रूबल कनौजिया, पंजाब
(पी.एच.डी स्कॉलर)
यूँ मत उड़ाये मेरे पंजाब को ।
रविश कुमार जी आपका लिखा हुआ लेख पढ़ा एक बार नही बार बार पढ़ा। लिखने से पहले ही स्वयं घोषणा कर दूँ की मैं भक्त नही हूँ। वर्ना आपकी पोस्ट पर लिखने के जुर्म में आपके प्रशंसक मेरी भी पोस्ट का वो हाल करदे जो भक्त लोग आपकी पोस्ट का करते है! आप तो पत्रकारिता के दशकों पुराने और मंझे हुए खिलाड़ी है! आपके तजुर्बे, बेबाकी और होंसले के आगे कुछ भी चिंत्तन करना छोटा मुंह और बड़ी बात होगा! पर जाहिर सी बात है भारत का संविधान के आर्टिकल 19 A के मुताबिक जो अधिकार आपको अपनों राय व्यक्त करने का है वो अन्य लोगों को भी। लिहाजा उसी लिहाज से में आपसे संवाद रचाने की गलती कर रहा हूँ। भय है कि कही किसी को गुस्सा न आजाये और मुझे इस गलती के लिए गुस्से का शिकार होना पड़े।
वैसे भी आज पुरे पंजाब के विद्वान लोग आपके लेख की तारीफ के पुल बांध रहे हैं! आज पंजाब प्रेस क्लब में किसी काम से जाना हुआ तो ज्यादातर यजमान आपके लेख पर चर्चा कर रहे थे। कुछ तो ऐसे थे शायद जिन्होंने ने शायद आपके लेख की झलकी न ली हो पर पत्रकारों में भी होड़ है आपके बारे में चर्चा करके खुद को एक विद्वान साबित करने की! जब पूछा तो बस इतना बोले पंजाब पर लिखा है। पर इतना नही कह पाये की पता चल पाये कि आपने अपने अनुभव से क्या लिखा ? वैसे मुझे ज्यादा नही मालूम कि आपने पंजाब में और खास कर देहात पंजाब में कितना का वक्त बिताया है! पर आपने तजुर्बे के मुताबिक लिखा खूब है। वैसे भी दिल्ही में बैठे पत्रकारों को देश के किसी भी कोनेे पे लिख सकने का तजुर्बा रखते है। लिखने की विधि इतनी एहसान है की दो चार अख़बार उठाओ और चेप दो! मैं पंजाब के उस शहर से हूँ जहा गुरु नानक देव जी ने सब कुछ तेरा तेरा कह कर मोदीखाना तोल दिया! और हा तरनतारन मेरा पडोसी जिला है। मेरे विधानसभा हलके से थोड़ी दूर मंड क्षेत्र के साथ लगते ब्यास दरिया को पार करते ही तरनतारन आ जाता है! ये वही तरनतारन है जिसका जिक्र आपने अपनी पोस्ट में अनुराग कश्यप की तरफ से डायरेक्ट की फ़िल्म उड़ता पंजाब के प्रोमो में किया गया। तरनतारन का जिक्र हुआ तो बता दूँ की पंजाब इसी क्षेत्र ने पंजाब के काले दिनों का संताप सबसे ज्यादा भोगा है।
मै पत्रकारिता का छात्र हूँ। और अपना जीवन बसर करने के लिए गुर नानक देव यूनिवर्सिटी में ही पढ़ाता हूँ। हाँ इसी तरनतारन जिला का एक छात्र भी मेरा विद्यार्थी है! वो आज कल पत्रकारिता के क्षेत्र मे अपना भविष्य तलाशने के लिए चंडीगढ़ मे एक चैनल में इंटर्न है। पर गर्व से कहता हूँ वो पॉप कल्चर में रह कर भी नशेड़ी नही है। जिस अमेरिका के बी टाउन के पॉप कल्चर की झलक आपको पंजाब के कुछ इलाकों में लगी! वैसे इस पॉप कल्चर को कमर्शियल टेलेविजन ने ही तो परोसा है। गोआ, मुम्बई व् दिल्ली शायद आप की नज़रो से बच गए हैं। वैसे अपनी जानकारी के हिसाब से बता दू की एक क्षेत्र का कल्चर व् लाइफ स्टाइल आपसी मेलभाव बढ़ने से बदलाव लेता ही है। पंजाब के किसानो, बेरोजगारी, पीएचडी कर चुके युवा मजदूर की दिहाड़ी से कम मानदेय पर पढ़ा रहे हैं!