अंतरराष्ट्रीय दबावों के आगे न झुकते हुए भारत ने रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थियों को स्वदेश भेजने का सही फैसला किया है। भारत को अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकने की बजाए अब शरणार्थी नीति बनानी चाहिए। भारत न तो 1951 में हुए शरणार्थी सम्मेलन का सहभागी रहा है ना ही साल 1967 में अमल में आने वाले शरणार्थी दर्जा से जुड़े प्रोटोकॉल का हिस्सा रहा है। इसके बावजूद भारत में शरणार्थियों का सतत उमड़ना जारी है। दुनिया के विभिन्न 30 देशों से आए हुए तीन लाख से भी अधिक शरणार्थी इस समय भारत में शरण ले रखा है। यह गणना वैध शरणार्थियों की है, अवैध रूप से रहने वाले शरणार्थियों की संख्या तो इससे कहीं अधिक हो सकती है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 11 लाख रोहिंग्या पहले ही बांग्लादेश पहुंच चुके हैं। इनमें से कई शरणार्थी भारत में घुसपैठ करने की कोशिश कर सकते हैं। हालांकि म्यांमार में रोहिंग्या के खिलाफ की गई कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘जातीय संहार’ बताया है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र के सख्त बयान पर म्यांमार की सेना का कहना है कि उनकी कार्रवाई सिर्फ आतंकवादियों के खिलाफ है इसलिए देश के नागरिक विरोध नहीं कर रहे हैं। अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों को कभी स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे देश पर आर्थिक बोझ हैं। म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय दरअसल रोहिंग्याओं को अवैध बंगाली प्रवासी मानते हैं। म्यांमार में रोहिग्याओं को नागरिकता का अधिकार तक नहीं मिला है। वहां उनपर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए हैं। दरअसल रोहिंग्या एक सुन्नी मुसलमान हैं और पहले भी एक अलग देश की मांग करते हुए लड़ाई लड़ चुके हैं। 1947 और 1971 में इन लोगों ने पूर्वी पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में शामिल होने के लिए संघर्ष किया था।
रोहिंग्या मुसलमानों ने युद्ध करने के लिए और स्वतंत्र मुसलिम देश बनाने के लिए रोहिंग्या एकता संगठन (Rohingya Solidarity Organisation), द हरकत-अल यकीन (The Harkat-al Yaqin), द अकरम रोहिंग्या सोलिडैरिटी ऑरगेनाइजेशन (The Arakan Rohingya Solidarity Organistion- ARSA) जैसे कुछ आतंकवादी संगठन भी बना लिए हैं। दुर्भाग्यवश पाकिस्तान के कुछ आतंकवादी संगठनों ने इन आतंकवादी सगंठनों को मदद देनी भी शुरू कर दी। पाकिस्तान के अलावा मध्य पूर्व के भी कुछ मुसलिम संगठन भी इन आतंकवादी संगठनों को आर्थिक मदद देने लगे।
वास्तव में वर्तमान संकट 2017 में 25 अगस्त को उस समय शुरू हुआ जब म्यांमार की सेना ने आतंकवादी संगठन ARSA के हमले का जवाब देना शुरू किया। दरअसल ARSA ने म्यांमार के 30 पुलिस स्टेशन समेत एक आर्मी बेस पर हमला कर दिया था। इस हमले में 12 सुरक्षाकर्मियों की जान चली गई थी। हालांकि रोहिंग्या आतंकवादियों का यह पहला हमला नहीं था। उसने इससे पहले भी 2016 में सरकारी दफ्तरों पर हमले किए थे, जिसमें 9 पुलिसकर्मी मारे गए थे। इन हमलों से पहले उसने अपने नियंत्रण वाले इलाकों में रह रहे कई कई हिंदुओं और बुद्धिस्टों की हत्या की थी। खुफिया सूत्रों के दावों के मुताबिक जब म्यांमार की फौज ने जब रोहिंग्या बहुल इलाकों को अपने नियंत्रित में लिया तो वहां हिंदुओं और बुद्धिस्टों के कई सामूहिक कब्रों का खुलासा हुआ।
असल में ARSA की स्थापना सउदी अरब में रहने वाले एक पाकिस्तानी ने की थी। जैसा कि हम सब जानते हैं कि म्यांमार और बांग्लादेश दोनो ही देशों में रोहिंग्या की स्थिति दयनीय थी, इसी का फायदा इसलामिक आतंकियों ने उठाया। पर्याप्त मात्रा में इंटरनेट पर धार्मिक घृणा फैलाने के लिए उत्तेजित करने वाली सामग्री फैलाने वाले आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने उन रोहिग्या मुसलमानों को अपने संगठन में भर्ती किया जो सीरिया और इराक गए थे आईएस के साथ मिलकर लड़ने के लिए। एक रिपोर्ट से मिली जानकारी के मुताबिक आईएस और लश्कर -ए- तैयबा भी जम्मू में रह कर रोहिग्याओं की अपने यहां भर्ती कर रहे थे। इतना ही नहीं भारतीय उप महाद्वीप के अल कायदा आतंकी संगठन ने भी रोहिंग्याओं को समर्थन दिया है।
