हमारे देश में इतिहास साम्राज्यों और युद्धों के आधार पर लिखा गया है, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय इतिहास लिखा गया है। कभी सामाजिक इतिहास लिखा ही नहीं गया। विध्वंस का इतिहास हर जगह मिल जाएंगे लेकिन सामाजिक उत्कर्ष का इतिहास बिरले ही मिलता है। जबकि भारत के उत्कर्ष का मूल तत्व ही धर्म और अर्थ रहा है। लेकिन धर्म और अर्थ के संयोजन को ही भुला दिया गया है। यह बात ‘काशी एक उत्सव’ नाम से आयोजित फोटो प्रदर्शनी के समापन आयोजन के मुख्य अतिथि इंडिया टुडे के संपादक अंशुमान तिवारी ने कही।
इस मौके पर हाल ही में प्रकाशित अपनी पुस्तक “लक्ष्मीनामा” के संदर्भ में उन्होंने कहा कि हमारे देश में हमेशा से ही साम्राज्यों का इतिहास लिखा गया। इसके तहत वंशजों, राजाओं और भौगोलिक युद्धों का ही इतिहास लिखा गया। कभी सत्ता से दूर समाज को प्रगति की राह पर आगे बढ़ाने वाले धर्म और व्यापार का इतिहास लिखा ही नहीं गया। जबकि हमारे देश के इतिहास का मूल तत्व ही धर्म और अर्थ रहा है। इसलिए उन्होंने हाल में प्रकाशित अपनी नई किताब “लक्ष्मीनाम” में धर्म और अर्थ के संदर्भों को ही पाठकों के सामने लाने का प्रयास किया है।
मुख्य बिंदु
* “काशी एक उत्सव” नाम से आयोजित फोटो प्रदर्शनी का आज हुआ समापन
* विगत 10 अक्टूबर से आयोजित इस प्रदर्शनी का देश-विदेश से आए कई गणमान्य अतिथियों ने किया अवलोकन
इस मौके पर अंशुमान तिवारी जी ने प्राचीन इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास के संदर्भ में व्यापार और धर्म के योगदान के बारे में चर्चा की। अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि अपने आधुनिक इतिहास में 1947 में स्वतंत्रता मिलने से लेकर 1950 में संविधान बनने तक के काल का विवरण नहीं मिलता है। उन्होंने कहा कि वे इन तीन सालों के इतिहास के बारे में आगे काम करेंगे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इन तीन सालों के दौरान हमारा बाजार सबसे ज्यादा उदार था। भारतीय बाजार के उदार चरित्र को बदलने का प्रयास उसके बाद से शुरू हुआ।
काशी जैसी पैराणिक तथा संताप और पीड़ा रहित नगरी की सांस्कृतिक धरोहरों और लोक संस्कृति को समेट कर तस्वीर के रूप में ‘काशी एक उत्सव’ नाम से आयोजित फोटो प्रदर्शनी का आज समापन हो गया। इस आयोजन के मुख्य अतिथि इंडिया टुडे के संपादक अंशुमान तिवारी के अलावा उत्तर प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन के चेयरपर्सन क्षिप्रा शुक्ला तथा बिहार से आए भाजपा नेता अविनाश शामिल थे। “काशी एक उत्सव” नाम से आयोजित फोटो प्रदर्शनी के इस समापन मौके पर आईआईपी के निदेशक राजेश गोयल ने जहां काशी की पौराणिकता के साथ वहां की सांस्कृतिक धरोहरों के अलावा काशी के उद्भव और विकास के बारे में बताया वहीं अपने संक्षिप्त संबोधन में इंस्टीट्यूट के सांस्कृतिक उद्देश्य के बारे में भी अतिथियों को अवगत कराया।
URL: Religion and wealth have been essence of flourishing of India
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