Sangh Parivar Muslim vote कितना दुःखद कि सौ सालों से भारत के हिन्दू तरह-तरह के झूठे नारों से भ्रमित किए जा रहे हैं। हिन्दू धर्म का मूलाधार है – सत्य। इसे छोड़ कर नेतालोग कठिन समस्याओं के आसान उपाय की बचकानी प्रवंचना में डूबे रहे। फलतः, जैसा कविगुरू टैगोर ने कहा था, ‘‘सत्य को हम अस्वीकार करते हैं, तभी सत्य के हाथों हमारी पराजय होती है।’’ यदि यहाँ हिन्दू समाज को बचना है तो नीमहकीमी छोड़कर सच्चे मनीषियों के बताए मार्ग पर चलें।
यह छिपा हुआ सच है कि संघ परिवार के नेता मुस्लिम वोट-बैंक की लालसा के लंबे समय से शिकार हैं। पर चूँकि वे स्वयं और उन के शत्रु, दोनों उन्हें हिन्दुत्ववादी कहते हैं, इसलिए यह छिपा रहता है। जबकि संघ नेतागण मुस्लिमों को लुभाने की कोशिशें दशकों से कर रहे हैं। इस के अनेक विवरण सीताराम गोयल की बौद्धिक आत्मकथा ‘‘मैं हिन्दू कैसे बना’’ तथा ‘‘ह्विदर संघ-परिवार: टाइम फॉर स्टॉक टेकिंग’’ (1997) में देखे जा सकते हैं।
संघ-भाजपा सरकारों ने भी इस काम में कांग्रेस को पीछे छोड़ने का बार-बार प्रदर्शन किया है। चाहे उन्हें ‘हिन्दू सांप्रदायिक’ का बिल्ला लगाकर दुनिया में बदनाम किया जाता रहा, इसीलिए उन के मुस्लिम तुष्टीकरण के क्रियाकलापों को जान-बूझ कर गायब किया जाता है। जब-तब हिन्दू समाज के अंदर से ही संघ-भाजपा के इन कामों पर आक्रोश उभरता है। यद्यपि हिन्दू-विरोधी वैचारिकता के दबदबे में मीडिया इस का नोटिस नहीं लेता।
आज भी केवल सोशल मीडिया पर अच्छे-अच्छे संघ-भाजपा समर्थक अपना सिर पीट रहे हैं। जबकि संघ नेतागण गाँधीजी की तरह मुस्लिम-समर्थन लालसा में अपनी जिद बढ़ा रहे हैं। गाँधीजी की दशकों तक उस लालसा के दुष्परिणामों से सीखने के बजाए, वे बढ़-बढ़ कर दाँव लगा रहे हैं। इस की मार पहले भी हिन्दू समाज पर ही पड़ी, और आज भी पड़ रही है, पड़ेगी। चाहे ऐसे जुआरी नेता विदा होते रहें।
उदाहरणार्थ, अब संघ नेता कहते हैं कि ‘संघ केवल हिन्दुओं का ही संगठन नहीं’, ‘भारत में सभी 125 करोड़ लोग हिन्दू हैं’, ‘भारत के सभी लोगों का डी.एन.ए. एक है’। यद्यपि ये बातें अंतर्विरोधी हैं। पहला कथन देश में गैर-हिन्दुओं का अस्तित्व मानता है। दूसरा कथन सारे भारतीय लोगों, संगठनों को हिन्दू बताता है। तीसरे कथन से अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश के लोग भी हिन्दू हुए, क्योंकि इतिहास-काल-दृष्टि से यह सब भारतवर्ष है, जहाँ का डी.एन.ए. हजारों साल से चला आ रहा वैज्ञानिक तथ्य है।
