विपुल रेगे। संसार छोड़कर जाने से पहले सतीश कौशिक ने मनभर होली खेली थी। मुंबई में साथियों के साथ रंग खेलने के दूसरे दिन वे परिवार के साथ दिल्ली में खूब रंग खेले थे। शायद उनका अवचेतन मन भांप गया था कि अब ‘स्टेशन’ आने ही वाला है। सतीश जाते-जाते प्रेम के अनगिनत रंग समेट कर ले गए। एक शानदार अभिनेता, एक उम्दा डायरेक्टर और उससे भी बढ़कर एक प्यारा इंसान, जिसके साथ हर कोई रहना चाहता था। वे थे ही इतने प्यारे कि कोई उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता था।
66 का आंकड़ा ये बताने के लिए पर्याप्त होता है कि किसी भी दिन व्यक्ति अनंत यात्रा पर जा सकता है। हालाँकि मनमौजी सतीश कौशिक ने ये सोचकर कभी ज़िंदगी जी ही नहीं कि अंतिम स्टेशन कभी भी आ सकता है। सतीश कोई सुपरस्टार नहीं थे लेकिन एक बहुत अच्छे इंसान थे। निर्मल व्यक्तित्व होने के कारण फिल्म उद्योग में सतीश को बहुत अच्छे दोस्त मिले। अनुपम खेर और सतीश की दोस्ती तो 45 वर्ष पुरानी है। इतनी लंबी मित्रता में जब दोस्त अचानक साथ छोड़ देता है तो मन बहुत दिन तक कचोटता है।
दोस्त की निष्प्राण देह के पास बैठे अनुपम रह-रहकर रो पड़ते थे। दोस्ती के ये पैंतालीस साल सिनेमा की रील की तरह उनके मन में उभर रहे थे। इन दोनों की दोस्ती के बड़े किस्से हैं। एक समय था, जब सतीश के पास काम था लेकिन अनुपम पैसों की दिक्कत से परेशान थे। इस समय तक दोनों में गहरी मित्रता नहीं हुई थी। अनुपम ने पैसे उधार मांगे। सतीश ने दे दिए। अमाउंट था अस्सी रुपया। उस समय ये पैसा इन स्ट्रगलर्स के लिए बहुत मायने रखता था। अनुपम पैसे दे नहीं पा रहे थे तो सतीश से नज़र चुराने लगे। एक दिन सतीश क्रिकेट का बैट लेकर अनुपम के घर पहुँच गए और ललकार दिया। सतीश का ये रुप देखकर अनुपम बहुत डर गए। अनुपम ने कहीं से व्यवस्था कर 60 रुपये सतीश को लौटाए। इसके बाद दोनों की दोस्ती शुरु हुई।
सतीश संघर्ष के दिनों में असिस्टेंट डाइरेक्टर का काम किया करते थे और छोटे रोल मिल जाते तो कुछ पैसों की व्यवस्था हो जाती। ये समय ‘मिस्टर इंडिया’ से पहले का था। एक बार उन्होंने अनिल कपूर के साथ ‘वो सात दिन’ में काम किया। ये रोल बहुत छोटा था। एक फूलवाले का किरदार फिल्म में कब आता और चला जाता है, किसी को मालूम ही नहीं पड़ा। फिल्म से सतीश को पैसा तो ज़्यादा नहीं मिला लेकिन अनिल कपूर की दोस्ती मिल गई, जो आगे बहुत दूर तक चली। ‘वो सात दिन’ में काम करते समय सतीश कौशिक के पास अच्छी शर्ट नहीं थी। अनिल कपूर ने उन्हें अपनी शर्ट दे दी। वह शर्ट अनिल कपूर को ऋषि कपूर ने भेंट दी थी। ऋषि ने वह शर्ट अपनी एक फिल्म ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ में पहनी थी।
सतीश ने संघर्ष के दिनों में ‘जाने भी दो यारों’ में भी छोटा सा रोल किया था। फिर शेखर कपूर की ‘मिस्टर इंडिया’ मिली और किस्मत बदल गई। अब कैलेंडर के रुप में वे घर-घर में मशहूर हो चुके थे। संवाद लेखन और असिस्टेंट डायरेक्टर वाली दुश्वारियां पीछे छूट चुकी थी। संघर्ष के दिनों में उन्होंने कुछ दिन एक टेक्सटाइल फैक्टरी में भी काम किया था, साथ ही नादिरा बब्बर के थियेटर ग्रुप में अभिनय करते रहते थे। सतीश दिखने में अच्छे नहीं थे लेकिन उनके अंदर सोने का दिल धड़कता रहता था।
जब अभिनेत्री नीना गुप्ता का अफेयर विव रिचर्ड्स के साथ हुआ लेकिन विव उनसे विवाह नहीं कर सकते थे क्योंकि वे पहले से विवाहित थे। नीना जब गर्भवती हुईं तो उनकी चिंताएं और बढ़ गई थी। नीना गुप्ता ने अपनी एक किताब में लिखा है कि उनके गर्भवती हो जाने की बात पता चलने पर सतीश ने शादी का प्रस्ताव दिया था। वे नीना के बच्चे को अपनाने के लिए तैयार थे। बात में सतीश ने कहा था कि वे एक दोस्त की तरह नीना के लिए खड़े रहना चाहते थे।
अब सतीश नहीं हैं लेकिन उनके किस्से हवाओं में तैर रहे हैं। जीवन की अनिश्चिंतता ऐसी ही होती हैं। वह कुछ अध्याय अधूरे ही छोड़ देता है। सतीश बहुत से प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। परिवार के साथ होली खेलने के उन क्षणों में एक क्षण ‘काल’ का था। वह क्षण बिना बोले, चुपके से दबे पैर आया और सतीश को लेकर चल दिया। अनुपम के धार-धार बहते आंसू बताते हैं कि सतीश एक निष्ठावान व्यक्ति था। उसकी निष्ठा एक ईमानदार जीवन जीने में थी और वह उसने भरपूर जीया।