्थाओं के कारण और रश्मि को नरेंद्र मोदी का एजेंट तक बताया गया, तो उससे तो यही लगता है कि उसका धर्म शुरू से इन अल्ट्रा लेफ्ट फोर्सेज़ की आंखों मे खटक रहा था.
एक और बात थी शायद जो उनकी आंखों मे खटक रही थी. और वह थी रश्मि के चुनावी घोषणा पत्र का मुख्य मुद्दा, जिस मुद्दे के आधार पर वह चुनाव जीती थी.
रश्मि सामंत के घोषणा पत्र का मुख्य मुद्दा डीकलोनाइज़ेशन था यानि जिन देशो पर अंग्रेज़ों ने शासन किया, उनके लोगों को मानसिक दासता से मुक्त कराना, उन्हे मानसिक दास्ता के दलदल से निकालना.
और इसी मुद्दे पर वह चुनाव जीती थीं. उनकी बहुत सी स्पीचेज़ मे ब्रिटेन के इम्पीरियलिज़्म प्रोजेक्ट की, उसके कोलोनिअल प्रोजेक्ट की आलोचना थी और इस बात पर फोकस था कि आज भी लोग ग्लोबल साउथ की पीड़ा को, उसकी परेशानी को नही समझ रहे हैं. यानि जिन गरीब या विकासशील देशों पर इतने समय तक अंग्रेज़ों का शासन रहा, उनकी पीड़ा को लोग अभी भी नही समझ रहे हैं.
तो रश्मि का यह रैडिकल डीकोलोनाइज़ेशन प्रोजेक्ट आक्स्फोर्ड छात्र संघ के अल्ट्रा लेफ्टेस्स को रास नही अया. और हमे यह जानकर हैराने हुयी, रश्मि ने हमे खुद यह बात बतायी कि किस प्रकार से आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के तथाकथित बुद्धिजीवी, ब्रिटेन के कोलोनिअलिज़्म को, यानि उसके दूसरे देशों पर किये शासन को तर्कसंगत ठहराते हैं! यह कहकर कि अगर ब्रिटेन ऐसा नही करता तो ये देश अभी भी गरीबी और समाजिक कुप्रथाओं के बंधन मे जकड़े होते.
रश्मि सामंत का संघर्ष अभी समाप्त नही हुया है. यह तो उसके संघर्ष की शुरुआत मात्र है. वह अभी भी आक्स्फोर्ड मे ही पढाई कर रही है. और ये हम सभी लोगों के संघर्ष की भी शायद शुरुआत मात्र ही है, जो तथाकथित थर्ड वर्ल्ड कंट्रीज़ से हैं, जिन्हे अंग्रेज़ी भाषा सीखने की, उसमे किताबें लिखने की, उनके तथाकथित बेस्ट विश्वविद्यालयों मे दाखिला पाने की अनुमति तो है लेकिन उनकी इम्पीरियलिस्ट सोच पर सवाल उठाने की अनुमति शायद अभी नही है.
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