विपुल रेगे। सउदी अरब में स्थित अल फॉ एक पत्तन नगर है। इस पोर्ट टाउन में एक संपूर्ण सभ्यता के पुरातात्विक चिन्ह पाए गए हैं। इसके बाद से ही हम और आप रोमांचित हैं। अल फॉ एक प्राचीन शहर हैं। ईराक की आर्कियोलॉजिकल साइट्स पर निगाह डालेंगे तो पाएंगे कि सनातन तो बहुत पूर्व से वहां प्रकट हो गया था। अल फॉ की बात करे या मैदान सेलाह की, हमारे प्रामाणिक चिन्ह वहां बिखरे पड़े हैं।
अल नसाला रॉक पर भी आपकी दृष्टि कभी नहीं गई होगी। ऐस चट्टान की लेजर कट देखने के लिए लोग विश्वभर से यहाँ आते हैं। जो बस्ती वहां पाई गई हैं, वह आठ हज़ार वर्ष प्राचीन बताई जा रही है। अरबियों के साथ मुश्किल हो गई है। अब उनके पुरातत्वविद कहते हैं कि ये सारे निर्माण हमारे पूर्वजों ने करवाए हैं। वे ये कैसे स्वीकार कर सकते हैं कि यहाँ पाए गए मंदिर भी उनके पूर्वजों की देन है। अरबियों को इसके बचाव में कहने के लिए ये तथ्य है कि वहां दो हज़ार से अधिक कब्रें भी पाई गई है।
उत्तरप्रदेश के सिनौली में जब महाभारतकालीन रथ खुदाई में पाया गया तो वहां आसपास कब्रें भी पाई गई थी। प्राचीन काल में अंतिम संस्कार के दोनों रुप सनातन में विद्यमान थे। सिनौली में मिली कब्रे और ईराक के अल फॉ में मिली कब्रें तो कम से कम यही सिद्ध कर रही हैं। दूसरा कोई कारण समझ में नहीं आ रहा है। दो दिन पूर्व ही यूट्यूब पर एक ज्योतिषी का वीडियो देख रहा था। उन्होंने कहा कि ये वह समय है, जब सनातन के चिन्ह संपूर्ण विश्व में प्रकट होने जा रहे हैं।
ये भी एक तथ्य है कि एक मुस्लिम देश के पुराविदों द्वारा वह स्थान खोजना और दुनिया को इसके बारे में बताना भी आश्चर्यजनक है। जो देश इस्लाम को माने और मूर्ति पूजा का विरोधी हो, उसकी ओर से ये खुलासा होना आश्चर्य ही कहा जाएगा। विगत वर्षों में ईराक में कई खोज की गई लेकिन बहुत कुछ छुपाया भी जाता रहा था। मैदान सालेह में खड़े सुंदर अजूबों को उन्होंने मकबरों का नाम दे दिया। काश कोई इनसे पूछे कि जब आप दुनिया तबाह करने निकले तो अपना एक विजय स्तम्भ भी आपसे बनाया न गया।
आपके क्रूर शासक तो हमारे हिन्दू शासकों के विजय स्तंभ उखाड़ कर ले जाना चाहते थे। उदाहरण अशोक स्तंभ और राजा भोज के विजय स्तंभ का दे रहा हूँ। दोनों को ही उखाड़ कर ले जाने का प्रयास किया गया। यदि आप लोगों ने रेगिस्तान में सुंदर निर्माण किये होते तो भारत के निर्माण तोड़ने की आपकी इच्छा ही मर जाती। एक सौंदर्यप्रिय सभ्यता दूसरी सौंदर्यप्रिय सभ्यताओं के चिन्ह मिटाती नहीं, अपितु सरंक्षित करती है। अल फॉ में एक सुव्यवस्थित सिंचाई सिस्टम पाया गया है।
सैकड़ों कुँए मिले हैं, जो अब निष्प्राण हैं। ईराक सरकार ने इस स्थान के फोटो सर्कुलेट करने में अमेरिका जैसी धूर्त बुद्धि का प्रयोग किया है। वेदी के फोटो हमें नहीं मिले हैं और न मंदिर का कोई चित्र ही उपलब्ध करवाया गया है। यह भी होता है कि म्यूजियम में ले जाने और उससे कमाई करने से पूर्व प्रमाणों को फेब्रिकेटेड किया जाता है। एक अड़चन भाषा की भी है। ये अड़चन सनातनियों के लिए हैं और अरबियों का बचाव है।
अब तक की खोज के अनुसार बस्ती नव पाषाण युग की बताई जा रही है और मंदिर अल तुवाईक पहाड़ी के छोर पर पाया गया है। पहाड़ी पर चढ़ने से पूर्व ये मंदिर पाया जाता है। इस मंदिर के फोटो गायब हैं। पहाड़ों की दीवारों पर सैकड़ों शैल चित्र बने हुए हैं और इस पर सम्भवतः अरेमिक भाषा लिखी हुई है। जिस व्यक्ति ने यहाँ सिंचाई सिस्टम बनाया, उसको देवता कहल बताया जा रहा है। संभव है कि ये व्यक्ति भगीरथ की तरह कोई विभूति रहा हो।
सऊदी ने दुनिया को इस बारे में बताया है तो उसका बस एक ही उद्देश्य है पर्यटन। वे सभी मूल्यवान प्रमाण संग्रहालयों की शोभा बनने जा रहे हैं। नंदी जागृत हो चुके हैं। वे जहाँ-जहाँ से निकलेंगे, सनातनी प्रमाण स्वयं ही बाहर आ जाएंगे। अभी तो पूरा विश्व बाकी है।
अल फॉ में क्या-क्या प्राप्त हुआ
– अल फॉ की खोज तो सन 1940 में ही कर ली गई थी। सन 1951 में यहाँ खुदाई का कार्य शुरु किया गया था। तबसे लेकर अब तक खोज और अनुसंधान का कार्य जारी रहा है। इस समय ये स्थान चर्चा में इसलिए आया क्योंकि अल टुवाईक पहाड़ी के किनारे पर एक मंदिर प्राप्त हुआ।
– इस स्थान के सर्वेक्षण के लिए हाई क्वालिटी एरियल फोटोग्राफी, कंट्रोल प्वाइंट के साथ ड्रोन फुटेज, रिमोट सेंसिंग, लेजर सेंसिंग का प्रयोग किया जा रहा है।
– अल-टुवाईक पहाड़ी पर मिले मंदिर को रॉक कट मंदिर कहा जा रहा है। हालाँकि अब तक सउदी की ओर से इसका कोई आधिकारिक फोटो जारी नहीं किया गया है।
– इस स्थान पर जबसे खुदाई शुरु हुई, 2800 कब्रे पाई जा चुकी है।
– यहाँ के शिलालेखों पर किसी कहल देवता का विवरण मिलता है। कहल को अल-जारहा का निवासी बताया जाता है।
– इस नगर को अल फॉ के एम्प्टी क्वाटर के नाम से जाना जाता है। अल फॉ का अर्थ ‘गैप’ होता है। इस स्थान पर मनोरंजक गतिविधियां हुआ करती थी।
– यहाँ व्यवस्थित सिंचाई सिस्टम, नहर और सैकड़ों कुँए प्राप्त हुए हैं। ऐसे कुँए सउदी के नाजनान क्षेत्र में भी प्राप्त हुए हैं। यहाँ के कुँए अब तक जीवित हैं और सात हज़ार वर्ष प्राचीन हैं।
सनातन ही सर्वोपरि है, सर्वश्रेष्ठ है, सर्वत्र व्याप्त है