भीमा कोरेगांव हिंसा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के मामले में अर्बन नक्सलियों की हुई गिरफ्तारी से कई राज पर से पर्दा उठा है। इस मामले के सामने आने के बाद अरबन नक्सल और न्यायपालिका के बीच रिश्ते पर भी सवाल उठ रहे हैं? पुलिस ने जैसे ही पुणे ले जाने के लिए गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया वैसे ही दिल्ली की न्यायपालिका हरकत में आ गई। ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उन लोगों की गिरफ्तारी को हाउस एरेस्ट में बदल दिया तथा सभी को बेल के लिए लोअर कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को कहा था। ऐसे में नवलखा का पुणे जाना अनिवार्य था। इसके बावजूद पहले तो हाईकोर्ट ने सुबह के छह बजे इस मामले पर सुनवाई की और फिर नवलखा को दिल्ली से बाहर ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। जिस प्रकार दिल्ली हाईकोर्ट ने नवलखा के मामले की सुनवाई में हड़बड़ी दिखाई वह संदेह पैदा करता है!
जिस प्रकार दिल्ली हाईकोर्ट में सुबह छह बजे सुनवाई हुई, इसका मतलब है कि कोर्ट चार बजे खुला होगा। क्योंकि सुनवाई से पहले कई सारी औपचारिकताएं पूरी की जाती है। क्या आपने किसी आम आदमी को लेकर इस प्रकार की हड़बड़ी देखी है। दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने इस मामले को पहले ही जस्टिस एस मुरलीधर कोर्ट में भेज दिया था। इसके बाद जस्टिस एस मुरलीधर ने इस मामले की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया कि गौतम नवलखा को इस समय दिल्ली से बाहर नहीं ले जाया जा सकता है। इस मामले में जब न्यायधीश मुरलीधर से इस हड़बड़ी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जब तक कोई व्यक्ति हिरासत में होता है तब तक हर मिनट कोर्ट से जुड़ा होता है, इसलिए कब सुनवाई हुई या कब कोर्ट खोला गया कोई मायने नहीं रखता है। ऐसा कहने से पहले जस्टिस मुरलीधर को यह भी बताना चाहिए कि इतने दिनों में कितनी बार आम-लोगों के लिए कोर्ट का दरवाजा सुबह छह बजे खुलवाया है?
इसे लेकर वरिष्ठ पत्रकार जे गोपीकृष्ण ने सवाल उठाया है कि आखिर न्यायधीश मुरलीधर ने किस प्रकार यह आदेश दिया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तार अर्बन नक्सलियों की नजरबंदी की मियाद बढ़ाते हुए अपने गिरफ्तारी के मामले को पुणे ट्रायल कोर्ट में उठाने को कहा है?
Hope Maharashtra Police will challenge the Delhi HC Order in Supreme Court. How Justice Muralidhar of Delhi HC passed such an order when recent SC Order asking arrested persons to approach Pune trial court, extending their house arrest. ??
Cc : @Law1Leo – Any opinion? https://t.co/5p3rCRx2lG
— J Gopikrishnan (@jgopikrishnan70) October 1, 2018
इस मामलेके बाद चर्च आम हो गयी है कि न्यायधीश मुरलीधर तथा गौतम नवलखा के बीच गहरे रिश्ते हैं, जिसे बचाने के लिए न्यायधीश मुरलीधर ने सुबह छ बजे ही कोर्ट खोल दिया! ऐसा कर के उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की ही अवहेलना की है। लेकिन जिस प्रकार नक्सलियों के लिए देश का कानून और संविधान कोई मायने नहीं रखता उसी प्रकार न्यायधीश मुऱलीधर पर भी अपने अधिकार का दुरुपयोग करने का आरोप लग रहा है।
वैसे भी जस्टिस मुरलीधर की पत्नी उषा रंगनाथन तथा गौतम नवलखा के बीच पहले से संबंध होने के आरोप हैं। दोनों ने एक साथ कई प्रोजेक्ट में काम किया है। हालांकि सार्वजनिक रूप में जस्टिस मुरलीधर तथा उषा रंगनाथन पति पत्नी के संबंधो को स्वीकार करने से आज तक बचते रहे हैं। लेकिन एक संपत्ति विवाद में उषा रंगनाथन का नाम आया है जहां उनकी पहचान दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एस मुरलीधर की पत्नी के रूप में दिखाई गई है।
इस प्रकार जस्टिस मुरलीधर उनकी पत्नी उषा रंगनाथन तथा गौतम नवलखा के बीच गहरी दोस्ती का खुलासा हुआ है। आरोप है कि पत्नी उषा रंगनाथन की वजह से ही नवलखा और मुरलीधर के बीच दोस्ती हुई और वे दोनों पारिवारिक दोस्त बन गए। आरोप है कि जस्टिस मुरलीधर की पत्नी उषा रंगनाथन ने नवलखा के साथ सालों काम किया है। इन लोगों का एक वामपंथी गैंग हैं जिनमें जेएनयू की प्रोफेसर निवेदिता मेनन, पूर्व छात्रा कविता कृष्णन आदि शामिल हैं। यही लोग मिलकर मोदी सरकार के खिलाफ फेक स्टोरी प्लांट करते रहे हैं। उषा रंगनाथन तथा नवलखा शहरी नक्सल नंदिनी सुन्दरम के पति के न्यूज़ पोर्टल ‘द वायर’ में पी एम मोदी के खिलाफ लेख लिखते रहे हैं।
वैसे भी मुरलीधर राव पर कई मामलों में भेदभाव तरीके से सुनवाई करने तथा फैसला सुनाने का आरोप है। तीन मामलों में तो उन्होंने शिकायतकर्ता को ही जेल भेज दिया था। एक मामले में गुड़गांव में लड़की से बलात्कार कर हत्या करने के मामले में मुरलीधर ने शिकायतकर्ता को ही गिरफ्तार करने का आदेश दिया था। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के मामले में भी उनपर गलत फैसला देने का आरोप है। इस मामले में अब न्यायपालिका भी संदेह के घेरे में है!
URL: Revealing the Relationship Between Naxalites and Judiciary
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