पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल बाजबा से गलबहियां क्या नवजोत सिंह सिद्धू पर इस कदर भारी पड़ने वाला है कि तीस साल पुराने रोड रेज के जिस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें महज एक हजार रुपये का जुर्माना कर छोड़ दिया था उसी मामले में उन पर गाज गिर जाएगी! क्या पंजाब के मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह चाहते हैं कि चाहे कुछ भी हो भारतीय सेना को अपमानित कर दुश्मन के सेना प्रमुख को गले लगाने वाले सिद्धू को किसी तरह से उनके मंत्रीमंडल से बाहर किया जाना चाहिए! पंजाब के पटियाला में रोड रेज के जिस तीस साल पुराने मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ही माह पहले सिद्धू को महज एक हजार रुपये के जुर्माने पर छोड़ दिया था उसी मामले में दाखिल पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। यदि इस मामले में पंजाब सरकार के वकील की दलील मजबूत रही तो सिद्धू का जेल जाना तय है। जेल जाते ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक उन्हें कांग्रेस की कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार से मंत्री का पद छीन जाएगा। तो क्या सिद्धू का जितना इस्तेमाल किया जाना था कांग्रेस द्वारा कर लिया गया!
किसी हाईप्रोफाईल मामले में अभियुक्ति को सजा सुनाते हुए अदालत अक्सर यह संदेश देती है कि अभियुक्त को दी गई सजा सिर्फ सजा नहीं समाज को दिया जानेवाला संदेश है। लेकिन 1988 में पंजाब के पटियाला में रोड रेज केस में आरोप साबित होने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने महज एक हजार रुपये का जुर्माना कर सिद्धू को राहत दे दी थी। जबकि इसी मामले में पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने सिद्धू को गैर इरादतन हत्या का दोषी मानते हुए तीन साल की सजा सुनाई थी। मामला जब सुप्रीम कोर्ट आया तो जस्टिस चेलमेश्वर की कोर्ट ने इस मामले को गैर इरादतन हत्या के बदले रोडरेज का मामला माना। सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू के वकील के इस दलील को मान लिया कि पटियाला की पार्किंग में जिस बुजुर्ग की पिटाई सिद्धू ने की थी वह कमजोर दिल का आदमी था। वह बीमार था। सिद्धू की मंसा उसे मारने की नहीं थी। लेकिन गुरमीत सिंह नामक बुजुर्ग की मौत हो गई। अब गुरमीत के पुत्र ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल मांग की है कि इस मामले को गंभीरता से सुना जाए और उन्हें इंसाफ दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने गुरमीत के पुत्र की अर्जी पर इस मामले पर फिर से परीक्षण करने का फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि सिद्धू को जेल की सजा दी जाए या नहीं। शिकायतकर्ता की पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सिद्घू को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
दिलचस्प यह है कि पुनर्विचार याचिका वही बैंच सुनती है जिसने पहले फैसला दिया होता है। लेकिन इस मामले में फैसला देने वाले सिनियर जस्टिस चेलमेश्वर रिटायर्ड कर गए हैं। चेलमेश्वर वही जज थे जिनकी अगुआई में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कांफ्रेस किया गया था। सुप्रीम कोर्ट सिद्धू के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई खुली अदालत में करेगा। नियमों के मुताबिक पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जज चेंबर में फैसला लेते हैं। यानी सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर उनकी बात सुनना चाहता है।
सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट ने गैर इरादतन हत्या के बदले IPC की धारा 323 के तहत साधारण मारपीट की सजा सुनाई थी। इसमें अधिकतम एक साल की सजा या एक हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों हैं। लेकिन जस्टिस चेलमेश्वर ने पंजाब सरकार के मंत्री सिद्धू को बड़ी राहत देते हुए सिर्फ एक हजार का जुर्माना किया था। उस समय न्यायिक गलियारों में यह चर्चा जोड़ो पर थी क्या जस्टिस चलामेस्वर की बैंच ने सिद्धू को महज एक हजार रुपये का जुर्माना कर इसीलिए छोड़ दिया गया क्योंकि वो कांग्रेस के पंजाब सरकार में मंत्री थे! अब नए फैसले के तहत सिर्फ सजा पर ही विचार होगा, यानी एक साल की सजा पर ही। दोषी किस धारा में माना जाए, इस पर विचार नहीं होगा। लेकिन इस पर फैसला सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच करेगी। बेंच बदलेगी तो फैसले के बदले की उम्मीद बढ़ेगी !
अगर सुप्रीम कोर्ट सिद्धू को दोषी सजा सुना देती है तो साथ ही सजा खत्म होने के बाद छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। सिद्धू पर आरोप था कि 27 दिसंबर, 1988 को पटियाला में सड़क पर 65 वर्षीय गुरनाम सिंह से बहस हो गई। इस पर उन्होंने गुरनाम को मुक्का जड़ दिया। अस्पताल में ब्रेन हैंमरेज से उसकी मौत हो गई। निचली अदालत ने सिद्धू को आरोप मुक्त कर दिया था लेकिन पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को दरकिनार करते हुए सिद्धू को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराते हुए तीन वर्ष कैद की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने महज एक हजार रुपये का जुर्माना कर सिद्धू का राजनीतिक करियर बचा दिया था। अब हालात बदल गए हैं। गुरनाम के परिजनों की तरफ से पंजाब सरकार को जिरह करनी है। बैंच भी अलग है और पंजाब की कांग्रेस सरकार का मिजाज भी अलग। ऐसे में तीस साल पुराना मामला सिद्धू को सलाखों के पीछे भेज सकता है। तब उन्हें जनरल बाजबा का गलबहिंया बहुत याद आएगी। कभी भाजपा से कांग्रेस में लाकर सिद्धू को इस्तेमाल करने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह संदेश दे पाएंगे कि भारतीय सेना के मनोबल को कमजोर करने वालों को वो नहीं छोड़ते ।
URL: SC reopens 1988 road rage case against Navjot Singh Sidhu
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