सलमान तो सलाखों से बाहर आ जाएंगे, अदालत की सोच कैद हो गई तो कानून के राज से आम जन का भरोसा खत्म हो जाएगा। सलमान को सजा क्या हो गई भारतीय टेलीविजन मीडिया ने मातम मनाना शुरु कर दिया। एक सजायाप्ता अपराधी के लिए मीडिया ऐसा माहौल बना रही है मानो पूरा बॉलीबुड तबाह हो गया, आम आदमी का मसीहा सलाखों के पीछे भेज दिया गया! मीडिया यदि सलमान के पक्ष में कानूनी साक्ष्य लाकर, उसे मसीहा बनती तो इससे चौथे स्तंभ की साख मजबूत होती लेकिन अबकी बार यह जानते हुए कि सलमान ने अपराध किया है, वो सजायाप्ता अपराधी के पक्ष में खड़ी होकर मातम मनाने लगी।
टेलीविजन मीडिया के संपादक खुलेआम जज के फैसले को गलत बताने लगे। तथ्य के आधाऱ पर नहीं बल्कि अपने तरीके के नैतिक आधार पर, इस दलील संग कि सलमान ने चैरेटी के काम बहुत किए, अरबों का पैसा उनके कारण दांव पर लगा है इसलिए उसे राहत होनी चाहिए थी। टेलीविजन के संपादक लगातार सलमान के पक्ष में माहौल इस कदर बना रहें कि सत्र अदालत या हाईकोर्ट को अपने मुताबिक फैसले देने को मजबूर कर सकें।
यकिन मानिए, भारत में टेलीविजन मीडिया ने दर्जनो हाईप्रोफाईल मामले को अदालत के अंदर प्रभावित किया है। धनबल और बाहुबल के प्रभाव से इंसाफ का सौदा कर चुके कई सपेदपोशों को सलाखों के पीछे भेजा गया उसमें मीडिया की भूमिका से कोई इंकार नहीं कर सकता। दिल्ली में जेसिका लाल,नीतीश कटारा,प्रियदर्शनी मट्टू या पत्रकार शिवानी भटनागर के हत्यारे इतने हाईप्रोफाईल और प्रभावशाली थे कि गवाह और सबूतों को लगभग नष्ट कर दिया था। जेसिका और प्रियदर्शनी के हत्यारों को तो ट्रायल कोर्ट ने निर्दोष साबित कर दिया था। वो भारतीय मीडिया का नैतिक साहस ही था जिसने न्यायपालिका को झकझोड़ दिया। बीतते वक्त में इंसाफ खरीदने का दंभ भरने वाले सभी हाईप्रोफाईल अपराधी सलाखों के पीछे भेज दिए गए।
लेकिन अबकि बार एक हाईप्रोफाईल अपराधी की सलाखें टेलीविजन के संपादकों को यूं चुभ रहा है मानो वे भारतीय न्यायपालिका को घुटने के बल खड़ा कर ही मानेंगे। यकिन मानिए यदि मीडिया ने यह माहौल लगातार बनाया तो सलमान की सजा तो सस्पेंड हो ही जाएगी कोई अदालत स्टॉरडम के किसी अपराधी पर हाथ रखने की हिम्मत नहीं कर सकेगा। यही मायने में यह सजा किसी सलमान को नहीं स्टारडम के अहंकार में डूबे एक बदमिजाज चरित्र को है जो संदेश देता है कि कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को नहीं। सलमान को तो सलाखों से बाहर ले आओगे यदि अदालत की यह सोच कैद हो गई कि इंसाफ के मायने टायगर के लिए अलग और हिरन के लिए अलग है तो भी लोकतंत्र में कानून के राज से आम आदमी का भरोसा खत्म हो जाएगा।
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