अर्चना कुमारी दिल्ली में सड़क पर नमाज को लेकर पुलिसकर्मी मनोज तोमर का कोई साथ नहीं दिया और अब मोदी के गुजरात के छात्रावास में नमाज पढने को लेकर छात्रों पर हुए हमले के सिलसिले में पुलिस ने कुल पांच हिंदू लोगों को ही गिरफ्तार किया है।
इनमे एक भी मुस्लिम नही पकड़ा गया जबकि उनलोग ने ही विवाद शुरू किया था। पुलिस ने हितेश मेवाड़ा और भरत पटेल की शुरुआती गिरफ्तारियों के बाद तीन और लोगों क्षितिज पांडे, जितेंद्र पटेल और साहिल दुधातिया को गिरफ्तार किया। पुलिस ने कहा कि इसके साथ ही गिरफ्तार किए गए लोगों की कुल संख्या पांच हो गई है, शेष आरोपियों को पकड़ने के प्रयास जारी हैं।
शनिवार को हुई इस घटना के बाद विदेशी छात्रों को एक नएं विंग में स्थानांतरित कर दिया है और सुरक्षा के लिए पूर्व सैनिकों की सेवाएं ली हैं। इसके अलावा एक विदेशी छात्र सलाहकार समिति की स्थापना की गई है।
कुलपति नीरजा गुप्ता ने विदेश अध्ययन कार्यक्रम के समन्वयक और एनआरआई छात्रावास वार्डन को तत्काल हटाने की घोषणा की। पुलिस उपायुक्त तरुण दुग्गल ने कहा कि हमले में शामिल शेष संदिग्धों की पहचान करने के लिए तकनीकी निगरानी और अन्य तरीकों का इस्तेमाल करते हुए गहन जांच की जा रही है।
पुलिस ने दंगा, स्वेच्छा से नुकसान पहुंचाने और आपराधिक कृत्य समेत विभिन्न आरोपों में 20-25 अज्ञात हमलावरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है। पुलिस के अनुसार ए-ब्लॉक छात्रावास में विदेशी छात्रों के साथ हुई मारपीट की घटना के बाद श्रीलंका और ताजिकिस्तान के दो छात्रों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। इन घटनाक्रमों के बीच गुजरात उच्च न्यायालय ने मामले में जांच एजेंसी के तौर पर हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि हर मामला ऐसा नहीं होता कि उसमें जनहित याचिका दायर कर दी जाए।
मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध पी. मायी ने घटना का स्वत: संज्ञान लेने से इनकार करते हुए कहा कि पुलिस मामले की जांच करेगी। एक वकील ने मामले को स्वत: जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार करने का अनुरोध किया, जिसके बाद अदालत ने ये टिप्पणियां कीं। मुख्य न्यायाधीश अग्रवाल ने कहा, ‘‘हमारा प्रयास है कि न्याय हो, लेकिन हमें जांच एजेंसी न बनाया जाए। हम यह नहीं करते। हम अब भी खुद को याद दिलाना चाहते हैं कि हम संवैधानिक अदालतें हैं।
अगर ऐसा कोई मामला आता है, तो हम निश्चित तौर पर संज्ञान लेंगे, लेकिन ये उनमें से नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि शहर की हर घटना ऐसी नहीं होती, जिसमें जनहित याचिका दायर की जाए। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा, ‘‘इस अदालत को पुलिस निरीक्षकों का विकल्प नहीं बनाएं। हमें पुलिस निरीक्षक न बनाएं। हम जांच अधिकारी नहीं हैं।
’’ जब वकील के. आर. कोश्ती ने कहा कि पुलिस ने प्राथमिकी में सभी संबंधित धाराओं को शामिल नहीं किया है, तो अदालत ने उन्हें कानूनी उपाय अपनाने की सलाह दी।
