कुछ समय से मीडिया में मोदी का रिटायरमेंट और भाजपा का नया अध्यक्ष संघ अपनी मर्जी का बनाना चाहता है इन पर भारी चर्चा हो रही है । तो क्या संघ वास्तव में ऐसा चाहता है ? तो विस्तार से संघ की कुछ गतिविधियां देखे तो ऐसा ही लगता है । वास्तविकता यह भी है कि मोदी और संघ के बीच में खटास कुछ ज्यादा ही होती जा रही है ।
नरेन्द्र मोदी वैसे तो अपनी मनमानी के लिए जाने जाते है । यदि हम कुछ पिछली बातों का अभ्यास करे तो मोदी को मराठियों से भारी चीड़ है, गुजरात में संघ के मराठी कल्चर का एक समय विरोध हो रहा था और बेनाम पत्रिका भी छापी गई थी । धीमे सुर में लोग बोलते थे पत्रिका के पीछे मोदी का हाथ है या उसने ही छपवा के बंटवाई थी ।
मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब संघ के मुखिया सुदर्शन जी थे । गुजरात की कुछ गतिविधियों से वह नाराज थे, वह मोदी को उनकी सूचना देते थे पर “नराणाम इंद्र – नरेंद्र” इनकी बाते क्यों सुनते ? ऐसा कहा जाता है मोदी जी सुदर्शन जी के फोन ही नहीं उठाते थे और ना उनसे मिलते थे। कहा जाता है संघ के मुखिया के रूप में उनकी विदाई का कारण भी यही रहा । सुदर्शन जी को जबरदस्ती पद बेदखल किया गया । मोहन भागवत की मोदी की नजदीकता थी अतः भागवत मुखिया बनते ही मोदी के लिए दिल्ली के द्वार खुल गए ।
भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी की विदाई के बाद पपेट अध्यक्ष राजनाथ सिंह का इस्तेमाल करके संघ के मुखिया मोहन राव और मोदी जी ने प्रधानमंत्री के दावेदार लाल कृष्ण आडवाणी का पत्ता साफ कर दिया। आडवाणी जी ने विरोध तो किया पर संघ के मुखिया मोहन भागवत ने उनकी चलने नहीं दी । भाजपा में केवल आडवाणी ही नहीं अपितु सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा आदि ने भी विरोध किया पर मोदी के भागवत नामक हथियार मजबूत था । आखिर सब मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर दिए गए। अब भागवत और मोदी ही सर्वेसर्वा हो गए। मोदी ने संजय जोशी को हटाओ, भागवत ने कहा, जी सरकार । तोगड़िया हटाओ, भागवत ने कहा, जी सरकार । मोदी बोलते गए भागवत करते गए । पर नरेंद्र मोदी जिनका नाम, वह अपने आसपास अपनी परछाई भी सह नहीं सकते तो मोहन भागवत को कैसे सहते ?
सत्ता मिलते ही मोहन भागवत मोदी विरोधियों का पत्ता साफ करने में इस लिए सहायक बने की वह भाजपा को रिमोट से चलाना चाहते थे । संघ भारत वासियों की तरह अंदर अंदर यह गीत गुनगुना रहा था, “दुख: भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे” पर भारतीय नेताओं के पाप से ना वह दिन भारत वासियों के लिए आया ना मोहन राव के लिए । दस साल तक भाजपा की सर्वोच्च सत्ता के सामने कल अच्छा हो जाएगा कि आश में संघ चुप रह कर सब कुछ सहता रहा । संघ के सारे आयाम जैसे कि किसान संघ, मजदूर संघ, विश्व हिंदू परिषद, स्वदेशी मंच अरे खुद संघ की शाखाएं नामशेष होने लगी । शाखाओं में केवल छूट फूट बूढ़े स्वयं सेवक ही दिखते है । संघ के प्रति समाज में आस्था घटने लगी । विश्व हिंदू परिषद डॉ. तोगड़िया जी हटते मृतप्राय: हो गया । परिषद के पास मोदी जी की चाकरी के सिवा कोई काम न रहा । डॉ. तोगड़िया जी के हटते ही परिषद में संघ और मोदी के चाकर पद पर स्थापित होने लगे । उनके पास स्वतंत्रता