यह न केवल देश की सभ्यता का फर्क दिखाता है बल्कि सामुदायिक संस्कार के प्रभाव को भी झलकाता है। हम दुश्मन देश के किसी निर्दोष आम नागरिक को पाकिस्तान की तरह “कुलदीप जाधव” नहीं बनाते। जबकि पाकिस्तान कई बार यह साबित कर चुका है कि वह कुलदीप जाधव जैसे निर्दोष भारतीय को अगवा कर खूंखार आतंकी साबित करने से बाज नहीं आता।
रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता है कि “क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन विनीत सरल हो”। हमारी सेना और देश पर यह पद सटीक बैठता। हमारी सेना संकट के समय में भारतीय संस्कार और संस्कृति को नहीं भूलती। अगर हमारी सेना युद्ध में दुश्मन के लिए काल है, तो निर्दोषों और बच्चों के लिए दया का सागर। तभी तो सौगात में आम नागरिकों और जवानों की लाश भेजने वाले पाकिस्तान को आज हमारी सेना ने सीमा लांघकर भारत आए 11 वर्षीय मोहम्मद अब्दुल्ला को उपहार में नए कपड़े और मिठाई देकर वापस सीमा पार भेज दिया।
मुख्य बातें
*चार दिन पहले सीमा पार कर पुंछ आए 11 साल के मोहम्मद अब्दुल्ला को नए कपड़े और मिठाई देकर किया विदा
*भारतीय संस्कार और सभ्यता हमारी सेना की प्रकृति में सर्वोपरि, दुश्मन देश के बच्चे के प्रति दिखाई संवेदना
मोहम्मद अब्दुल्ला नाम के पाकिस्तानी किशोर का दोष सिर्फ इतना था कि वह गलती से सीमा पार कर जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में आ गया था। हमारी सेना ने संवेदनशीलता की मिसाल पेश करते हुए चार दिन बाद उसे नए कपड़े और मिठाई के साथ पाकिस्तानी अधिकारी को ससम्मान सौंप दिया।
एक तरफ पाकिस्तान है और दूसरी तरफ हम, हमारी भौगोलिक स्थिति जितनी साथ दिखती है, भावनात्मक स्थिति उतनी ही भिन्न। पाक सेना आए दिन हमारे जवानों और आम नागरिकों की लाशें भेजती रहती है, वहीं हमारी सेना संकट के समय में भी मानवीय संस्कारों को ही सर्वोपरि मानती है। एक तरफ गलती से भी हमारे लोग बॉर्डर क्रॉस कर जाएं तो पाकिस्तानी सेना उसे “कुलदीप जाधव” बना देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती। वहीं हमारी तरफ आने वाले हर पाकिस्तानी के साथ हमारी सेना काफी संवेदनशीलता के साथ पेश आती है। अगर वह निर्दोष और खोटमुक्त हुआ तो हमारी सेना भारतीय संस्कार का अदम्य उदाहरण पेश करते हुए मेहमान की तरह उपहार देकर भेजती है।
ध्यान रहे जम्मू-कश्मीर का पूंच इलाका आतंकियों और घूसपैठियों के लिहाज से काफी संवेदनशील रहा है। इतने संवेदनशील इलाके में गलती से भी सीमा में घुस आना सामान्य घटना नहीं हो सकती। फिर भी हमारे सैनिकों ने घटना की गंभीरता नहीं उस किशोर के प्रति अपनी संवेदना को वरीयता दी है। वीर और कायर में यही तो फर्क होता है। वीर परिस्थित के वश में नहीं होता वह परिस्थिति को अपने वश में करना जानता है। जबकि पाकिस्तान जैसा कायर या तो मौके की ताक में रहता है या फिर परिस्थिति को अनुकूल बनाने की फिराक में। अगर आज हमारे देश का कोई कैलाश गलती से पाकिस्तान की सीमा में चला जाता तो पाकिस्तान उसे दूसरा जाधव बनाने के प्रयत्न में जुट गया होता। दुनिया को बताता कि भारत का किशोर जासूस पाक में धरा गया।
लेकिन हमारी सेना ने क्या किया? उन्होंने दुश्मन देश के उस किशोर के साथ वही व्यवहार किया जो अपने देश के बच्चे के साथ किया जाता है। उसे पुलिस के हवाले कर दिया। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मानवीय आधार पर उसे छोड़ने का फैसला किया। भारतीय सेना और पुलिस ने पाकिस्तान किशोर को छोड़कर वह मिसाल कायम की है! पूरी दुनिया में शायद ही किसी देश ने अपने दुश्मन देश के बच्चों को इस प्रकार उपहार देकर भेजा हो। यह सिर्फ भारत या भारत की सेना ही कर सकती है।… जय हो…
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