मॉरीशस की सरकार ने भोजपुरी भाषा को अपनी संवैधानिक भाषा घोषित किया है परन्तु अपने मूल देश भारत में ही यह भाषा आज तक उपेक्षित है! करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली इस भाषा-भाषियों को उम्मीद है कि वर्तमान मोदी सरकार ही इस भाषा को उचित सम्मान दे सकती है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी खुद भोजपुरी की राजधानी बनारसस का प्रतिनिधित्व संसद में करते हैं। यह उम्मीद इसलिए भी बढ़ जाती है कि भोजपुरी की बहन मैथिली को अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार ने ही संविधान में जगह दी थी।
पिछले 10 साल में यूपीए सरकार कभी आश्वासन देकर तो कभी उस सरकार के पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम द्वारा टूटी-फूटी भोजपुरी में बोलते हुए मन बहलाव प्रयास कर भोजपुरी बोलने वालों को ठगा गया! भोजपुरी को संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल करने में पिछले कई दशकों से लगे अजीत दुबे जी से इसी विषय पर ISD के प्रधान संपादक संदीप देव ने बात की है। आइए जानते हैं कि भोजपुरी की अस्मिता की यह लड़ाई आखिर कितनी पुरानी है?
अजीत दुबे, भोजपुरी भाषा के लिए लड़ता एक अकेला योद्धा
बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा था “अगर आप चाहते हैं कि लोग आप के बाद भी आपको विस्मित न करें तो आप पढने योग्य अच्छी लेखनी दे या फिर ऐसा काम कर जायें कि लोग आप पर लिखने पर विवश हो जायें।”
उक्त कथन को चरितार्थ करते हैं मैथिली भोजपुरी अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष और भोजपुरी समाज,दिल्ली के अध्यक्ष श्री अजीत दुबे। अजीत दुबे भोजपुरी भाषा को उसका वह सम्मान एवं अधिकार दिलाने के लिए पिछले कई दशकों से प्रयासरत है जिसकी भोजपुरी भाषा अधिकारी है!
विमानपत्तन प्राधिकरण के कार्यपालक निदेशक पद से सेवानिवृत श्री दुबे जी ने अपने पिता स्वर्गीय श्रीकांत दुबे (पूर्व उपाध्यक्ष भोजपुरी समाज दिल्ली) द्वारा लिए गए संकल्प “भोजपुरी भाषा व संस्कृति को उचित सम्मान दिलाना” को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी को अपने कन्धे पर लेकर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भोजपुरी भाषा के सम्मान के लिए प्रयासरत हैं।
लगभग एक हजार वर्षों से ज्यादा पुरानी इस भाषा और संस्कृति की पहचान को संवैधानिक मान्यता तथा अष्टम अनुसूची में स्थान के लिए संघर्षरत है,सेवानिवृत्ति के पश्चात दुबे जी ने भाषा अस्मिता की लड़ाई को समुंद्र पार मॉरीशस,फिजी आदि देशों तक फैलाया है।
दुबे जी विश्व में लगभग बीस करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली भोजपुरी भाषा की लोकयात्रा के सेनानी तथा संवहक है,प्रतिष्ठित अखबारों और पत्रिकाओं में हजारों लेखों से भोजपुरी भाषा को प्रचारित और प्रसारित कर रहे हैं मॉरीशस की सरकार ने भोजपुरी को अपनी संवैधानिक भाषा घोषित किया है परन्तु अपने देश में उपेक्षित है यह दर्द दुबे जी को सालता है।
अपनी इस पीड़ा और भोजपुरी भाषा भाषियों की भाषायी अस्मिता के लिए दुबे जी एक पुस्तक “तलाश भोजपुरी भाषायी अस्मिता की” भी लिखी है, जिसमें उन्होंने काफी सरल शब्दों में भोजपुरी भाषा की उपलब्धियां,योगदान और उपेक्षा के दर्द को उभारा है।
भोजपुरी भाषा की पहचान अस्मिता और इसको मिलने वाली सुविधाओं की मांग को लेकर दुबे जी का संकल्प दृढ़विश्वास और परिश्रम अकथनीय है, अपनी संस्कृति और भाषा के सम्मान को लेकर किया जाने वाला यह प्रयास अपने आप में जुनूनी है. दुबे जी का कहना है कि कोई भी अभियान किसी स्वप्न और जुनून के बिना नहीं चलता विरोध संभावनाओं के द्वार भी खोलता है।
दुबे जी संस्कृति को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे ले जाने पर विश्वास रखते हुए कहते हैं,”समृद्ध साहित्य की थाती छोड़ कर हम यह उम्मीद तो कर सकते हैं कि आने वाली पीढ़ी अपनी जुबान को अपनी लेखनी से आगे ले जाएगी।”
भाषा के विकास के लिए इसका घर से विकास होना जरूरी है इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि अंग्रेजी के माहौल में पूरी उम्र गुजारने के बावजूद मेरे घर में मेरी मातृभाषा की रुन-झुन आपको सुनाई देगीऔर में चाहता हूँ कि ऐसा हर भोजपुरी भाषा-भाषी के घर में हो।
भोजपुरी भाषा के संवर्धन के लिए अजीत जी को मॉरीशस के राष्ट्रपति ने विश्व भोजपुरी सम्मान से नवाजा है,बिहार सरकार ने भोजपुरी अकादमी पुरस्कार देकर इनके संघर्ष को और बल प्रदान किया है. इसके अलावा चन्द्रशेखर सम्मान ,भोजपुरी कीर्ति सम्मान आदि अनेकों सम्मान इन्हें मिले हैं।
भोजपुरी भाषा कि अस्मिता के लिए श्री अजीत दुबे जी का यह भगीरथ प्रयास उस दिन उपलब्धि बन जाएगा जब भोजपुरी भाषा अन्य भाषाओँ के साथ अष्टम सूचि में खड़ी हुई मुस्कुरा रही होगी.
Web Title: Sandeep deo is talking with Ajit Dubey on Essence of Bhojpuri_language
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