नहीं थी । पीएमओ से जो आदेश होता था वहीं उनको करना था । तोगड़िया जी के गरजने वाली परिषद एक तरह गूंगी हो गई । परिषद का पतन तो पूरी दुनिया ने अयोध्या राम लल्ला के प्रतिष्ठा समारोह में देखा । अयोध्या राम जन्म भूमि आंदोलन सारा श्रेय विश्व हिंदू परिषद का ही है । परम पूज्य साकेत वासी परमहंस रामचन्द्रदास जी महाराज, श्रद्धेय गिरिराज किशोर जी, डालमिया जी, अशोक सिंघल जी, डॉ. प्रवीण तोगड़िया जी का योगदान पूरा विश्व जानता है । पर राम लल्ला के प्रतिष्ठा समारोह में या आयोजन में ना कही विश्व हिंदू परिषद का नाम लिया गया नहीं उन योद्धाओं का स्मरण किया गया जिसने अपना सर्वस्व इन आंदोलन में समर्पित कर दिया था । देश में जो स्थान संघ के मुखिया का था उनको भी धूमिल किया गया । प्रतिष्ठा महोत्सव में मोहन राव बिचारे दिखाई दिए । अयोध्या राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह में पूज्य पाद महंत श्री नृत्य गोपाल दास जी ने अपना अल्प वक्तव्य से अपनी नाराजगी स्पष्ट कर दी । पर संघ अभी भी मोदी के सामने आश लगाए बैठा था । विहिप एवं अयोध्या तीर्थ ट्रस्ट के मंत्री चंपत (चापलूस)राय को मोदी में साक्षात् नारायण दिखाने लगा । देश में और विदेश में अंध भक्त द्वारा फैलाए हुए झूठ के कारण मोदी की जय जयकार होने लगी। सामान्य जन तो ठीक बड़े बड़े मंडलेश्वर महामंडलेश्वर, कथावाचक और अंधे जगद्गुरु मोदी की बिरदावलियाँ गाने लगे । गगन से फूल बरसने लगे । मोदी ने जब बनारस में सैकड़ों शिवालय शिवलिंग तोड़े अनेक पुरातन मंदिर तोड़ दिए तब भी यह धर्म के तथाकथित ठेकेदारों ने विरोध करने के बजाय कॉरिडोर को ऐतिहासिक कदम बताकर बिरदावलियां गाने लगे । गोस्वामी तुलसी दास जी का वह सुंदरकांड का वह दोहरा : “सचिव वेद गुरु तिनही जो प्रिय बोलही भय आस….।” सिद्ध हो गया । संत धर्म मार्गी होते है पर राज सत्ता के चाकर बन गए ।
खैर, लोकसभा २०२४ के चुनाव आते आते साक्षात् नारायण मोदी एवं उनके परिकरों का दिमाग सातवें आसमान पर पहुंच गया । संघ, परिषद और मोहन भागवत की अवमानना करने लगे । भाजपा के पपेट अध्यक्ष जगदप्रकाश नड्डा तो यहां तक बोल गए हमे कोई संघ जरूरत नहीं। चुनाव के परिणाम के दिन भाजपा के ४०० पार ही हवा निकल गई । दस साल तक निरंकुश मोदी सरकार अब लंगड़ी हो गई। दस साल तक मोदी की मनमानी के सामने हाथ मलकर बैठे रहे संघ परिवार और भाजपा में मोदी पीड़ित लोग एक होने लगे । भागवत के सामने “कुछ करो” की प्रार्थना होने लगी । पर अब पानी शर से ऊपर चला गया था। अब मोदी को मोहन राव और संघ के बजाय, चंद्रबाबू और नायडू उपयोगी लगते है ।
संघ तरह तरह से मोदी पर प्रहार कर रहा है पर मोदी है कि मानता ही नहीं… विश्वास प्राप्त सूत्रों से जानकारी प्राप्त हुई है कि मोदी और भागवत के बीच बातचीत का संबंध भी खतम हो गए है । मोदी भागवत का सुदर्शन जी की तरह फोन भी नहीं उठा रहे है । भागवत को यहां तक डर घूस गया की शायद वह मोदी को संघ के सामने उपस्थित होने का आदेश देंगे तो भी उनको अनसुना कर देंगे ।
इस हाल में संघ के मुखिया मोदी दुखियों की फौज एकठी कर अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास कर रहा है । देखे, आगे आगे होता है क्या….
- डॉ. स्वामी गौरांगशरणदेवाचार्य
संपादक : हिंदू स्पिरिट