कहीं नहीं है देश सेक्यूलर , पूरा मजहबवाद है ;
राष्ट्र विरोधी तुष्टीकरण है , पूरा अल्पसंख्यक वाद है ।
देश की बहुसंख्यक आबादी , नेता पल-पल तोड़ रहे ;
राष्ट्र – विरोधी जो एजेंडा , भ्रष्टाचारी बढ़ा रहे ।
भ्रष्टाचारी जो नेता हैं , केवल सत्ता के लोभी ;
इनको मतलब है सत्ता से , देश -प्रेम तो कभी-कभी ।
राष्ट्र की जितनी हानि हुई है , पिछले हजार सालों में ;
उससे बढ़कर हानि हुई है , इन चौहत्तर सालों में ।
झूठा इतिहास पढ़ाया जाता , सबसे बड़ी ये हानि है ;
राष्ट्र का गौरव नष्ट कर रहे , भारत की मानहानि है ।
ऐसे नेता महामूर्ख हैं , राष्ट्र का हित न पहचाने ;
इनको केवल कुर्सी प्यारी , राष्ट्रप्रेम से अनजाने ।
बहुसंख्यक जितने हिंदू हैं , आजादी को तरस रहे ;
गुंडागर्दी करने वाले सब , देश की सड़कें घेर रहे ।
राजनीति गिर पड़ी देश की , भ्रष्टाचार के गड्ढे हैं ;
राष्ट्र विरोधी जो हैं ताकतें , पूरे देश में अड्डे हैं ।
राष्ट्र विरोधी सब गतिविधियां , खुलेआम हैं देश में ;
सरकारें खुद उनसे डरती , उल्टी गंगा इस देश में ।
ज्यादातर नेता हैं धिम्मी , ट्रांसजेनरेशनल ट्रामा है ;
मूर्ख बनाते बहुसंख्यक को , करते रहते ये ड्रामा हैं ।
ऐसे नेता न सुधरेंगे , करेंगे केवल लफ्फाजी ;
जितने कायर हैं भीतर से , उतनी करते ड्रामेबाजी ।
राजनीति का बीज पड़ा था , अंग्रेजों की साजिश थी ;
इसी बीज से पार्टी निकली , करती जूता पालिश थी ।
जूता पालिश अंग्रेजों की , पार्टी वाले करते रहे ;
सच्चे देशभक्त थे जितने , इनकी साजिश से मरते रहे ।
आजादी को जिसने छीना , वो तो वीर सुभाष था ;
पर बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा ,भारत का दुर्भाग्य था ।
अंग्रेजों ने जाते-जाते , चमचों को सत्ता सौंपी ;
चमचों ने बर्बाद कर दिया , भारत की धरती कांपी ।
सात साल से कफ़न नया है , पर लाश वही पुरानी है ;
भारत -माता अभी भी रोती , चलती वही कहानी है ।
मरता हिंदू क्या न करता ? अब तो ये बर्बादी रोको ;
भारत को हिंदू राष्ट्र बना कर,सड़ी गली इसलाश को फेंको।
वंदेमातरम : जय-हिंद
ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”