मैंने परसों एक प्रश्न पूछा था कि मनु-स्मृति के रचयिता कौन थे, और इसका उल्लेख सर्वप्रथम किस ग्रंथ में आया है? मुझे दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि एक भी जवाब सही नहीं आया। काफी सारे लोग भृगु ऋषि का नाम लेकर नजदीक तो पहुंचे, लेकिन सही जवाब यह भी नहीं है। चूंकि मनु-स्मृति में महाराज मनु के मुख है कहलाया गया है कि आगे का वृत्तांत भृगु ऋषि से सुनिए तो लोग मान लेते हैं कि इसके रचयिता मृगु ऋषि हैं।
असल में यह मृगु गोत्र से आने वाले सुमति भार्गव हैं। मनु स्मृति के वास्तविक रचनाकार सुमति भार्गव हैं। भार्गव, उनके भृगु वंश के कारण उपनाम है। हम सब जानते हैं कि भारत में वंश परंपरा से ही जानने की प्रथा चली आ रही है। जैसे राजा जनक। ऐसे कुल ५४ जनक हैं, पुराणों के अनुसार।
नारद-स्मृति में साफ-साफ लिखा है कि मनु-स्मृति के रचनाकार सुमति भार्गव हैं। नारद-स्मृति में इसकी व्याख्या कुछ ऐसे है- “सर्वप्रथम भगवान मनु ने प्राणियों के हितार्थ एक लाख श्लोकों वाला आचार-शास्त्र की रचना कर नारद को प्रदान किया। नारद ने इसे विशाल पाकर 12 हजार श्लोकों में इसे संक्षिप्त कर मार्केंण्डेय को सौंपा। मार्केंण्डेय ने इसे और संक्षिप्त कर 8 हजार श्लोक के साथ सुमति भार्गव को सौंप दिया। सुमति भार्गव ने इसे और संक्षिप्त कर 4 हजार श्लोक का कर दिया, और इसी का अध्ययन पितरों और मनुष्यों में प्रारंभ हुआ।”
धर्मशास्त्र के महान विद्वान पी.वी काणे से लेकर भीमराव आंबेडकर तक ने इसे स्वीकार किया है कि मनु-स्मृति के रचनाकार सुमति भार्गव हैं, लेकिन अफसोस कि सारी राजनीति महाराज मनु को गाली देने पर सीमित हो जाती है। आंबेडकरवादी से लेकर तथाकथित दलित चिंतक तक ‘मनुवाद’ कहते हुए महाराज मनु के लिए अपशब्द कहते हैं, जिन्होंने क्षत्रिय राजा होते हुए भी खुद अपने पुत्रों को उसके कर्मानुसार ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र बनने दिया।
फिर हम प्रतिरोध क्यों नहीं कर पाते? इसका जवाब मुझे परसों मिला, जब मैंने इस पर प्रश्न पूछा, लेकिन ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं’ का उदघोष करने वाला एक भी हिंदू इसका सही जवाब नहीं दे सका। जब अपने धर्मशास्त्र को जानोगे ही नहीं, पढ़ोगे ही नहीं, तो हर कोई आपके धर्मग्रंथों पर और आप पर हमला करेगा ही!
अगले महीने मेरी एक पुस्तक आ रही है ‘टवायलेट गुरू’। इसमें वेद से लेकर अंग्रेज तक जातियों का निर्माण कैसे हुआ, और दुनिया को सबसे पहली ट्वायलेट देने वाली सभ्यता में मेहतर, भंगी जैसे मानव-मल ढोने वाली जातियां कैसे बन गयी? बेहद संक्षेप में समझाने का प्रयास किया है।
जानता हूं लोग लंबा और गंभीर पढ़ने से भागते हैं, यही बड़ा दुख है, लेकिन मैंने आम भाषा में और संक्षिप्त तरीके से भारतीय उद्धरणों के साथ जातियों का निर्माण और काल समझाने का प्रयास किया है। यदि आप जातियों के चक्रव्यूह को नहीं तोड़ पाए तो तय मानिए कि हिंदू समाज को जातियों में तोड़ने वाले गिद्ध हमेशा सफल होते रहेंगे। तो पढ़िए, पढ़िए और पढ़िए…
URL: Sandeep deo Blog- who was the writer of manusmriti?
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संदीप जी मैं आपके समस्त वीडियो देखता हूं और आपकी वेब साइट पर निरंतर समय मिलते ही पड़ता हूँ। आप का विश्लेषण उच्च कोटि का है । मुझे कभी प्रतीत नहीं हुआ की आपका वीडियो लंबा है या लेख। समाज को आपके जैसे कई संदीप देव चाहिए।
Please add digital aunthetic copy of our religion and cultural books without any adulteration ,
Jay Bharat
Sir jyada padhne or gambhir pdhne wale b h jo gambhir vishyo pr pdhna chahte. Apka ye article bhut acha h
Kya ap muje ye suggest kr skte h ki muje agr actual manu smarti k bare me pdhna ho to me kya pdhu kha se pdhu konsi book muje pdhni chahiye
मनुस्मृति वाकई घटिया पुस्तक है जबकि अंबेडकर द्वारा लिखी गई संविधान को पूरे विश्व के कई देशों में लागू है और पालन भी किया जाता है जय भीम जय मूलनिवासी
Bhim Rao lund likhe te samvidhan 299 logo ne mil ke likha tha wo sirf model taiyar kiye the
Koi pustak ghatiya nahee hoti hai ise padhne wale aur samajhne wale ghatiya hote hain. bharat ka samvidhan to britain ki copy hai aur samaj ko bantane wala hai. muglon se aur angrejon se adhik is samvidhan ne samaj ko banta hai.
जितने भी मनुस्मृति लिखा है म****** बड़ा क**** आदमी होगा साले को शर्माने आना चाहिए जो आदमी आदमी को ना समझे ऐसी पुस्तक बहुत घटिया है हरामखोर साले
विज्ञान ने काफ़ी मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया। भारत के 70 साल के सविधान मे 100 से अधिक संशोधन, फिर भी हजारों साल पुराने सविधान मनुसिमृति में संशोधन की जिम्मेदारी क्यों नही लेते धर्म गुरु, या वो डरते है पाखंड से।