
सचिन तेंडुलकर और लता दीदी ने देश के लिए आवाज़ बुलंद की, किसी पार्टी के लिए नहीं
किसान आंदोलन ने बॉलीवुड की तमाम हस्तियों के बीच एक विभाजन रेखा खींच दी है। हिन्दी फिल्म उद्योग आंदोलन को लेकर दो खेमों में बाँट दिया गया है। खेमेबाज़ी के दुःख से ज़्यादा संताप इस बात का है कि देश के सम्मान के लिए बोलने वाले कलाकारों और खिलाड़ियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है।
कांग्रेस नेता के प्रायोजित कार्यक्रम में भारतीय क्रिकेट के गौरव सचिन तेंडुलकर के पोस्टर पर काला तेल डाला गया। उनका बस चलता तो ‘क्रिकेट के भगवान’ को वे उस तेल में डालकर तल डालते। सांकेतिक रुप से उन्होंने सचिन को लेकर अपनी मनःस्थिति दर्शाई है। सचिन तेंडुलकर, अजय देवगन, अक्षय कुमार, लता मंगेशकर को ट्रोल क्यों किया जा रहा है।
ये हस्तियां किसी पार्टी के पक्ष में या पार्टी के विरुद्ध कुछ नहीं बोली हैं। उन्होंने अपने देश के हक में आवाज़ उठाई है। आज कांग्रेस या किसी और पार्टी की सरकार होती तो भी लता दीदी का स्टैंड ठीक यही होता। इस प्रचार युद्ध में कुछ लोग अपने पाप भी धोते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे सितारें, जिनकी फ़िल्में पिट रही हैं या जिनका बहिष्कार किया जा रहा है, वे भी इस गंगा में कूद पड़े हैं। दूसरे की लगाई आग में हाथ सेंकने का ये भी एक ढंग है।
किसान आंदोलन में अमेरिकी दखल और उसके पहले टिकैत के आंसुओं ने चमत्कारी कार्य किया है। ये आंदोलन पुनर्जीवित हो चला है। एक समय ऐसा लग रहा था कि मामला ख़त्म होने वाला है लेकिन टिकैत के तरकश से निकले तीर को सरकार समझ नहीं सकी। अब तो पता चला है कि किसान आंदोलन में खालिस्तानी ध्वज फहराए गए हैं। किसान आंदोलन इस समय एक बैल बना हुआ है, जिसकी पीठ पर काइयाँ खालिस्तान सवार है।
जब तक हरियाणा और पंजाब के किसानों को ये बात समझ में आएगी, खालिस्तानी इस देश के लोगों के बीच वैमनस्य बनाने में सफल हो चुके होंगे। किसान आंदोलन को लेकर अंतरराष्ट्रीय दखल बनाने की कोशिश देश को समझ में आने लगी है। इस प्रचार युद्ध में प्रसिद्ध हस्तियों ने देश का पक्ष लेने का मन तो बनाया है लेकिन पिछले तीन दिनों में वे जान गए हैं कि इस राह में कितने कांटे हैं।
भारत सरकार का सूचना प्रसारण मंत्रालय ये समझ नहीं पा रहा कि भारत का पक्ष लेने वाले सितारों को गाली देने वालों के ट्वीटर अकाउंट की जाँच होनी चाहिए। प्रकाश जावड़ेकर जी को देखना चाहिए कि ट्वीटर और फेसबुक पर किसान आंदोलन के दौरान भाषाई स्तर कहाँ चला गया है। ये पंरपरा बहुत खतरनाक है। किसी मुद्दे पर बोलने वाले लोगों पर निजी हमले करना पीत पत्रकारिता का एक भयानक रुप है, जो इस तरह से सामने आ रहा है।
फेसबुक और ट्वीटर पर ऐसे हज़ारों अकाउंट सक्रिय हैं, जिनके माध्यम से देश के विभिन्न वर्गों के बीच वैमनस्य फैलाया जा रहा है। इस प्रचार युद्ध की पैनी जांच करने की भारी ज़िम्मेदारी सूचना व प्रसारण मंत्रालय पर आ गई है। यदि वे जल्द ही कुछ नहीं करते तो देश का सामाजिक वातावरण और अधिक खराब हो जाएगा। सचिन तेंडुलकर देश के सभी वर्गों में लोकप्रिय हैं।
उनके एक बयान से वह पन्ना तो नहीं फाड़ा जा सकता, जो उन्होंने क्रिकेट की स्तुति में लिख दिया था। देश के लिए बोलने पर लता दीदी और सचिन जैसे अनमोल रत्नों को ये कीचड़ और देखना पड़े, उन्हें इस युद्ध से बाहर हो जाना चाहिए। वे नहीं जानते कि उन पर सुनियोजित आक्रमण किया जा रहा है।
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