विपुल रेगे। क्या पुण्य श्लोक लोकमाता अहिल्या बाई होलकर की तुलना ममता बनर्जी से की जा सकती है ? ये तुलना शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कर डाली है। संजय राउत ने शिवसेना के मुखपत्र सामना में अहिल्या जी के जीवनकाल के एक युद्ध प्रसंग का उल्लेख किया है। उस प्रसंग में अहिल्या जी ने बिना युद्ध किये ही शत्रु को पीछे हटने पर विवश कर दिया था। इन्दौर के होलकर राजवंश ने इस पर कड़ी आपत्ति लेते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिख दिया है। संभवतः संजय राउत अहिल्याबाई होलकर की महानता से परिचित नहीं है।
होलकर राज्य का एक अधिकारी चंद्रचूड़ राघोबा दादा राज्य पर कब्जा करने की नीयत से सेना लेकर इन्दौर के पास क्षिप्रा नदी के तट पर आ गया। अहिल्या जी ने निर्भीकता से अपनी महिला सेना तैयार की और क्षिप्रा के तट पर डेरा जमा लिया। राघोबा ने सोचा भी नहीं था कि अहिल्याबाई से उसे ऐसा प्रत्युत्तर मिलेगा।
अहिल्या जी के जीवन प्रसंगों में ये प्रसंग बहुत महत्वपूर्ण और प्रेरक है। इसी प्रसंग को लेकर संजय राउत ने ममता बनर्जी की तुलना अहिल्या जी से कर डाली। उनको लगता है कि ममता बनर्जी की राजनीतिक विजय किसी तरह से अहिल्या जी के इस प्रसंग के बराबर ठहरती है। विरोधस्वरुप भूषणसिंह राजे होलकर ने उद्धव ठाकरे को लिखा है कि ‘संपूर्ण देश में जनपयोगी कार्य करने वाली अहिल्या जी की तुलना आज के युग की एक ऐसी नेता से नहीं की जा सकती, जो अपने ही लोगों पर अत्याचार कर रही है।’
भूषणसिंह के कथन का प्रत्येक भारतीय समर्थन करेगा। कई बार अहिल्या जी पकी हुई फसलों को किसानों से उचित दाम पर खरीद कर पक्षियों के लिए सुरक्षित कर देती थी। उनकी ममतामयी छवि की तुलना एक ऐसी मुख्यमंत्री से की जा रही है, जिसका इतिहास परोपकार में तो नहीं, अपितु बंगाल को रक्तरंजित कर देने का रहा है।
इस समय विपक्ष ममता बनर्जी को ऐसी नेता के रुप में देखने लगा है, जो भविष्य में नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सकती है। संजय राउत जैसे नेता ममता के नेतृत्व में एक मोर्चा खड़ा करना चाहते हैं, जो भविष्य के आम चुनाव में भाजपा के विरुद्ध लामबंद होगा। ममता की स्वीकार्यता बंगाल के बाहर कितनी होगी, ये तो हमें भविष्य पर छोड़ देना चाहिए और अभी ये चिंता करनी चाहिए कि संजय राउत जैसे नेताओं के हाथ हमारे लोकनायकों तक पहुँचने लगे हैं।
इन्दौर के होलकर परिवार की कड़ी प्रतिक्रिया इसलिए आई क्योंकि देश में अहिल्या बाई होलकर को देवी सदृश देखा जाता है। उन्होंने न केवल देश के प्रमुख मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया, अपितु इतनी जल सरंचनाएं बनवाई कि उनका नाम नगर-नगर में पूज्यनीय हो गया।
संजय राउत को अधिकार है कि वे अपनी राजनीति करें, लेकिन वे अपनी राजनीति में अहिल्या जी जैसे व्यक्तित्व की तुलना वर्तमान राजनेताओं से करते हैं, तो उनको विचार करना चाहिए। एक ऐसी महिला नेता जो राम के नारे पर सार्वजानिक रुप से घृणा व्यक्त करती हो, वह अहिल्या बाई की तरह कैसे हो सकती है।
उद्धव ठाकरे ने अब तक होलकर परिवार के पत्र का उत्तर नहीं दिया है। इस प्रकरण में ठाकरे को संज्ञान लेकर संजय राउत को अपने लेख पर क्षमा मांगने के लिए कहना चाहिए। अहिल्या जी ने भारत में सैकड़ों मंदिर, धर्मशालाएं, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया था और ममता बनर्जी धर्मद्रोहियों को शरण देती है। धर्मद्रोही और धर्मनिष्ठ की तुलना कैसे की जा सकती है।