कभी कभार पंजाब के सेहत के आंकड़ो का भी विश्लेषण कर लिजिये जहां कई गांवों के हर घर मे एक या इससे ज्यादा कैंसर के मरीज है! पंजाब में रेल की गाड़ियों तक के नाम तो कैंसर ट्रेन पड़ चुके हैं! पर हा ये टीआरपी का मटेरियल नही है ना। कभी ये भी मुदा उठा दीजिये की फाइव स्टार सेहत सुविधाऍं आम जान की पहुँच तक पहुँच सके। थोड़े दिन पूर्व पिता जी की बाईपास सर्जरी करवानी पड़ी लाखों का खर्च आया। बस उस दिन से यही सोचता हूँ की दिहाड़ी कमाने वाला व्यक्ति कैसा काम चलाता है । इस पर राष्ट्रिय मीडिया चर्चा नही करेगा! हाँ अस्पताल के बाहर इलाज न मिलने के कारन दम तोड़ने वाले व्यक्ति कि संवेदना से भरी खबर चैनल पर जरूर चल जायेगी। क्योंकि संवेदना से भरी खबर जब भी चलाते हैं तो खुद को बहुत गोरवान्तित समझता है राष्ट्रीय मीडिया! हाँ कमर्शियल होती शिक्षा व् पंजाब में बढ़ती उच्च शिक्षण संस्थानों की आस्मां छूती फीसों पर चर्चा करना मुश्किल होगा क्योंकि मामला महंगे विज्ञापन का जो है! हाँ ये मानता हूँ कि शायद राष्ट्रीय मीडिया ये जोखिम न उठा सके।
पिछले कुछ दिनों में राष्ट्रीय मीडिया को पंजाब की यकायक चिंता होने लगी। मुझे नही पता की यह बात कितनी की सच है पर फ़िल्म शोध् से जुड़े लोग विवाद को फ़िल्म के प्रचार की स्ट्रेटेजी का हिस्सा ही मानते है। नशे के प्रचार ओर प्रसार का श्रेय निसन्देह टीवी व् फ़िल्म को ही जाता है। सिगरेट का जितना प्रचलन फिल्मों ने प्रचार में जितना योगदान डाला उतना शायद सिगरेट की कंपनिया भी नही कर सकी। वो उछाल कर सिगरेट का मुँह में डालना। सिगरेट के धुंए के छल्ले बनाना। अरे बदलाव इस जीवन का नियम है। हाँ, शर्त यह है कि बदलाव सार्थक हो। जिस समस्या की बात उड़ता पंजाब ने उछाली। वो समस्या इतनी भी नही की सारा पंजाब नशेड़ी हो गया।या देश के अन्य राज्य नशा मुक्त हो गए।देश भर के लिए अनाज पैदा करने वाले पंजाब में अनाज की पैदावार इतनी कम भी नही हुई कि बॉलीवुड उड़ता पंजाब बना देश भर मे पंजाब के युवाओं नशेड़ी बना पेश करदे।वैसे सोशल मीडिया पर जोक्स भी अच्छे घूम रहे है कि अब ममता कुलकर्णी का नाम करोडों के ड्रग्स तस्करी मामले में आने के बाद क्या अनुराग जी उड़ता बॉलीवुड बनाएंगे। आप तो दिल्ली बैठे हैं जरा अनुराग जी से पूछ के बता दिजियेगा। उड़ता बॉलीवुड का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा। उड़ता पंजाब ने तो पंजाब के युवाओं को देश भर में नशेड़ी घोषित कर ही दिया। राष्ट्रीय मीडिया को अन्य प्रॉब्लम तो क्या नज़र आये भाई साहिब, भारत के अन्य राज्यों में रहने वाले रिश्तेदार हमे शक की नजर से