अवधेश कुमार मिश्र। …तो उन्हीं की शह पर फुले भाजपा से बागी बन कर अब हाथी की सवारी करने को उतारू हैं। दलितों का मुद्दा उठाना और भाजपा को दलित विरोधी बताना तो उनका एक बहाना भर है। जो लोग भाजपा से दलित सांसद के रूप में एक विकेट गिरने का मजा ले रहे हैं वे शायद भूल रहे हैं कि सावित्री बाई फुले की राजनीतिक शुरुआत बसपा से ही हुई थी। लेकिन यही वो मायावती हैं जों उन्हें पार्टी से निकाल दिया था। तब उन्हें भाजपा ने ही सहारा दिया था। लेकिन समय के साथ राजनीति भी करवट लेती है। अब जब सांसद के रूप में भाजपा उन्हें असफल पाती है तो वह बागी सुर अख्तियार कर मायावती के हाथ कठपुतली बनने को तैयार ही नहीं दिख रही हैं बल्कि मायावती की शह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर हो रही हैं।
मुख्य बिंदु
* सावित्री फुले द्वारा भाजपा पर लगाए जा रहे सारे आरोप निराधार
* मायावती ने जब पार्टी से निकाला तो भाजपा ने ही दिया था सहारा
* यूपी में एससी एसटी एक्ट को सुरक्षित नहीं रख पाई थीं मायावती
भाजपा ने अंबेडकर को दिया सबसे ज्यादा सम्मान!
सावित्री फुले जिस बाबा साहेब भीमराव रामजी अंबेडकर के सम्मान का राग अलापते हुए भाजपा पर संविधान बदलने या उसकी समीक्षा करने का षड्यंत्र रचने का आरोप लगा रही है, उन्हें याद रखना चाहिए कि उन्हीं अंबेडकर को अगर किसी पार्टी ने सबसे अधिक सम्मान दिया है तो वह है भाजपा। फुले भूल रही हैं कि जिस SC/ST Act के मामले में वह भाजपा को कसूरवार ठहराने की कोशिश कर रही है उस एक्ट में साल 2007 में मायावती ने ही मुख्यमंत्री रहते हुए पहले जांच करने का कानूनी संशोधन कराया था। यह बात दीगर है कि उस समय वह अपनी पार्टी को बहुजन से बड़ा कर सर्वजन करना चाहती थीं। एससी/एसटी एक्ट मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया है। भाजपा ने तो एससी और एसटी के हक के लिए कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है।
फुले का भाजपा पर आरोप निराधार!
फुले ने लखनऊ में अपनी एक रैली में पराकांतर से अपनी ही पार्टी भाजपा पर कुछ बेबुनियाद आरोप लगाए हैं। उन्हें सांसद के रूप में चार साल हो गए लेकिन उन्होंने आरोप तो लगाए लेकिन ये नहीं बता पाईं कि आखिर इतने दिनों में भाजपा ने संविधान में क्या क्या बदलाव किए। आरक्षण खत्म करने की बात कहने का आरोप तो लगाया लेकिन यह नहीं बताया कि कहां से आरक्षण हटाया गया है। जबकि हाल ही में भाजपा अध्यक्ष ने डंके की चोट पर कहा है कि न तो उनकी पार्टी आरक्षण खत्म करने की पक्षधर है न हो किसी को आरक्षण खत्म करने देगी। अगर संविधान भाजपा सरकार के तहत सुरक्षित नहीं है तो फिर किस पार्टी की सरकार में सुरक्षित रह पाएगा, इस पर भी फुले को बताना चाहिए।
उपयोग करो और फेको की नीति अपनाती मायावती!
जिस मायावती के उकसावे पर सावित्री फुले एक बार फिर उनकी गोद में जाने को तैयार है, उस मायावती का इतिहास ही रहा है कि उपयोग करो और फेक दो। उनके इस इतिहास को कुछ हद तक फुले भी जानती ही होंगी। वह चाहे बीएसपी के कभी संरक्षक रहे मान्यवर कांशीराम हों या फिर कोई और। उन्होंने तो दूसरी पार्टी के साथ भी हमेशा ही ऐसा किया है।
भाजपा से साठगांठ पर क्या करेंगी फुले?
राजनीति की चाल हमेशा सीधी नहीं होती। कई बार उसकी चाल टेढ़ी भी होती है। अगर समय ने करवट बदला और भाजपा के साथ बसपा का गठबंधन हो गया, तो फिर फुले लोगों से क्या कहेंगी और वह कहां जाएंगी। हालांकि नेताओं के लिए इस तरह के नैतिक और काल्पनिक प्रश्नों का कोई औचित्य नहीं रह गया है। लेकिन ऐसी स्थिति में क्या वह कह पाएंगी कि मायावती ने संविधान को खतरे में डालने वाली पार्टी के साथ समझौता कर लिया है। दूसरी बात यह कि उनके लिए उनके पिता ने जो सपना देखा था, कि जब मायावती यूपी की मुख्यमंत्री बन सकती हैं तो उनकी बेटी क्यों नहीं, वह सपना मायावती रहते पूरा हो सकता है। अगर उन्हें अपने पिता का सपना पूरा करना है तो कम से कम मायावती से सचेत रहना ही होगा।
URL: sadhvi savitribai phule involve in politics of reservation like mayawati
Key Words: Savitri Bai Phule, Mayawati, BSP, Dalit, PM Narendra Modi,bjp, UP BJP, SC/ST, BJP, सावित्रीबाई फुले, मायावती, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी