सुमंत विद्वांस। लोकसभा चुनाव के बारे में यह मेरी पहली और अंतिम पोस्ट है। मैंने अक्टूबर 2021 में ही यह कहा था कि भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में तेजी से हार की ओर बढ़ रही है। फिर मैंने वही बात नवंबर 2021 और जून 2022 में भी दोहराई। तब कई लोग मुझ पर हंस रहे थे, लेकिन मैं चुप रहा क्योंकि मैं जानता था कि समय सबको जवाब देगा। आज वह जवाब आ गया है।
मुझे बहुत दुःख है कि मैंने तीन साल पहले जो बात कही थी, वह आज सच साबित हुई। उससे भी अधिक मुझे यह आश्चर्य भी है कि जो बात मैंने भारत से इतनी दूर अमरीका और कनाडा में रहते हुए भी देख ली थी, वह बात अधिकांश लोगों को भारत में होते हुए भी कैसे दिखाई नहीं दी!
सरकार भले ही फिर बन जाए, लेकिन जो पार्टी पिछले चुनाव में अकेले ही 300 से अधिक सीटें जीत गई थी, वह इस बार यदि 272 का बहुमत पाने के लिए भी जूझ रही है, तो यह वास्तव में उसकी हार ही है, जीत नहीं। अबकी बार 400 पार तो बहुत दूर रहा, इस चुनाव ने यह भी दिखा दिया है कि मोदी का नाम भी अब जीत की गारंटी नहीं है।
भाजपा चाहे हमेशा की तरह इस बार भी अपनी हार के लिए मतदाताओं को गालियां दे या कितनी विदेशी शक्तियां भारत को हराने में लगी हुई हैं, इस बारे में बड़ी-बड़ी बातें बताए, लेकिन सत्य यही है कि अपने कर्मों का हिसाब सबको चुकाना पड़ता है।
कश्मीर में 370 हटाकर बहुत अच्छा किया था, लेकिन उसके बाद कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की बजाय अरब और अमीरात जैसे देशों के लिए कश्मीर के दरवाजे खोल दिए। यह कैसी कूटनीति थी? क्या आप इतना भी नहीं समझते कि कल यदि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के लिए युद्ध हो जाए, तो अरब और अमीरात किसके साथ खड़े रहेंगे? आज भी वे किसके लिए खड़े हैं?
एक कश्मीरी आईएएस अधिकारी अपनी नौकरी छोड़कर राजनीति में उतरा था और फिर भारत के विरोध में तुर्की से भी हाथ मिला रहा था, उसे पकड़कर जेल भेजने की बजाय इस सरकार ने उसके हाथ-पैर जोड़कर उसे एक बड़े पद पर नियुक्त किया। एक महिला जेएनयू में भारत तोड़ने के नारे लगाती थी, वह आज शायद कश्मीर में किसी बड़े पद पर नियुक्त है। दूसरी ओर कश्मीरी पंडित आज भी शरणार्थी हैं और मोदी जी की कश्मीर पुलिस आज भी उन पर लाठियां बरसाती है। ऐसे अनेकों उदाहरण पूरे देश से मिल जाएंगे।
कोविड काल में दिल्ली, इंदौर व जाने कहां कहां अस्पतालों में कुछ विशेष लोगों ने भीषण उत्पात मचाया था, नियम तोड़े थे, चिकित्सकों व नर्सों पर हमले किए थे। उनमें से किसी पर कभी कोई कार्यवाही नहीं हुई। लेकिन अन्य आम लोगों को छोटी छोटी बातों के कारण भी बराबर प्रताड़ित किया गया। शाहीन बाग के नाम से पूरे एक साल तक दिल्ली में कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई गईं और 56 इंच की सरकार मिमियाती रही। फिर भीषण दंगा हुआ, सड़कों पर गोलियां चलीं, लोगों की लाशें नालियों में मिलीं। ये देश की राजधानी का हाल था।
फिर किसान आन्दोलन के नाम पर एक और धरना चला। उसमें कितने सारे कानून रोज तोड़े गए। अनेकों अपराध हुए। एक व्यक्ति को तलवारों से खुलेआम काट डाला गया, एक युवती से दुष्कर्म का समाचार आया, और उसके बाद गणतंत्र दिवस पर जिस प्रकार ट्रैक्टरों से सीधे पुलिस पर हमला हुआ, वह सब दृश्य पूरे देश के लोगों ने टीवी पर लाइव देखे थे। उसके बाद भी कुछ करने का साहस सरकार में नहीं था, बल्कि ऐसे भारत विरोधी आंदोलन को प्रोत्साहित करने वालों को इसी सरकार ने अमरीका से बुला बुलाकर पद्म पुरस्कार बांटे। कृषि कानून भी वापस ले लिए।
जिन लोगों को खालिस्तान समर्थक बताकर पुरानी सरकारों ने ब्लैक लिस्ट में डाल दिया था, इस महान सरकार ने उस ब्लैक लिस्ट को ही खत्म कर दिया। भारत के प्रधानमंत्री को किस प्रकार एक पुल पर कई मिनट तक बंधक बनाकर रखा गया था, यह दृश्य भी सबने लाइव देखा था। फिर भी अपना कर्तव्य पूरा करने और अपराधियों को दंडित करने की बजाय सरकार तुष्टिकरण में ही लगी रही।
जोधपुर में पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों की झुग्गियों पर बुलडोजर चले, पर उसके विरोध में राजस्थान भाजपा के किसी सांसद या विधायक का मुंह नहीं खुला। उनके समर्थन में कोई खड़ा नहीं हुआ। लेकिन दिल्ली में रोहिंग्याओं को उसी भाजपा सरकार ने मुफ्त मकान बांटे। जो सीएए 2019 में आ गया था, उसे 2024 चुनाव तक लागू नहीं किया, पर उसके नाम से वोट अवश्य मांगे।
मणिपुर और बंगाल से इतने दंगों, अपराधों और हत्याओं के समाचार रोज आते रहे, पर मोदी जी अपनी ममता दीदी से उपहार में आम और कुर्ते लेते रहे और गाजा का युद्ध रुकवाने की चिंता करते रहे।
जिस वर्ग के लोगों ने साढ़े पांच सौ वर्षों तक राम मंदिर का विरोध किया, उस पवित्र मंदिर के गर्भगृह का निर्माण करने के लिए पूरे देश में केवल वही लोग मिले? जिस मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोलियां चलवाई थीं, उसे किस योगदान के लिए पद्म विभूषण दिया गया? राम मंदिर के उदघाटन समारोह में शहीद कारसेवकों के परिवारों के लिए कोई स्थान नहीं था, लेकिन हाशिम अंसारी, अखिलेश यादव और रणबीर कपूर वहां विशेष आमंत्रित क्यों थे? राम मंदिर के निर्माण में उनका क्या योगदान है?
