जिस दिन घड़ा सीधा होगा, उस दिन अमृत बरसने लगेगा, ऐसा नहीं है।
अमृत तो उस दिन भी बरस रहा था, जिस दिन आप घड़ा उलटा किए थे। वहां भी बरस रहा था, जहां कोई घड़ा न था।
कोई आप पर विशेष कृपा नहीं हो जाएगी कि जब आप अपनी मटकी सीधी करेंगे, तो कोई अमृत आप पर बरसने आ जाएगा कि चलो इसकी मटकी सीधी है, बरस जाएं!
अमृत तो बरस ही रहा है।
परमात्मा की कृपा उसका स्वभाव है। अस्तित्व का अमृत उसका स्वभाव है।
वह बरस ही रहा है। वह सतत बरस रहा है। हमारी मटकी उलटी हम रखकर बैठे हैं।
अहंकार मटकी को उलटा रखकर बैठता है और भरने की कोशिश करता है।
मटकी को सीधी रखने का मतलब है, मैं ना-कुछ हूं? इसकी घोषणा।
जब मटकी सीधी होती है, तो उसके भीतर का खालीपन ही तो प्रगट होता है, और क्या प्रगट होता है? जब मटकी उलटी होती है, तो खालीपन छिपा होता है, और क्या होता है?
उलटी मटकी अपने भरे होने का भ्रम पैदा कर लेती है, क्योंकि खालीपन दिखाई नहीं पड़ता, एंपटीनेस दबी होती है। इसीलिए तो हम मटकी को उलटा रखे रहते हैं।
सीधी होकर मटकी को पता चलता है कि मैं तो सिवाय खालीपन के और कुछ भी नहीं हूं। सिर्फ एक जगह हूं जिसमें कुछ भर सकता है। भरा हुआ मुझमें कुछ भी नहीं है।
जिसने जाना कि मैं ना—कुछ हूं उसकी मटकी हो गई सीधी। जिसने अपनी मटकी की सीधी, गया प्रार्थना में, कृपा बरस रही है, वह भर जाएगी।
जब भरेगी, तब वह कहेगा कि उसकी कृपा। यद्यपि आप मटकी सीधी न करते, तो उसकी कृपा हो नहीं सकती थी। आपकी ही कृपा है कि आपने मटकी सीधी रखी।
अपने पर कृपा करना प्रार्थना है। अपने पर करुणा करना प्रार्थना है।
अपने पर क्रूर होना अहंकार है।
अपने साथ ज्यादती करना अहंकार है।
अपने साथ हिंसा करना अहंकार है।
इतना ही सुबह के लिए। फिर हम सांझ…।
अब हम चलें, कृपा करें, मटकी सीधी रखें
ओशो
ईशावास्य उपनिषद12