निस्संदेह, भारत के मुसलमानों और क्रिश्चियनों को ‘हिन्दू’ कहना अनर्गल है। उन की अपनी आत्मछवि अलग है। उस से आँखें चुराना अपने को मूर्ख बनाना है। ऐसी दलीलें हिन्दुओं को ही असहाय बनाती हैं। जैसे, यदि भारत में जन्मे क्रिश्चियन किसी प्रदेश को पूरा क्रिश्चियन बना लें तो कोई हर्ज नहीं, क्योंकि वे भारतीय राष्ट्रीय ही रहेंगे। मुसलमान कोई इलाका हिन्दुओं से खाली करा लें, तो भी सब ठीक है! आखिर संघ-परिभाषा से ‘हिन्दुओं’ ने ही वह सब किया, भारत में ही किया, और यहीं बने रहे।
ऐसे बचकाने बयान धर्म और भूगोल का घाल-मेल हैं। गाँधीजी की तरह असली समस्या से मुँह चुराते। ऐसे आत्मतुष्ट मुहावरों के भरोसे रहने से ही 1947 में देश का खूनी विभाजन हुआ। करोड़ों हिन्दुओं को जान-माल-क्षेत्र की हानि उठानी पड़ी। फिर, स्वतंत्र भारत में भी कई जगह वही हुआ और हो रहा है। पर कैसी विडंबना कि जिस हिन्दू समुदाय की स्थिति गत सौ साल में आधी रह गई, उसी को दोषी ठहराया जाता है! कश्मीर, केरल, या अभी बंगाल, बिहार में किन की ‘लिंचिंग’ हुई? किन्तु संघ नेता के लिंचिंग बयान से पूरी दुनिया में हिन्दू ही कठघरे में आ गए!
यह इतिहास-वर्तमान का ठोस सच है कि मुलतान से मराड, मालदह से मुजफ्फरनगर कैराना तक, केवल हिन्दुओं को इलाके-दर-इलाके मार भगाया गया। इस पर कुछ कहने, करने के बजाए उलटे हिन्दुओं की ही भर्त्सना होती है। जबकि अनेक मुस्लिम नेता ‘जिन्ना का अधूरा काम पूरा करने’ के दावे खुले-आम करते रहते हैं। उस पर संघ-भाजपा नेता मुँह नहीं खोलते। यह गाँधीजी वाली भूल का ही दुहराव है।
संघ नेताओं द्वारा ‘राष्ट्रीय’ और ‘हिन्दू’ को एक मानना सचाई झुठलाना है। यह हजार वर्ष पहले सही था। आज राष्ट्रीय/विदेशी का संदर्भ क्षेत्र है, जबकि हिन्दू/मुसलमान का संदर्भ धर्म है। इस का घपला करने से हिन्दुओं के शत्रु ही लाभ उठाते हैं। वे भारत को मुसलमानों, क्रिश्चियनों का बताकर यहाँ से हिन्दुओं को ही बेदखल करने का खुला रास्ता पाते हैं। संघ-परिवार उन को ऐसी लाजबाव ढाल दे रहा है। जब चोर को भी कोतवाल ही कहें, तो लाभ किसे होगा?
फिर, संघ-परिभाषा से दूसरे देशों में जन्मने, रहने वाले हिन्दू तो अ-हिन्दू कहलाएंगे। जिन की राष्ट्रीयता बिटिश, अमेरिकी, आदि है। यही नहीं, तब अन्य देशों में इस्लाम/क्रिश्चियनिटी छोड़ कर हिन्दू/बौद्ध बनने वालों को क्या कहेंगे?
शब्दों, विचारों के घाल-मेल के अनर्थकारी दुष्परिणाम होते हैं। गाँधीजी ने ‘मेरी परिभाषा’ का दम भर-भर कर धर्म, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, और राजनीति की धारणाओं का विचित्र कबाड़ा किया था। स्थापित शब्दों को मनमाना अर्थ देने वाले पहले स्वयं सर्वाधिक भ्रमित होतें हैं। उदाहरणार्थ, अब तो संघ-परिवार द्वारा दशकों से इस्तेमाल किया गया मुहावरा ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ गलत साबित हो गया। उन के नए मुहावरे से भारतीय मुस्लिम तो हिन्दू ही हैं। यानी, संघ-भाजपा ने कांग्रेस को झूठे बदनाम किया था!
