अजय शर्मा, वाराणसी। सर्व धर्म सम भाव हिंदू धर्म की नही अपितु यह एक राजनीतिक अवधारणा है। जिसके अनुसार सभी धर्मों के द्वारा अनुसरण किए जाने वाले मार्ग भले ही अलग हैं, किंतु उनका गंतव्य एक ही है।
चूंकि को रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द जिन्होंने शिकागो सम्मेलन1893( जहाँ उन्होंने सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था न कि राजनीति हिन्दू धर्म का )में भारत की सनातन धर्म के बारे में आपने अद्वितीय सम्बोधन दिया था। परन्तु राजनीतिक जीवन के अग्रणी महात्मा गांधी ने हिन्दू धर्म को इस्लाम के साथ जोड़कर “सर्व धर्म समभाव”की परिभाषा पनपने दी।
हालाँकि इतिहासकारों के द्वारा ऐसा कहा जाता है कि इस विचार का उद्गम वेदों में है, परन्तु वेदों में तो सनातन सभ्यता और संस्कृति का ही वर्णन है वैसे इसका अविष्कार गांधीजी ने किया था। उन्होंने इसका उपयोग पहली बार सितम्बर १९३० में हिन्दुओं और मुसलमानों में एकता जगाने के लिए किया था, ताकि वे मिलकर ब्रिटिश राज का अंत कर सकें। और
फिर 2005 में हिन्दू पुरोधा मोदी जी ने यह बात कही की वे इस्लाम विचारधारा के समर्थक हैं। सर्व धर्म समभाव भारतीय पंथनिरपेक्षता के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है, जिसमें धर्म को सरकार एक-दूसरे से पूरी तरह अलग न करके सभी धर्मों को समान रूप से महत्त्व देकर राजनीतिक एकरूपता देने का प्रयास करती आई है। सर्व धर्म सम भाव के सार्वभौमिकता के कारण आज सनातन सभ्यता और संस्कृति अपनी धार्मिक अस्मिता और अपनी कई समृद्ध परंपराओं को खो दिया है।