रोहिंग्या मुसलमानों के आतंकी संगठन अका मुल मुजाहिदीन का जुड़ाव पाकिस्तान स्थित आईएसआई के अलावा जैश-ए मोहम्मद और लश्कर-ए तैयबा से भी है से भी है। कहा तो यह भी जाता है कि जम्मू के सुंजवां आर्मी कैम्प की जासूसी कर आतंकी संगठन जैश-ए मोहम्मद की मदद करने के लिए रोहिंग्या मुसलमानों अवैध रूप से जम्मू में बसे हैं। इसी साल 10 फरवरी को जैश-ए मोहम्मद ने भारत के आर्मी कैंप पर आतंकी हमला किया था जिसमें छह भारतीय जवान शहीद हो गए थे।
चूंकि भारत की सीमा बांग्लादेश से जुड़ी हुई हैं, इसलिए बांग्लादेश से काफी संख्या में रोहिंग्या मुसलमानों के सीमा पार करने की आशंका बनी रहती है। यह काफी खतरनाक है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक करीब 40,000 रोहिंग्या शरणार्थी पहले ही देश में दाखिल हो चुके हैं, जबकि विश्लेषकों का मानना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है। दोनों देशों बांग्लादेश और भारत के सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि रोहिंग्या मुसलमान इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए खतरा हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में युवा रोहिंग्या आतंकवादी बनने की राह पर निकल चुके हैं। बांग्लादेश के चिटगांव इलाके में रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए जब से कैंप बने हैं, तब से यह इलाका इसलामिक अतिवाद तथा अलगाववादी गतिविधियों के लिए कुख्यात हो गया है। विगत में तो भारत में आतंकी हमले को अंजाम देने से पहले और अंजाम देने के बाद उत्तरी-पूर्वी इलाके के आतंकवादीयहीं ठहरते थे। लेकिन जैसे ही शेख हसीना सत्ता में आई उन्होंने इस कैंप को ही खत्म कर दिया।
दुर्भाग्य है कि रोहिंग्या के लिए उनके साथ काम करने वाले एनजीओ का झुकाव भी मुसलिम अतिवाद की ओर है। इसलिए ये लोग उनके दिमाग में भी उग्रवाद का जहर बोते हैं। अब जब बांग्लादेश में यह चुनाव का साल चल रहा है। इसलिए भी वहां की सरकार इसलामिक आतंकवाद के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं करना चाहती है। इस मामले में चीन ने भी अपने रखाइन क्षेत्र के साथ बांग्लादेश में अपना हस्तक्षेप बढ़ा दिया है। क्योंकि वह भी रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या के समाधान के लिए बांग्लादेश की मदद करना चाहता है। चाइना इस मामले में रखाइन क्षेत्र से विदेशी ताकतों को दूर रखना चाहता है। दरअसल इस कूटनीति से वह भारत को भी अपने दोनों पड़ोसी देशों म्यांमार और बांग्लादेश से दूर रखना चाहता है। इसलिए वह चाहता है कि रोहिंग्या शरणार्थी का मामला सौहार्द्य तरीके से आपम में ही सुलझा लिया जाए। ऐसे में भारत को बहुत ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। एक तरफ तो भारत को अपना हस्तक्षेप बढ़ाना चाहिए वहीं दूसरी तरफ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि चीन इस मामले में जरूरत से ज्यादा दखल न दे।
पिछले साल नवंबर में भारत और बांग्लादेश ने रोहिंग्या शरणार्थियों की घर वापसी को लेकर एक समझौता किया था, लेकिन उससे भी अपेक्षित परिणाम नहीं आ पाया। खुफिया एजेंसियों के विश्लेषण के आधार पर वर्तमान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह बयान दिया था कि कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों की पृष्ठभूमि आतंकवादी रही है और वे दिल्ली, जम्मू, हैदराबाद और मेवात में भी सक्रिय हैं। यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि जम्मू में रोहिंग्या मुसलमान वहां जाकर बस गए हैं जहां पर किसी गैर कश्मीरी का बसना मना है। दूसरी बात यह कि इन्हें मदद करने वाले हिंदू आबादी वाले जम्मू में बसाते हैं जबकि उन्हें कश्मीर घाटी में नहीं बसाया जाता है। रोहिंग्या मुसलमान पूरे देश में अलग-अलग हिस्सों में बिखरे हैं। इसलिए उन्हें स्वदेश भेजने का काम बहुत ही कठिन है।
