विपुल रेगे। ‘रॉकेट बॉयज 2’ भारत के उस इतिहास को पढ़ने जैसा है, जो हमने बिसरा दिया था। स्वतंत्रता के बाद खड़े होने को संघर्ष करते भारत की गाथाए भूला दी गई, पश्चिम के परमाणु एकाधिकार को ध्वस्त करने का साहसिक कारनामा भूला बैठे। परमाणु और सेटेलाइट में भारतीय अधिपत्य स्थापित करने वाले वैज्ञानिकों को भी भूला बैठे। विगत कुछ वर्ष में ये प्रयास किये गए कि भारतीय नागरिक अपनी नींव भूलकर अभी-अभी उग आए राजनीतिक कंगूरों को भारत के नायक मान ले। ‘रॉकेट बॉयज 2’ उन युवाओं को देखनी चाहिए, जो इंटरनेट की बदमिजाज़ हवाओं में बहककर उस भारत को देखना नहीं चाहते, जो आज़ादी की बेड़ियाँ तोड़ घायल पैरों पर खड़े होने के लिए प्रयासरत था।
ओटीटी मंच : Sonyliv
रॉकेट बॉयज का पहला सीजन हिट रहा था। अभय पन्नू द्वारा निर्देशित इस वेब सीरीज का दूसरा सीजन और भी अधिक रोचक और मनोरजंक है। उससे भी बढ़कर ये सीजन हमारे उन नायकों को श्रद्धांजलि देता है, जो विज्ञान के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की राह बनाकर चले गए। डॉ होमी जहांगीर भाभा, डॉ विक्रम अंबालाल साराभाई और डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की प्रेरणास्पद कहानियों से ये सीरीज भरी पड़ी है।
दूसरी ओर फिल्म एक स्पष्ट इशारा देती है कि होमी भाभा और लाल बहादुर शास्त्री की मौत सामान्य नहीं थी, बल्कि उनकी हत्या की गई थी। तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में हम जो सशक्त भारत देख पा रहे हैं, उसकी नींव उस दौर की सरकारों और वैज्ञानिकों ने रखी थी, इसमें तो कोई संदेह नहीं होना चाहिए। अभय पन्नू निर्देशित ये वेब सीरीज एक रियल डाक्यूमेंटेशन की तरह प्रस्तुत की गई है। पहले सीजन में कहानी और आगे बढ़ती है। प्रधानमंत्री नेहरु की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया जाता है लेकिन ताशकंद में उनकी रहस्यमयी मौत हो जाती है।
इसके बाद देश की बागडोर इंदिरा गाँधी के हाथ आती है। अंदुरनी राजनीति से जूझती इंदिरा देश के डिफेन्स को मजबूत बनाना चाहती है लेकिन पार्टी से साथ नहीं मिलता। देश का न्यूक्लियर प्रोग्राम खतरे में है। अमेरिका के जासूस अंदर घुसकर योजना की जानकारी लीक कर रहे हैं। दूसरा सीजन सिलसिलेवार ढंग से घटनाओं को प्रस्तुत करता है। होमी भाभा और विक्रम साराभाई के किरदार इस प्रस्तुति की जान है। होमी भाभा ताकत की बात करते थे लेकिन साराभाई विज्ञान के जरिये देश को विकास के रास्ते ले जाना चाहते थे। उनकी अपनी निजी ज़िंदगियाँ भी देशसेवा से प्रभावित हो रही थी।
कलाकारों का स्वाभाविक अभिनय इस सीरीज का मुख्य आकर्षण है। होमी भाभा के किरदार में जिम सरभ ने यादगार अभिनय किया है। विक्रम साराभाई के किरदार को ईशवाक सिंह ने जैसे जीवंत कर दिया है। अब्दुल कलाम का किरदार अर्जुन राधाकृष्णन ने निभाया है। अर्जुन ने दिखाया है कि उनके भीतर अच्छी भूमिकाएं करने की भरपूर क्षमता है। रॉकेट बॉयज देश के तीन नायकों की कथा कहती है। देश के युवा दर्शकों को ये फिल्म देखनी चाहिए।
जब वे ये सीरीज देखेंगे तो पाएंगे कि कुछ राजनीतिज्ञों ने भारत के इतिहास को दूषित करने की सुपारी ले ली है और वे चाहते हैं कि लोग भारत की नींव को न देखकर कंगूरों को देखे। वह कंगूरे जो आजकल गाजरघास की तरह उग आए हैं और स्वयं को भारत का नीति-नियंता मानने लगे हैं। ‘रॉकेट बॉयज 2’ उन दर्शकों को पसंद नहीं आएगी, जो भारत को आलरेडी विश्व गुरु बना चुके हैं। ये फिल्म उन दर्शकों को देखनी चाहिए, जो ये जानना चाहते हैं कि गुलामी की जंजीरें तोड़कर निर्धन भारत विज्ञान के क्षेत्र में आगे कैसे बढ़ा।
भारत कैसे अंतरिक्ष क्षेत्र में सिरमौर बन गया। ये जानना है तो रॉकेट बॉयज के दोनों सीजन देखिये। जब आप ये देखेंगे तो आपके भीतर वह ज़हर थोड़ा कम हो जाएगा, जो पिछले दस वर्ष में आपके भीतर कूट-कूटकर भर दिया गया है।