विपुल रेगे। रेवथी निर्देशित ‘सलाम वैंकी’ एक दुःखद कथा है। फिल्म दुःखद होने के साथ तर्क के तराजू पर अनबैलैंस्ड है। बॉक्स ऑफिस पर अपेक्षित था कि इस ऑफबीट ड्रामा को कम दर्शक ही मिलेंगे। व्यवसायिक सफलता से परे भी देखे तो ‘सलाम वैंकी’ एक अधपकी सी फिल्म है। बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों को खींचने का सबसे आवश्यक तत्व ‘मनोरंजन’ इस फिल्म से गायब है। ऐसी फिल्मों का टिकट विंडो पर बहुत बुरा हश्र होता है। ‘सलाम वैंकी’ ने रिलीज के पहले दिन बहुत कम कलेक्शन कर इस बात को सिद्ध कर दिया है।
रेवथी की ‘सलाम वैंकी’ थियेटर में रिलीज करने वाली फिल्म नहीं थी। इसे ओटीटी पर ही रिलीज किया जाना चाहिए था। एक सच्ची कहानी पर आधारित इस फिल्म को डाक्यूमेंट्री के रुप में पेश किया जाता तो ज़्यादा अच्छा होता। एक सच्ची मार्मिक कथा निर्देशक रेवथी के एंगल से गुज़रकर ऐसे दूषित हो गई, जैसे स्वच्छ नदी में किसी कारखाने की गंदगी का नाला फूट पड़ा हो।
वैंकी कृष्णन को एक ऐसा रोग हो गया है, जिसके कारण उसके अंग धीरे-धीरे काम करना बंद करते जा रहे हैं। वैंकी अपनी माँ से कहता है कि वह मरने से पूर्व अपने अंग दान करना चाहता है। नियमानुसार एक जीवित व्यक्ति अपने अंग दान नहीं कर सकता। इसी कश्मकश में वैंकी की हालत और खराब होती चली जाती है। वैंकी की माँ न्यायालय जाती है लेकिन वहां से भी उसे न्याय नहीं मिलता।
इस कहानी को वैसा ही पेश नहीं किया गया, जैसी वह थी। रेवथी ने सिनेमेटिक लिबर्टी ली लेकिन उससे वह दर्शकों के लिए मनोरंजन का संचार नहीं कर सकी। यदि आप थियेटर में फिल्म रिलीज कर रहे हैं तो दर्शकों को चिपकाए रखने के लिए मनोरंजन नामक गोंद अत्यंत आवश्यक है। ये एक उदास, बहुत उदास फिल्म है, जिसे दो घंटे बैठकर देखना बहुत मुश्किल कार्य है। रेवथी ने फिल्म में एक ऐसा पात्र डाला है, जो एक आत्मा है।
वह वैंकी की माँ सुजाता से बात करता है। ये पात्र आमिर खान ने निभाया है और बिलकुल भी इफेक्टिव नहीं लगता। मिस्टर परफेक्शनिस्ट एक आत्मा बनने के लिए कैसे तैयार हो गए। फिल्म उद्योग में सबसे बड़ी ‘तर्क की दूकान’ तो आमिर खान ही हैं। रेवथी ने इतना अधिक दुःख दिखाया है कि वह उस समस्या पर फोकस करना भूल गई, जिसके कारण वैंकी अपने अंग दान नहीं कर पाता।
ऐसे कथानक पर डॉक्यूमेंट्रीज बहुत इफेक्टिव होती हैं। डॉक्यूमेंट्रीज की आवाज़ दूर तक जाती है। रेवथी ने भीड़ खींचने के लिए आमिर जैसा बड़ा स्टार लिया, लेकिन उसको आत्मा बनाकर कोने में पटक दिया। यदि फिल्म में आमिर किसी हंसोड़ मेल नर्स के किरदार में होते तो आज फिल्म का हश्र बॉक्स ऑफिस पर इतना बुरा नहीं होता। आप मरीज को कड़वी गोली खिलाना चाहती हैं तो मीठी चाशनी में ही लपेट कर देनी होगी।
यहाँ तो ये हाल है कि रेवथी ने दर्शक को पकड़कर उसके मुंह में कड़वी कसैली कुनैन ठूंस दी है। ‘सलाम वैंकी’ देखकर अपना वीकेंड भारी दुःख से मत भरिये। टिकट विंडों पर इस फिल्म की लाइफ पांच दिन की भी नहीं है। फिल्म में काजोल, आमिर खान, विशाल जेठवा, प्रकाश राज मुख्य भूमिकाओं में दिखाई देते हैं। पहले दो दिन में फिल्म ने मात्र एक करोड़ का कलेक्शन किया है। इससे ही समझा जा सकता है कि ये फिल्म नहीं एक हादसा है।