यह सूत्र श्रद्धा का सूत्र है, श्रद्धा का, फेथ का। श्रद्धा का अर्थ है, जंपिंग इनटु दि अननोन। श्रद्धा का अर्थ है, अज्ञात में छलांग। श्रद्धा का अर्थ है, समस्त नियमों, समस्त व्याख्याओं, समस्त परिभाषाओं को, समस्त गणनाओं को छोड्कर अमाप में, इम्मेजरेबल में, असीम में छलांग। बुद्धि को छोड्कर निर्बुद्धि में छलांग।
ध्यान रहे, जीवन का सत्य जिन्होंने बुद्धि से खोजा, वे तो हैं फिलासफर्स, दार्शनिक। वे कुछ नहीं खोज पाए आज तक। हजारों किताबें लिखी हैं दार्शनिकों ने, कोरे शब्दों का जाल। कुशल हैं वे शब्दों में। वे जाल भी फैलाते हैं कुशलता से। वे जाल इतना बड़ा फैलाते हैं कि आपको मुश्किल हो जाता है उसके बाहर निकलना। लेकिन कुछ भी उन्हें पता नहीं है — कुछ भी उन्हें पता नहीं है। जिन्होंने जीवन के सत्य को जाना, वे दूसरे लोग हैं — वे हैं संत, वे हैं ऋषि।
वे वे लोग हैं, जिन्होंने कहा कि शब्द में हम नहीं उतरते, हम तो अस्तित्व में ही उतरते हैं। क्यों हम जाएं पता लगाने कि गंगा क्या है? जब गंगा बह रही है, तो हम गंगा में ही क्यों न डूबकर देख लें कि गंगा क्या है? शास्त्र में लिखा होगा कि गंगा क्या है। ग्रंथालय में किताबें रखी होंगी, जिनमें लिखा होगा कि गंगा क्या है।
लेकिन हम गंगा को ग्रंथालय में खोजने क्यों जाएं? जब गंगा ही मौजूद है, तो हम गंगा में ही उतरकर स्नान क्यों न कर लें! हम गंगा को गंगा में ही क्यों न जान लें!
दो रास्ते हैं जानने के। अगर मुझे प्रेम के संबंध में जानना हो, तो मैं पुस्तकालय में भी जा सकता हूं। वहां प्रेम के संबंध में बहुत कुछ लिखा हुआ रखा है। वह सब मैं जान ले सकता हूं।
एक रास्ता और है कि मैं प्रेम में ही उतरूं। निश्चित ही पहला रास्ता सुगम है। इसलिए कमजोर लोग पुस्तकालय का रास्ता पकड़ लेते हैं। सुगम है। किताब में प्रेम को पढ़ना, कोई बड़ी कठिन बात है? बच्चे भी पढ़ सकते हैं। लेकिन प्रेम को जानना तो बड़ी आग से गुजरना है — बड़ी तपश्चर्या से, बड़ी अग्नि—परीक्षा से।
पर प्रेम को जानना एक बात है और प्रेम के संबंध में जानना बिलकुल दूसरी बात है। दोनों का कोई संबंध नहीं है। प्रेम को जानना एक बात है, प्रेम के संबंध में जानना बिलकुल दूसरी बात है।
सत्य को जानना एक बात है, सत्य के संबंध में जानना बिलकुल दूसरी बात है। सत्य के संबंध में जो भी जाना जाता है, सब उधार, सब बासा है। सत्य को जानना एक और ही बात है। सत्य को जिन्हें जानना है, उन्हें अपनी बुद्धि से छलांग लगानी पड़ेगी।
एक मित्र दो दिन पहले मेरे पास आए। उन्होंने कहा कि मैं जो भी — जो भी चीज सुनता हूं उस पर ही मुझे शक होता है, संदेह होता है।
आप भी जो कहते हैं, मुझे संदेह होता है। आप आगे भी जो कहेंगे, मैं अभी से कह देता हूं कि मुझे उस पर संदेह होगा। फिर भी मैं कुछ प्रश्न लाया हुआ हूं इनके आप उत्तर दें।
मैंने कहा कि फिर उत्तर लेकर क्या करोगे? क्योंकि तुम कहते हो कि जो भी मैं कहूंगा, उस पर तुम्हें संदेह होगा। तुम अपने संदेह से रत्तीभर हिलोगे नहीं, तो मुझे क्यों परेशान करते हो?
तुम अपने संदेह में जीयो। मुझसे पूछने क्यों आए हो? अगर संदेह ही करना है, तो किसी से पूछने मत जाओ।
क्योंकि दूसरे से पूछोगे, तो दूसरा अपना जानना कहेगा, वह तुम्हारा जानना बन नहीं सकता, उस पर तुम्हें संदेह होगा। तुम मुझसे पूछने क्यों आए हो?