भारत ने तो अंतरराष्ट्रीय दबाव में आए बगैर रोहिंग्या शरणार्थियों को देश से भगाने का सही निर्णय लिया है। इसके साथ ही केंद्र सरकार को पक्षपाती एनजीओ, मुसलिम संगठनों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा पाखंडियों के साथ भी सख्ती से पेश आने की जरूरत है जो सरकार की आलोचना करने से पहले एक बार भी अपने देश के बारे में नहीं सोचते। वे ये नहीं सोचते कि भारत के पास संसाधन तो सीमित हैं लेकिन उसकी अपनी इतनी बड़ी आबादी है। इसलिए देशवासियों का ही अपने संसाधन पर पहला हक होता है। दूसरी बात ये है कि भारत पहले से ही पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों तथा वामपंथी अतिवादियों के अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों में आतंकवादियों से लड़ रहा है। ऐसे में देश के अलग-अलग हिस्सों में फैले रोहिंग्याओं का भार भारत नहीं सह सकता है। केंद्र सरकार ने बहुत सही तरीके से इस संकट से पार पाने के लिए लंबी योजना का खाका तैयार कर लिया है। भारत ने पहले ही बांग्लादेश के लिए सात हजार टन राहत सामग्री भेज दी है, इसके साथ म्यांमार को प्रभावित रेखाइन प्रांत में बुनियादी ढांचा निर्माण के लिए 25 मिलियन डॉलर दे दिया है। ताकि रोहिंग्या शरणार्थी आराम से अपने घर वापस आ सकें। भारतीय अधिकारी म्यांमार के अपने समकक्षों के साथ रोहिंग्याओं की वापसी के लिए रास्ता बनाने पर बातचीत कर रहे हैं।
म्यांमार रोहिंग्याओं के विगत के इतिहास को देखते हुए उन्हें वहां नागरिकता का अधिकार देने को कतई तैयार नहीं हैं। म्यांमार में लोगों की भावनाएं भी रोहिंग्याओं के खिलाफ है, इसलिए उनकी घर वापसी कठिन होगी। इसलिए भारत की सुरक्षा एजेंसियों के लिए सीमांत इलाकों की चौकसी बढ़ाना महत्वपूर्ण है। भारत में अलग-अलग हिस्सों में रह रहे कई रोहिंग्याओं ने तो गलत माध्यमों से आधार कार्ड, पैन कार्ड यहां तक कि वोटर आईडी कार्ड जैसे दस्तावेज भी बनवा लिया है। यह बहुत दुर्भाग्य की बात है कि कुछ एनजीओ और मानवाधिकार के अलंबरदार अपने निहित स्वार्थों के लिए अवैध रूप से आए इन अप्रवासियों को यहां अवैध रूप से बसाने में मदद कर रहे हैं। आने वाले दिनों में हो सकता है कि ये लोग रोहिंग्या के समर्थन में कानूनी लड़ाई शुरू करें। रोहिंग्याओं को देश में अवैध रूप से रहने देने के लिए नारा लगाएं, प्रदर्शन आयोजित करें ताकि यहां से रोहिग्याओं को भेजना कठिन हो जाए।
वर्तमान में भारत ने कोई शरणार्थी नीति नहीं बना रखी है। लेकिन समय आ गया है कि देश की अपनी एक विस्तृत शरणार्थी नीति होनी चाहिए। ताकि देश में अवैध तरीके से आने वाले मामले को उचित तरीके से सुलझाया जा सके। संक्षेप में कहूं तो भारत इस वर्तमान संकट के लिए कहीं से जिम्मेदार नहीं है, फिर भी उसे अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय दबावों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन दबाव जो भी हो भारत सरकार को किसी भी सूरत में रोहिंग्या शरणार्थियों को यहां बसने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। क्योंकि इसी में से कई जिहादी बन सकते हैं, तो कई आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं। यहां तक कि कई लोग लोन लेकर ही यहां से फरार हो सकते हैं।
साभार: जय कुमार वर्मा (लेखक इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस तथा यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूच ऑफ इंडिया के सदस्य हैं)
URL: Rohingya: Fatal to India’s security
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