सुमंत विद्वांस। मैं विश्व के लगभग 10 देशों में गया हूं और शायद 50 से ज्यादा देशों के लोगों से मिला हूं या उनके साथ कभी न कभी संपर्क हुआ है। मुझे यह कहने में बहुत दुःख है कि भारतीयों जैसे अनुशासनहीन, असभ्य और अव्यवस्थित लोग मैंने अभी तक कहीं नहीं देखे।
कल मैं सिंगापुर के सैंटोसा आइलैंड पर मैडम तुसाद म्यूज़ियम में गया था। पूरा सैंटोसा द्वीप पर्यटन के लिए ही विकसित किया गया है और यहां पर्यटकों के मनोरंजन के लिए बहुत-सारी चीजें हैं, जिनमें से तुसाद म्यूज़ियम भी एक है। स्वाभाविक है कि विश्व-भर से लोग यहां आते हैं और भारत के लोग भी आते हैं। कल जिस समय मैं वहां था, उसी समय भारतीय पर्यटकों के भी दो समूह इस म्यूज़ियम को देखने आए हुए थे। उनके अलावा चीन, सिंगापुर और अन्य देशों के कुछ पर्यटक भी थे।
लेकिन जैसा अशिष्ट, बचकाना और असभ्य आचरण मैंने भारतीयों को करते देखा, वैसा कोई और नहीं कर रहा था। प्रवेश द्वार पर अपनी बारी की प्रतीक्षा में खड़े लोगों की कतार में सिर्फ भारतीय ही थे, जो किसी तरह जुगाड़ लगाकर भीतर घुसने की फिराक में उलझे हुए थे। किसी बहाने कतार तोड़कर सबसे आगे निकल जाने का प्रयास करने वाले भी सिर्फ भारतीय ही थे। म्यूज़ियम में लगी मूर्तियों के साथ फोटो खिंचवाने के लिए सारे लोग लाइन में खड़े थे, लेकिन लाइन तोड़कर अचानक कहीं से भी प्रकट हो जाने वाले और अपना फोटो या सेल्फी खींचकर दांत निकालने वाले केवल भारतीय ही थे। ऐसे कई प्रसंग आए, जब इस तरह की हरकतें देखकर विदेशियों को शायद अचंभा हो रहा था कि कुछ लोग लगातार ऐसा अशिष्ट व्यवहार कर रहे थे और मुझे यह देखकर निराशा हो रही थी कि ये लोग भारतीय थे! सोचिए ऐसे पर्यटकों की मूर्खता के कारण विदेश में भारत की क्या छवि बनती होगी!! कंबोडिया, वियतनाम, फिलीपींस आदि जिन देशों को पिछड़ा या अविकसित माना जाता है, वहां के लोग भी मुझे ऐसा असभ्य आचरण करते कभी नहीं दिखे। इंडोनेशिया और थाईलैंड में जितने लोगों से मिला, सब मुझे विनम्र और शालीन मिले। भारतीयों का आचरण देखकर ऐसा कहने में झिझक होती है।
एक विदेशी मित्र ने भी एक बार अपना अनुभव बताते हुए कहा था कि उसने भारत के बारे में बहुत अच्छी बातें सुनी थीं और भारत के प्रति उसके मन में बहुत आदर और आकर्षण था। लेकिन जब वह भारत गई, तो वहां के लोगों का आचरण देखकर बहुत निराश हुई। जिस देश को बहुत सुसंस्कृत, सभ्य, समृद्ध माना जाता है वहां अब अतिथि को भगवान तो छोड़िए, मित्र भी नहीं मानते लोग। दुकानदार हों या टैक्सी वाले हों, विदेशियों को देखते ही हर बात की कीमत १०-२० गुना बढ़ जाती है। हमारे मन में यह विचार नहीं आता कि कोई हमारे देश में आया है तो हम सुखद और स्मरणीय अनुभव दें और यह विचार आने का तो सवाल ही नहीं है कि वह वापस जाते समय भारत के प्रति अच्छी छवि मन में लेकर जाएं; हमारे मन में बस यह विचार आता है कि विदेशियों से किस तरह ज्यादा माल ऐंठा जाए! मतलब हम भारतीय लोग विदेश में भी अशिष्टता ही करते हैं और भारत में भी वैसे ही रहते हैं। सोचिए हम दुनिया में अपने देश की कैसी छवि बना रहे हैं!
कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें कोई सरकार, कोई नियम या कोई कानून लाकर नहीं बदला जा सकता। उन्हें लोगों को स्वयं बदलना होगा। आप सभ्यता से आचरण करें, यह बात भी अगर पढ़े-लिखे लोगों को समझानी पड़ती हो, तो उन्हें खुद पर शर्म महसूस होनी चाहिए। अगर ऐसे ही पर्यटक भारत से आते हों, तो मैं चाहूंगा कि वे कभी न आएं। कम से कम विदेशों में मेरे देश की छवि इस तरह खराब तो न हो!
मुझे कल उन भारतीय पर्यटकों का व्यवहार देखकर जितनी निराशा हुई थी, उतना ही दुःख आज यह पोस्ट लिखते समय हुआ। लेकिन अगर कुछ गलत लगे, तो मैं उसे गलत ही कहूंगा चाहे वह मेरे बारे में हो, आपके बारे में हो या किसी भी व्यक्ति के बारे में हो। अगर अपने देश में कुछ कमियां हैं, तो हमको यह बात स्वीकार करनी पड़ेगी और उन कमियों को दूर करने का विचार करना पड़ेगा। सिर्फ भारत की श्रेष्ठता का बखान करने और अपने देश की जय के नारे लगा देने से देश महान नहीं बनता, देश मेरे, आपके और सबके विचारों और आचरण से ही महान बनेगा।
साभार: AP Photo/Rajanish Kakade
A true story…..pol khol kar rakh di…i salute u