पंडित वैभवनाथ शर्मा। भगवान शिव को खुश करना बहुत आसान है मान्यताएं है कि शिव जी के नेत्रों से रूद्राक्ष का उद्धव हुआ और यह हमारे जीवन की हर समस्या को दूर करने में क्षमता रखता है. सुख शांति, तरक्की और मुक्ति प्रदान करता है रूद्राक्ष. शास्त्रों में वर्णित है कि एक मुखी रूद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को दुर्घटना से बचाव करता है साथ ही यह घर में कभी धन में कमी आने देता.
रूद्राक्ष धारण के नियम- रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को तामसिक पदार्थों से दूर रहना चाहिए उसे मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का त्याग करना चाहिए कर देना चाहिए. रूद्राक्ष को पूर्णिमा जैसे शुभ दिनों में धारण करने पर व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. रूद्राक्ष का आधार ब्रह्मा जी हैं उसकी नाभि विष्णु हैं, उसके चेहरे रुद्र है और उसके छिद्र देवताओं के होते हैं. रूद्राक्ष की जिस माला से आप जाप करते हैं उसे धारण नहीं किया जाना चाहिए. रूद्राक्ष को अंगूठी में कभी नहीं जडाना चाहिए.
सेहत संबंधी उपचार- अगर किसी व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड जाए तो उसे एकमुखी रूद्राक्ष घिस कर मक्खन के साथ सुबह शाम देने से उसका मानसिक संतुलन सही हो जाता है. नेत्रों ज्योती, नजर कमजोर होना, ह्वदय रोग, जैसी अनके रोगों से छुटकारा मिलता है. घर में मंदिर में भगवान शिव को अपर्ण करने पर घर कलेश और वास्तु दोष दूर होते हैं.
रूद्राक्ष वर्णन- जो रूद्राक्ष आंवले के आकार जितना बड़ा होता है वह रूद्राक्ष अच्छा होता है, जो रूद्राक्ष एक बदारी फल (भारतीय बेरी) के रूप में होता है वह मध्यम प्रकार का माना जाता है. जो रूद्राक्ष चने के जैसा छोटा होता है वह सबसे बुरा माना जाता है. यह रूद्राक्ष माला के आकार के बारे में मेरा विचार है. इसके बाद वह कहते हैं कि ब्राह्मण सफेद रूद्राक्ष है. लाल एक क्षत्रिय है. पीला एक वैश्य है और काले रंग का रूद्राक्ष एक शूद्र है इसलिए, एक ब्राह्मण को सफेद रूद्राक्ष , एक क्षत्रिय को लाल, एक वैश्य को पीला और एक शूद्र को काला रूद्राक्ष धारण करना चाहिए.
उन रूद्राक्ष-मोती को उपयोग में लाना चाहिए जो सुन्दर, मजबूत, बड़ा, तथा कांटेदार हो और उन रूद्राक्ष को नहीं लेना चहिए जो कहीं से टूटा हो या उस पर कीडा लगा है या कांटे बिना हो उचित नहीं होता, जिस रूद्राक्ष में प्रकृतिक रूप से छिद्र बना होता है वह उत्तम होता है और जिसमें खुद छेद किया जाए वह अच्छा नहीं होता, भगवान शिव के भक्त को रूद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए. रूद्राक्ष के एक हजार मोती पहनना लाभदायक भक्त, जब सिर पर रूद्राक्ष को धारण करे तो उसे इष्ठ मंत्र जपना चाहिए, जब रूद्राक्ष को गले में पहने तो तात्पुरषा मंत्र जपना चाहिए और जब इसे वक्ष और हाथ पर धारण करें तो अघोर मंत्र को जपना चाहिए यह कल्याणकारी होता है.
एकमुखी रुद्राक्ष परमतत्त्व का रूप होता है. दोमुखी रुद्राक्ष को अर्धनारीश्वर कहते हैं इसे धारण करने से शक्ति एवं शिव दोनो की प्राप्ति होती है, तीनमुखी रुद्राक्ष अग्नित्रय है इससे अग्नि का आशीर्वाद प्राप्त होता है, चारमुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा का रूप है,
पंचमुखी रुद्राक्ष पांच मुख वाले शिव का रूप है जो हत्या जैसे पाप को भी नष्ट कर देता है छहमुखी रुद्राक्ष कार्तिकेय एवं गणेश का रूप है इसे धारण करके भक्त धन, स्वास्थ्य, बुद्धि व ज्ञान पाता है, सप्तमुखी रुद्राक्ष सात लोकों, सात मातृशक्ति का रूप है इसे पहनकर भक्त धन, स्वास्थ्य और मन की पवित्रता को पाता है, अष्टमुखी रुद्राक्ष आठ गुणों का, प्रकृति का रूप है इसे पहन के भक्त इन देवों की कृपा प्राप्त करता है, नौमुखी रुद्राक्ष नौ शक्तियों का रूप है इसे धारण करके भक्त को नौ शक्तियों का अनुग्रह उपलब्ध हो जाता है, दसमुखी रुद्राक्ष यम देवता का.
ग्यारहमुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्र का रूप माना गया है इसे धारण करके धन में वृद्धि की कृपा प्राप्त होती है, बारहमुखी रुद्राक्ष महाविष्णु एवं बारह आदित्यों का प्रतीक माना गया है इसे उपयोग करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, तेरहमुखी रुद्राक्ष कामदेव का रूप माना गया है इसे धारण करने से समस्त मानोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा चौदहमुखी रुद्राक्ष की उत्पत्ति रूद्र भगवान के नेत्रों से हुई मानी जाती है इसे धारण करने से रोगों का नाश होता है.
साभार: पंडित वैभवनाथ शर्मा के फेसबुक वाल से