प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न देने वाली सरकार को आज तक वीर सावरकर उस सम्मान के योग्य क्यों नहीं लगे? जिस शरद पवार के कृषि मंत्री होते समय भारत के हजारों किसानों की आत्महत्याओं के समाचार आते थे, उसे किस योगदान के लिए पद्म पुरस्कार दिया गया? जिस अजीत पवार को भाजपा महाराष्ट्र का सबसे भ्रष्ट नेता बताती थी, उससे गठबंधन क्यों किया गया? अंधों को भी ये बातें दिख सकती हैं, लेकिन अंधभक्तों को नहीं।
अपने मतदाताओं को धोखा देने और शत्रुओं के तृप्तिकरण में मूर्खता की सारी सीमाएं इस सरकार ने पार कर दी थीं। लेकिन यदि आप मूर्ख हैं, तो उसका मतलब यह नहीं है कि सब मूर्ख हैं। संसाधनों पर अपना अधिकार समझने वालों की हमेशा यही सोच रही कि सरकार उन्हें जो दे रही है, वह कोई अहसान नहीं बल्कि उनका अधिकार ही है। उन्होंने सारी सुविधाएं लीं, पर वोट फिर भी नहीं दिया। अपने सिद्धांतों के साथ कैसे खड़े रहना चाहिए, यह उनसे सीखिए। सत्ता मिलते ही सब सिद्धांत भूल जाने वालों को न जाने कब सद्बुद्धि आएगी।
मन्दिरों को तोड़कर तीर्थस्थलों को पर्यटन स्थल बनाना, आरक्षण के मुद्दे पर लोगों को आपस में लड़वाना, सांप्रदायिक उन्माद बढ़ाना, अपराधियों को दंडित करने की बजाय बढ़ावा देना, अपनी विचारधारा को त्यागकर विरोधी विचारधारा को पोषण व प्रोत्साहन देना, अपने लिए खड़े होने वालों को अकेला असहाय छोड़ देना और अपने शत्रु को और मजबूत बनाने वाले सभी काम करना इस सरकार की नीतियां रही हैं। राष्ट्रवादी विचारधारा के नेतृत्वकर्ताओं के मन में ही इतनी हीनभावना क्यों है, यह प्रश्न मुझे हमेशा परेशान करता है।
आप भले ही यह मानें कि मोदी जी भारत के सबसे सफल प्रधानमंत्रियों में से एक हैं लेकिन मैं उन्हें भारत के सबसे विफल प्रधानमंत्रियों में से एक मानता हूं। लोगों ने एक नहीं बल्कि दो-दो बार उन्हें पूर्ण बहुमत की सरकार दी और उन्हें अभूतपूर्व जनसमर्थन मिला। लाखों लोगों ने निस्वार्थ भाव से उनकी विजय के लिए काम किया। अपने मित्रों, परिवारजनों से भी झगड़े मोल लिए, अपनी नौकरी व्यवसाय में भी नुकसान उठाया पर उनके समर्थन में खड़े रहे; केवल इसी आशा में कि वे जीतने के बाद दशकों के अन्याय को दूर करेंगे, भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान के लिए कार्य करेंगे, अपराधियों को दंडित करेंगे और हमारी सभ्यता की पुनर्स्थापना के लिए कार्य करेंगे। लेकिन इतने अभूतपूर्व जनमत और जनसमर्थन के होते हैं भी दस वर्षों में मोदीजी ने क्या किया, यह सबको दिख रहा है।
वैसे तो लिखने को मैं और भी बहुत कुछ लिख सकता हूं। लेकिन भारत की राजनीति पर कुछ भी बोलना समय की बर्बादी है, इसलिए मैंने बहुत पहले ही बोलना बंद कर दिया है। उसकी बजाय मैं अपना समय आगे की योजनाओं पर काम करने में लगा रहा हूं और उसके परिणाम अगले कुछ वर्षों में आप सबको अपने आप ही दिखेंगे। कुछ दिनों पहले मैंने लिखा था कि इस समय चुनाव है इसलिए कुछ लिखने को मत कहिए क्योंकि चुनाव है इसीलिए मैं चुप हूं। अब चुनाव बीत चुका है, इसलिए जितना कहना आवश्यक था, उतना मैंने आज कह दिया। उसके अलावा अब मुझे इस विषय पर कुछ नहीं कहना है।
अंत में केवल एक बात पुनः दोहरा रहा हूं, जो मैं पहले भी कह चुका हूं। हिन्दुओं के लिए एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई का ही विकल्प है। इसलिए किसी भी सरकार, पार्टी या राजनेता को अपना हितैषी समझने की भूल न करें। उससे अधिक मुझे कुछ नहीं कहना है। सादर!