जिंदगी चारों तरफ फैली है — फूल खिले हैं, पक्षी नाच रहे हैं, आकाश में बादल उड़ रहे हैं, सूरज निकला है, तुम्हारे भीतर प्राण धड़क रहे हैं — बाहर जीवन का अनंत विस्तार है।
कूदो, जाओ, वहां जानो। मुझसे पूछने क्यों आए हो? और जब तुम कहते हो कि पूछकर भी संदेह तो मैं करूंगा ही, तो पूछना व्यर्थ है।
और एक बात कहना चाहूं उनसे कि संदेह करते रहोगे, बहुत अच्छा है। लेकिन वह दिन कब आएगा, जब अपने संदेह पर संदेह करोगे जब यह संदेह आएगा कि यह संदेह कहीं ले जाएगा कि नहीं? जिस आदमी को संदेह ही करना है, तो फिर पूरा कर ले — देन डाउट दि डाउट इटसेल्फ।
तब आखिर में अपने संदेह पर भी संदेह करो कि यह जो मैं संदेह कर रहा हूं इससे कुछ मिलेगा? छोड़ो, मिलेगा कि नहीं। इतने दिन संदेह किया है, कुछ मिला? अगर इतने दिन संदेह करके कुछ नहीं मिला और संदेह पर संदेह पैदा नहीं होता, तो फिर संदेह पूरा नहीं कर रहे हो।
और ध्यान रहे, श्रद्धा दो तरह से आती है। या तो संदेह ही मत करो, जो कि अति कठिन है। या फिर संदेह पर भी संदेह करो।
दो ही रास्ते हैं। या तो संदेह ही मत करो, कूद आओ। और या फिर संदेह ही करते हो, तो गहरा संदेह करो कि संदेह पर भी संदेह आ जाए। संदेह संदेह को काट दे और तुम संदेह से खाली हो जाओ। लेकिन किसी भी तरह— चाहे कोई संदेह न करके, या कोई संदेह बहुत करके — जिस दिन भी संदेह के बाहर जाता है, उसी दिन बुद्धि के बाहर जाता है। बुद्धि संदेह का सूत्र है।
ऐसा नहीं है कि आपकी बुद्धि संदेह करती है। बल्कि ऐसा है कि आपकी बुद्धि संदेह है। इट इज नाट दैट योर इंटलेक्ट डाउट्स, योर इंटलेक्ट इज दि डाउट। वह बुद्धि ही संदेह है।
जो सरल हों, वे इस सूत्र को समझकर संदेह न करें। जो जटिल हों, वे इस सूत्र को समझकर पूरा संदेह करें — टोटल डाउट। दोनों स्थितियों में श्रद्धा उपलब्ध हो जाएगी। दोनों स्थितियों में छलांग लग जाएगी और फेथ, श्रद्धा का जन्म हो जाएगा।
यह सूत्र श्रद्धा का सूत्र है। इसे वे समझेंगे, जो श्रद्धा को समझेंगे। जो तर्क को समझेंगे, वे नहीं समझ पाएंगे, क्योंकि तर्क तो इसमें कहीं बैठेगा नहीं। पूर्ण से पूर्ण निकल आता है, पीछे पूर्ण बच जाता है! यह नहीं हो सकता। यह कैसे होगा? तर्क नहीं मानेगा कि यह हो सकता है।
हां, श्रद्धा मान लेगी।श्रद्धा बड़ी सरलता है। श्रद्धा अति सरलता है। श्रद्धा ट्रस्ट है, अस्तित्व के ऊपर भरोसा है।
कि जिस अस्तित्व ने मुझे जन्म दिया, जिस अस्तित्व ने मुझे बड़ा किया, जिस अस्तित्व ने मुझे शक्ति दी, सोच—विचार दिया, प्रेम दिया, हृदय दिया; जिस अस्तित्व ने मुझे इतना दिया, उस अस्तित्व पर थोड़ा भरोसा मैं भी दे सकता हूं या नहीं! जिस अस्तित्व ने मुझे जीवन दिया, उसको मैं श्रद्धा भी नहीं दे सकता?
जिसने मुझे प्राण दिए, जिसने मुझे होश दिया, जिसने मुझे चेतना दी, उसको मैं थोड़ा सा मैत्रीपूर्ण भरोसा भी नहीं दे सकता? एक फ्रेंडली ट्रस्ट भी नहीं दे सकता?
तो फिर कृतध्नता की सीमा आ गई। तो फिर अनग्रेटफुलनेस की सीमा आ गई। फिर अकृतज्ञ होने की हद हो गई।
यह सूत्र पढ़कर जिसको यह खयाल न आए कि यह श्रद्धा की मांग करता है, इशारा करता है कि श्रद्धा से ही वह जीवन का अनंत द्वार खुलेगा, श्रद्धा से ही उस जीवन के शिखर पर पहुंचना होगा। यह इसका अभिप्राय है।
ओशो
ईशावास्य उपनिषद