जहां नहीं कानून का शासन , कैसा लोकतंत्र है ?
भ्रष्टाचार हर तरफ फैला , ये तो लूट- तंत्र है ।
धर्म -विहीन शिक्षा भारत की ,चरित्र- हीनता लाई है ;
झूठे इतिहास को पढ़ते-पढ़ते , हीन भावना आई है ।
चरित्र निर्माण जहां न होता , भ्रष्टाचार ही होता है ;
सच्चा आनंद कहीं न होता, मानव बस जीवन ढोता है ।
अंधेर नगरी के चौपट राजा ,कुछ तो अच्छे काम करो ;
नैतिक शिक्षा अनिवार्य बना कर ,राष्ट्रहित का काम करो।
स्कूलों में फौजी शिक्षा , बच्चों को अनुशासित कर दो ;
एक सूत्र में उन्हें पिरोकर , देश प्रेम को जागृत कर दो ।
चरित्र नाम की जो दौलत है, उससे बढ़कर कुछ भी नहीं ;
सारे संकट यही हरेगी और कोई सक्षम भी नहीं ।
अब लौं नसानी अब न नसाओ,राष्ट्र का अब निर्माण करो;
वोट – बैंक की कमर को तोड़ो , धर्म से सारे काम करो ।
धर्म हमें जीना सिखलाता , यही तो शाश्वत सत्य है ;
जहां नहीं हो धर्म का शासन , ऐसा शासन तो मृतवत् है ।
जन्म से सारे हिंदू होते , बाद में वे मजहब अपनाते ;
इतनी छोटी बात भी उनको,आखिर में क्यों न समझाते ?
सेक्युलरिज्म को फौरन त्यागो ,भारत तो हिंदू राष्ट्र है ;
इससे जो इन्कार कर रहा , वो पक्का धृतराष्ट्र है ।
ऐसे अक्ल के अंधे जितने , उनको सही राह पे लाओ ;
अब न बिल्कुल देर करो तुम , देश को हिंदू राष्ट्र बनाओ ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचनाकार: बृजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”