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India Speaks Daily > Blog > मीडिया > मेनस्ट्रीम जर्नलिज्म > रवीश कुमार आपको सीबीआई अधिकारी की घुटन की बड़ी चिंता है?
मेनस्ट्रीम जर्नलिज्म

रवीश कुमार आपको सीबीआई अधिकारी की घुटन की बड़ी चिंता है?

Manish Thakur
Last updated: 2017/07/31 at 11:08 AM
By Manish Thakur 701 Views 8 Min Read
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8 Min Read
India Speaks Daily - ISD News
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कई बार सोचता हूं अपने मालिक पर हो रही कानूनी कारवायी को पत्रकारिता पर हमला कह कर हंगामा मचाने और ड्यूटी के दौरान पत्रकारों पर हमला होने पर चुप्पी लादने वाले फरेबियों पर कुछ न बोलूं। लेकिन जब देखता हूं कि इन फरेबियों की ऊंची दूकान के कारण जो हजारों इनके फॉलोवर बन गए हैं उनके बीच अपनी अज्ञानता और फरेब के मेल से झूठ फैलाकर,शालिनता और ईमानदारी का आवरण ओढे पत्रकारिता की आड़ में जो धंधा कर रहे हैं वो समाज के लिए खतरनाक है! लिहाजा इन फरेबियों को बेपर्द किया जाना जरूरी है। हां उनकी चिंता नहीं, जो नफ़रत के इस सौदागर के फ़रेब में सुकून पाते हैं। लेकिन झूठ और फ़रेब के इन धंधेबाज़ों को बेपर्द किया जाना जरूरी है!

किसी की शालिनता,मासूमियत और भोलापन हमें अक्सर अपनी ओर खिंचता है। राजनीति में अरविंद और पत्रकारिता में रवीश इसके उदाहरण हैं। प्रचंड बहुमत से जनता का भरोसा जीते अरविंद अब बेपर्द होने के कारण अपनी खोल में घुस चुके हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में प्रणय राय द्वारा हिंदी पट्टी को पेश किए गए एक नमूने की साख अभी एक वर्ग में हीरो की बनी हुई है।

अपने मालिक पर हुए सीबीआई और ईडी की जांच के बाद आजकल ये पत्रकार सीबीआई और ईडी की बेबसाईट खंघाल रहा है। बड़ी मेहनत के बाद इन्होने पाया कि मोदी सरकार के आने के बाद नवंबर 2014 से दिसंबर 2016 तक सीबीआई ने कुल 586 एएफआईआर दर्ज की है। इनके मुताबिक 2015 में 285 और 2016 में 283। नहीं पता साहब ने पहले के आंकडे क्यों नहीं खंघाले? ख़ैर, इन्हे इतना तो पता होगा कि इनके मालिक पर प्राथमिकी 2014 से सालों पहले से है।

अब देखिए आगे कटाक्ष करते हुए बांचते हैं कि सीबीआई जब प्राथमिकी करती है तो एकाएक सारे रिपोर्टरों को कैसे पता चल जाता है? सारे रिपोर्टर उस विरोधी दल के नेता के पास तुरंत कैसे पहुंच जाते हैं जिनके खिलाफ मामला दर्ज होता है या छापा पड़ता? वे आगे टोन्ड कसते हैं क्या सूत्र गुप्त रुप से प्रेस कांफ्रेस करते है? अब देखिए, रवीश जैसे पत्रकार ने कभी ग्रांउंड रिपोर्टिंग तो कि नहीं। उन्हें क्या पता कि सूत्र क्या होता है? खबरों के लिए रिपोर्टर,क्या क्या जद्दोजहद करता है? सबसे अहम यह कि सीबीआई,पुलिस और जांच एजेंसियों की रिपोर्टिंग कैसे होती है? कैसे जांच एजेंसी जरुरी खबरे चालाकी से लिक करती है। और वो पहले लिकं उस रिपोर्टर के पास करती है जिसके साथ किसी अधिकारी या कर्मचारी के बेहद भरोसे के संबंध होते हैं। ऐसे मुर्ख पत्रकार जिसने कभी जमीन पर पत्रकारिता नहीं की बस स्टूडियो में बैठकर ज्ञान बांच दिया या लाला के ब्रांड के रुप में ‘रवीश की रिपोर्ट’ नाम से कोई सास बहू टीवी सिरियल टाईप पत्रकारिता की हो वो जब सूत्रों की बात करेगा तो पत्रकारिता का मजाक ही तो उड़ाएगा!! ऐसे फरेबियों से कोई पूछे की जिस चैनल का कभी कोई टीआरपी नहीं वह सबसे ज्यादा सैलरी कैसे देता है अपने पत्रकारों को?

