क्या करेगा नोबेल प्राइज का ? जब बदले में सब बेच दिया;
धर्म को बेचा , राष्ट्र को बेचा , पूरे देश को बेच दिया ।
राष्ट्र को कब तक धोखा देगा ? क्या राष्ट्र कभी न जानेगा ?
कितनी भी काली रात रहे , पर नया सवेरा आयेगा ।
नया सवेरा आने को है , प्रकाश ज्ञान का छायेगा ;
महामूर्ख कितना है हिंदू ? पर अब न मूर्ख रह पायेगा ।
चरित्रवान गुरु कई मिले हैं , सोशल- मीडिया माध्यम है ;
बुद्धिमान ये सारे गुरु हैं , कुछ ज्यादा कुछ मध्यम हैं ।
नोबेल-प्राइज बांटने वाले , खुद टुकड़ों में बंट जायेंगे ;
जेहादी घुस चुके वहां पर , उनसे वे क्या बच पायेंगे ?
नोबेल-प्राइज का एजेंडा, जल्दी दुनिया से मिट जायेगा ;
नहीं बजेगी इसकी बांसुरी , बांस नहीं रह जायेगा ।
जहां – जहां जेहादी पहुंचे , नष्ट – भ्रष्ट सब कर डाला ;
केवल धर्म- सनातन ऐसा , पस्त सभी को कर डाला ।
पर एक ही भेदी लंका ढाता , भारत में कई करोड़ हैं ;
उस पर भी दुर्भाग्य हमारा , उनका गुंडों से गठजोड़ है ।
सामने सबसे बड़ा है संकट , जैसा पहले कभी नहीं था ;
हिंदू – नेता इतना कायर , चरित्रहीन , मक्कार नहीं था ।
हर हिंदू को ये तथ्य समझना , वरना हिंदू को नहीं उबरना ;
अबकी चूके मिट जाना है , एक का भी मुश्किल है बचना ।
दो साल का समय है केवल , हर – हिंदू को संभलना है ;
आम-चुनाव की करो तैयारी , अब्बासी-हिंदू से बचना है ।
अब्बासी- हिंदू कोई न जीते , चाहे किसी भी दल का हो ;
जीते केवल हिंदूवादी , किसी भी दल का या निर्दल हो ।
जहां नहीं ऐसे प्रत्याशी , तब हर हाल में नोटा करना ;
नब्बे-प्रतिशत भी चुनाव रद्द हों , इसकी चिंता मत करना ।
गिने-चुने प्रत्याशी जीते , पर सब होंगे हिंदू-वादी ;
इन्हीं की तब सरकार बनेगी , विश्व की पहली हिंदूवादी ।
एकमात्र बस मार्ग यही है , हिंदू – धर्म बचाने का ;
न्याय का शासन पाने का , व हिंदू- राष्ट्र बनाने का ।
समय हाथ से फिसल रहा है , अब न समय गंवाना है ;
सारे कामों को पीछे कर दो , पहले धर्म बचाना है ।
धर्म बचेगा – राष्ट्र बचेगा , भारत भी बच जायेगा ;
धर्म – सनातन शीतल – छाया , जो पूरा विश्व बचायेगा ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार: ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”