सुबह से फेसबुक के वॉल पर हर जगह ढाका की रक्तरंजित सड़कें, बकरे और गाय की कटी सिर देखकर मन मिचला रहा है! बेचैनी हो रही है! राक्षसी प्रवृत्ति और किसको कहते है? पूरी मानवता को रक्त रंजित करने वाली सुन्नी-बहाबी जमात को दुनिया की कोई ताकत नहीं समझा सकती? भला भेड़ इंसान की भाषा कभी समझ पाए हैं,जो ये समझेंगे? इस मजहब के मानने वाले लोग अंधविश्वास में डूबे हुए है! कुर्बानी अपने बच्चे की दो, तब तो माने कि अल्लाह से तुम्हें वास्तव में प्रेम है? दूसरे प्राणी के बच्चों को क्यों काटते हो? अल्लाह को भी ठगते हो और मानवता को भी कलंकित करते हो? अल्लाह को अपनी प्रिय जीव की कुर्बानी न देकर बाजारू जीव की कुर्बानी देने वालों में धर्म आदि की कोई समझ नहीं है! बस भेड़चाल है, सातवीं सदी से आज तक इसी पर चल रहे हैं!
हिंदू धर्म में भी बली प्रथा थी और आज भी कहीं कहीं मंदिरों में पशु बली दी जाती है! हमारे पूर्वजों ने इसे भी अमानवीय माना और बली प्रथा को बंद कराया। आदि गुरु शंकराचार्य ने बली प्रथा का घनघोर विरोध किया था। इसकी वजह से उनकी जान को खतरा भी उत्पन्न हुआ, लेकिन बली प्रथा को कुरीतियां मानकर इसे बंद कराने का उन्होंने पूरा प्रयास किया। आज अधिकांश हिंदू घरों में नवरात्रों में पशु की जगह फल व सब्जियों की बली दी जाती है। कम से कम मेरे घर में तो यही परंपरा सदियों से चली आ रही है। जिन मंदिरों में अभी भी पशु की बली दी जाती है, वह भी कुरीति है और हम उसकी भी उसी तरह से भर्त्सना करते हैं, जैसे बकरीद पर पशुओं की कुर्बानी की कर रहे है! सनातन हिंदू की अधिसंख्य जनसंख्या इसे कुरीति मान चुकी है! लेकिन मुसलमान तो बकरीद पर कुर्बानी को कुरीति मानने को तैयार ही नही ंहैं? अब ये अंधविश्वासी हुए या हिंदू?
इनका कुतर्क है कि कोई उनके मजहब में दअखलअंदाजी न करे! हर मजहब यदि इनकी तरह की कुतर्क करने लगे तो आधुनिक दुनिया मध्यकाल में पहुंच जाएगी! ये मध्ययुगीन सोच के लोग हैं, जो आधुनिक संसार के साथ किसी भी तरह से चलने को तैयार नहीं हैं, और तो और ये दुनिया को मध्यकाल में ले जाने पर आमदा हैं! और इसके लिए मनुष्य से लेकर पशु तक को मारा, काटा जा रहा है! बकरीद के दिन सीरिया में आईएसआईएस द्वाररा उल्टा लटकार कर मानवों की कुर्बानी दी गई और अन्य जगहों पर पशु की! यह लोग पशु से भी बदतर है! पशु कभी मरे इंसान का भक्षण नहीं करता, लेकिन ये तो मरे हुए पशु का भक्षण करते हैं! इनके पसीने तक से मरे हुए जानवरों की बास आती है! इनका पेट कब्रगाह बन चुका है! क्या ये वास्तव में इंसान कहलाने योग्य हैं?
दूसरी तरफ पूरी दुनिया की मुख्यधारा की मीडिया का पाखंड देखिए! पर्यावरण से लेकर पशु प्रेम की नौटंकी समय-समय पर तो ये लोग करते रहते हैं, लेकिन बकरीद के लिए उसी पशु की हत्या और उससे होने वाले पर्यावरण के नुकसान पर चुप्प्ी साध जाते हैं! यह दोगली जमात है! या तो वामपंथी मीडिया की यह जमात मजहबी उन्मादी समूह से डरती है या फिर इनके केंद्र अरब से मोटी माल बटोरती है! आप भारत में देखिए, वामपंथी मीडिया हाउसों ने ‘सेव टाइगर’ अभियान चला रखा था, लेकिन कभी आपने ‘सेव काउ’, ‘सेव गोट’, ‘सेव बफॅलो’ आदि का अभियान देखा है! नहीं न! यह किस तरह का पशु प्रेम हुआ, जो पशु-पशु में भेद करता है कि किसे कटना चाहिए और किसे नहीं? सोशल मीडिया के जरिए मुख्यधारा की मीडिया को लगातार नंगा किए जाने की जरूरत है ताकि यह समाज को बांटने की आदतों से बाज आएं या फिर जनता इनकी टीआरपी का टेंटुआ दबाकर इनका बैंड बजाने के लिए पूरी तरह से कमर कस ले!
वैसे असली बात तो यह है कि पूरी दुनिया में इस्लामी और वामी ताकतें मिलकर मानवता का खून पीती रही हैं और आज भी पी रही हैं! यह दोनों विस्तारवादी, साम्राज्यवादी राजनैतिक विचारधारा है! एक ने मजहब की आड़ ले रखी है और दूसरे ने समाजवाद की! लेकिन दोनों की मानवता विरोधी खूनी विचारधारा है! जितना खून अरब, मध्य व दक्षिण एशिया की धरती पर इस्लाम ने बहाया, उतना ही खून, रूस, चीन और पूर्वी यूरोपीय देशों में वामपंथ ने बहाया! मानवता यदि इन दोनों के खिलाफ अभी भी एकजुट नहीं हुई तो यह पूरी दुनिया का सर्वनाश कर देंगे! उदाहरण से समझिए, इस्लामी देश पाकिस्तान और कम्युनिस्ट देश उत्तर कोरिया परमाणु बम लेकर दुनिया को डरा रहे हैं! यह दोनों विचारधारा इनसानियत के खिलाफ है, जिसे दुनिया जितनी जल्दी समझ जाए, उतना ही अच्छा है!