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खैर! रवीश जैसे कूप मंडूक को उसके रिपोर्टर ही मसझा सकते हैं की सीबीआई जैसी दुनिया की कोई भी एजेंसी ऐसे ही काम करती है। उसे कब और कैसे खबरें लिक करनी है वो जानती है। वो किसी पत्रकार के लिए काम नहीं करती जनाब। मीडिया जिस खबर को ब्रेकिंग मानता है वो दरअसल जांच एजेंसी के काम करने का एजेंडा होता है। और एक जगह लिक खबर फिर एक दो जगह लिक होने के बाद जंगल की आग की तरह खबर फैलती है। दुनिया की हर जांच एजेंसी का काम करने का कमोवेश यही तरीका होता है और रिपोर्टर वही बड़ा जिसके पास भरोसेमंद सूत्र से सबसे पहले खबर पहुंची हो। यह पत्रकारिता का आधारभूत पैमाना अब तक रहा है जिसे रविश जैस पक्षकार घालमेल कर या तो भ्रम पैदा करते हैं या अपने मुर्खता का प्रदर्शन करते हैं।

सवाल अहम यह है कि जिस चैनल का मालिक पत्रकार होने का सर्टिफिकेट बिना पत्रकारिता की डिग्री के इस आधार पर नौकरी के रुप में देता हो कि लड़का या लड़की किस अधिकारी या मंत्री का नजदिकी रिश्तेदार है,ताकि खबरें आसानी से उस तक पहुंचे और सत्ता और व्यव्स्था से सेटिंग गेंटिंग में आसानी से करावा सके। वहां सालों से नौकरी कर रहे पक्षकार को यह सब नहीं पता हो यह समझ से पड़े है। यदि इतनी भी समझ नही है तो ऐसे फरेबियों से जहां तहां पूछा जाना चाहिए की दंभ किस बात का प्यारे?

अब इस फरेबी को आगे पढिए, लालू यादव के परिवार के भ्रष्टाचार में फसने के मामले की बिना चर्चा किए कहता है कि हमारे कानून में जब तक अपराध साबित नहीं होता व्यक्ति निर्दोष होता है। कानून की तो इस मामले में इसे समझ है लेकिन इसके फॉलोवर्स को पूछना चाहिए कि 12 साल तक तुम्हारे चैनल पर लगातार जनता द्वारा चुने गए एक मुख्यमंत्री को अपराधी क्यों साबित किया गया? तब यह ज्ञान कहां था तुम्हारा? ये तब, जब केंद्र में दुसरी पार्टी की सरकार होते हुए सीबीआई जांच और सुप्रीम कोर्ट की बनायी एसआईटी द्वारा किसी को उस जनप्रतिनिधि के ऊपर लगे आरोप को निरस्त कर दिया गया। रही बात लालू प्रेम से तो सामने आकर साबित करो की जो आरोप लगा है लालू पर वो फ़र्ज़ी है। वे ईमानदारी के युग पुरुष है। उन्हें फसाया जा रहा है। लेकिन ये नहीं कर पा रहे। सवाल सिर्फ यह है कि पक्षकारिता ठीक है,करो पेट के लिए लेकिन शालिनता के आवरण में,भोलेपन के फरेब में, कमाल है!

रवीश का सवाल है कि दो साल मे डीपी यादव,ओंमप्रकाश चौटाला, पीके थूंगल जैसे नेता को सजा हुई जो विपक्ष के नेता थे। इस फरेबी को कैसे समझाया जाए कि इन तमाम नेताओं पर (चौटाला को छोडकर) दशकों पुराने मामले हैं । सवाल यह कि डीपी य़ादव,चौटाला और थुंगन जैसे अपराधी नेता से आपकी हमर्ददी क्यों है रवीश बाबू? लालू के प्रति हमदर्दी में सीबीआई,ईडी को कलंकित कर अपने मालिक की सेवा कर रहे हो यह तो ठीक है भाई, लेकिन ये तो बताओ कि लालू के ऊपर लगे आरोप यदि गलत हैं तो करो न खुफिया पत्रकारिता साबित कर दो न कि सीबीआई और ईडी गलत फसा रही है लालू को। बाबू साहब इसके लिए पत्रकार होना पड़ेगा तुम्हें। पक्षकारिता से ये सब न कर पाओगे। बस फरेब ही कर पाओगे प्यारे।

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TAGGED: ndtv scandal, ravish kumar fraud, ravish kumar ndtv, रवीश कुमार
Manish Thakur July 25, 2017
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