जरूर देख रहे होंगे। पंजाब के बारे में जैसा ड्रग्स का शोर है ऐसे में लड़का शराब तो कमसे कम पीता होगा। तंगी तो उन लड़को के लिए है जिन्हें बाहर के राज्यों से शादी के प्रस्ताव आये होंगे। बेचारे लड़कियों के अभिभावक भी भयभीत होंगे पंजाब का रिश्ता है पता नही कहीं लड़का नशेड़ी न हो। हा ये भी बतादूं अन्य राज्यों से आने वाले रिश्तेदारों को न चाहते हुए भी हमे बोतल पूछनी हमारी मजबूरी होती है। अन्यथा उनकी बाकि सब तरीके से की गयी आयोभगत व्यर्थ ही मानी जाती है। मेरा अनुरोध है इससे पहले राष्ट्रीय मीडिया अपने गिरेबान में एक नजर जरूर दौड़ाये ।
दिल्ली मीडिया में इंटर्नशिप के दिनों में कई सीनियर से ये बात साफ़ कहते थे मीडिया में टिकना है तो प्रेशर को झेलने के लिए सिगरेट तो जरूरी है। उनमे से कुछ आपके चैनल में ही है। एक निवेदन है अनुराग कश्यप जी उड़ता बॉलीवुड जरूर बनाएं वो तो है ही उनकी कर्मभुमि से सम्बन्धित । उम्मीद करता हु जल्द देखने को मिलेगी ‘उड़ता बॉलीवुड’। आप लोगों ने तो पंजाब की जवानी को उड़ता पंजाब कहके हौंसले ही गिरा दिए। पंजाब के और भी मसले हैं कभी वक्त मिले तो पंजाब आइए तभी तो पता चलेगा । कि देश के लिए इतनी लड़ाई लड़ने वाले राज्य को उड़ता पंजाब का दर्जा देना या नशेड़ी पंजाब का मुद्दा स्टूडियो में बैठ कर उठाना कोई ज्यादा कठिन नही।जनता की बीच में से उठने वाले सवालों को स्टूडियो में से उठाने के लिए तो आप को अच्छा तजुर्बा है। पर कभी सच में पंजाब आइए तो आपको वाकिफ करवाएंगे कैसा है पंजाब ? और हा जिन डेरों के प्रभाव में फसने की बात का उलेख अपने किया। जरा पंजाब आइए तो इन डेरों के प्रभाव से रूबरू करवायेगे। बात नशों की है तो विश्वाश से कहता हूँ कि डेरों ने पंजाब को नशे से जरूर बचाया है। पंजाब ने आतंकवाद के काले दिनों के संताप की बात को तो आप सीधा लॉजिक देके हवा में उडा देंगे कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को व्यथा सुन लिजिए वो राज्य आपसे कितना पिछड़े हुए हैं। भाई साहिब देश के प्रवेश द्वार पे हर बार दुश्मन के गोले हमने सबसे ज्यादा खाये हैं। यदि पंजाब के कन्धों में इतना बल न होता तो शायद पाकिस्तान और भारत के बॉर्डर की रेखा दिल्ली के आस पास होती। कभी हमें भी स्पैशल स्टेटस का दर्जा दिलवाने के लिए जोर लगा दीजिये। पंजाब आपका एहसानमंद होगा। उसके लिए भी आपके पास पैमानों और तथ्यों की भरमार होगी। बस पंजाब में रहने वाले उन पंजाबियों का भी सोचिये जो पंजाब की खुशहाली को बनाये रखने के लिए पॉजिटिव है। अगर किसी बात पर कोई गुस्ताखी हुई तो छोटा मुंह और बड़ी बात समझ कर माफ़ करना । आपकी कर्तव्य , निष्ठा और जिमेवार पत्रकारिता पर कोई ऊँगली नही उठा रहा।
आखिरकार हर किसी को हक़ है अपनी बात कहने का मै तो बस इतना कहना चाहता हूँ।
मै पंजाबी हूँ नशेड़ी नही।
यूँ मत उड़ाये मेरे पंजाब को।