कमलेश कमल। भेड़ चाल और मूर्खता में हमारा कोई मुकाबला नहीं। 20 से अधिक देशों में व्यापक ट्रायल के बाद WHO ने कहा कि रेमिडिसीवीर न मौत रोकता है, न critical कंडीशन में जाने से रोकता है। पर, हमें वही चाहिए। कितनी भी कीमत ले, कोई दे दे। रेमिडिसीवीर नहीं हुआ, रामबाण हो गया। हद है!
अपने यहाँ AIIMS सहित तमाम बड़े संस्थानों ने इसके पीछे भागने से मना किया। किसी भी बड़े डॉक्टर से पूछिए तो कहेंगे लोग पागल हो गए हैं…किसी ने कह दिया कि उससे कुछ आराम लगा तो 500-700 का इंजेक्शन ब्लैक में 30-40 हज़ार में लेंगे।
भाई, रेमिडिसीवीर दवाई उद्योग में अभी ऊपरी कमाई का सबसे बड़ा ट्रिक है। दवाई के दलाल इसकी उपयोगिता को बढ़ा-चढ़ा कर मार्केट बनाते हैं, फ़िर आँख-मूँद कर भागने वाले लोग उनकी जाल में फँसते हैं। पूछियेगा किसी डॉक्टर से…आंशिक राहत देने के अलावा यह क्या करता है और इसका विकल्प कितने सौ में आ जाता है?
जो लोग मुझे या मेरी टीम को इसके लिए फोन करते हैं, उन्हें बताया जाता है : “उपलब्ध तो आपसे ही हो जाएगा पैसा लेकर अपने शहर में ऐसे circle में घूमने पर; परंतु इतना पैसा बेकार क्यों करना?? सही चिकित्सा करवाएँ!”