बनावटी बातों से समस्या तो सुलझती नहीं, उलटे कर्तव्य-बोध पर पर्दा पड़ता है। मित्र-शत्रु-बोध पर भी। आखिर राष्ट्रवाद और रिलीजन को सही अर्थों में लेने वाले भी हैं। वे अपने ‘राष्ट्रीय’ हित में वैसे काम कर रहे हैं, जिस में हिन्दुओं की हानि निहित है। जिन्ना ने जिस ‘मुस्लिम राष्ट्र’ की बात की थी, वह वर्तमान भारत में फिर मुस्तैदी से खड़ा है। दशकों से प्रचारित गाँधी-नेहरूवादी शब्दजाल ने केवल हिन्दुओं को असहाय, नेतृत्वहीन बनाया। उन्हीं भ्रामक विचारों को संघ-भाजपा ने थोक भाव अपना लिया है।
जबकि सुनिश्चित धारणाओं को बिगाड़ना, अपने हाथों अपना कबाड़ा करना साबित हुआ। इन मुहावरों के खेल में ‘हिन्दू हित’ की धारणा ही अपदस्थ हो गई। इसे राष्ट्रीय हित में मनमाना विलीन कर दिया गया। सो हिन्दू हित की बात ही खत्म! जबकि देश के नेतागण ‘मुस्लिम हित’ की बातें व काम करते रहते हैं।
कायदे से, हिन्दू हित का भी उल्लेख, और व्यवस्था, होनी चाहिए थी। यह न होने की प्रतिक्रिया में ही संघ-भाजपा को विगत दशकों में राजनीतिक बढ़त मिलती गई। लेकिन, अब वे भी ‘राष्ट्रीय’ में हिन्दू का लोप कर चुके हैं। उन के सत्ताधारियों द्वारा हिन्दू-हित की उपेक्षा ही नहीं, हिन्दू-हानि की चर्चा भी गायब हो गई। अब वे मनमाने, स्वार्थी, और हिन्दू-समाज विरोधी काम भी मजे से करते हैं।
वस्तुतः, यदि ‘सभी भारतीय हिन्दू’ हैं, तो सभी अल्पसंख्यक संस्थान, मंत्रालय, विशेष प्रावधान, वृत्तियाँ, अनुदान, आदि खत्म करना तर्कसंगत था। अन्यथा यह मुहावरा हिन्दुओं पर दोहरी-तेहरी मार है, जो संघ-परिवार के नेता कर रहे है। विशेष सुविधाएं देने में वे मुसलमान या क्रिश्चियन मानते हैं। किन्तु देश में चल रहे घातक विचारों-कारनामों को रोकना हो, तब कहते हैं कि ‘सभी देशवासी हिन्दू ही’ हैं।
ऐसे वैचारिक घोटाले से हिन्दू समाज के शत्रुओं को ही नए-नए हथियार मिलते हैं। वे सदियों से अनवरत चोट कर रहे हैं। लेकिन संघ-भाजपा की नई समझ से तबलीगी जमात, देवबंदी, इंडियन मुजाहिदीन, चर्च-मिशनरी, आदि भी ‘हिन्दू’ संगठन हुए। क्योंकि सब को भारत में जन्मे नागरिक और मुख्यतः अपने संसाधनों से चला रहे हैं। अतः मुहम्मद अफजल, जाकिर नायक, जॉन दयाल, आदि भी न केवल राष्ट्रीय, बल्कि हिन्दू नेता भी हुए!
कितना दुःखद कि सौ सालों से भारत के हिन्दू तरह-तरह के झूठे नारों से भ्रमित किए जा रहे हैं। हिन्दू धर्म का मूलाधार है – सत्य। इसे छोड़ कर नेतालोग कठिन समस्याओं के आसान उपाय की बचकानी प्रवंचना में डूबे रहे। फलतः, जैसा कविगुरू टैगोर ने कहा था, ‘‘सत्य को हम अस्वीकार करते हैं, तभी सत्य के हाथों हमारी पराजय होती है।’’
यदि यहाँ हिन्दू समाज को बचना है तो नीमहकीमी छोड़कर सच्चे मनीषियों के बताए मार्ग पर चलें। वही मार्ग सरल और अचूक प्रभावशाली भी है। हिन्दू समाज को अधकचरे नेताओं पर अंधविश्वास छोड़ना चाहिए। किसी पार्टी या नेता के भरोसे रहने की आदत पहले ही उस की भारी हानि कर चुकी है।