सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद देश भर के दलित सड़क पर आ गए और कोहराम मचा दिया। थाना से लेकर देश भर में अरबो रुपये की संपत्ति जला कर खाख कर दिया, दर्जन से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी, यह सब राजनीतिक दलों के नैतिक समर्थन के साथ। जो लोग सड़क पर दंगा कर रहे थे वे देश जला देने के आक्रोश में थे। उन्हे बताया गया कि सरकार ने SC/ST ACT को खत्म कर दिया। मीडिया ने भी गुमराह लोगों को नहीं बताया कि आदेश सरकार का नहीं सुप्रीम कोर्ट का है और सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST ACT में कोई बदलाव नहीं किया बल्कि सिर्फ यह व्यवस्था दी कि शिकायत करने के तुरंत बाद गिरफ्तारी से पहले इसकी पड़ताल हो कि शिकायत सिर्फ बदले के भाव से तो नहीं है।
जस्टिस गोयल की पीठ ने भारत सरकार, द्वारा दाखिल पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए कहा “प्रदर्शन करने वालों ने हमारे आदेश को पढा ही नहीं, हमने तो SC/ST ACT में कोई बदलाव नहीं किया बस मौलिक अधिकार की व्याख्या की थी। जस्टिस गोयल ने तो यह बात आम आदमी के लिए की थी!” सवाल यह है कि क्या मीडिया मठाधिशों या राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट के इस बेहद महत्वपूर्ण आदेश को पढ़ा या समझने की कोशिस की? देश भर में दंगे हो रहे थे! राहूल गांधी ट्वीटर पर कहा कि भारत सरकार ने दलितों के अधिकार छीन लिए!
राहूल को तो उनके विरोधी पप्पू कह कर खारिज कर देंगे,सवाल यह है कि मीडिया के पप्पूओं को क्या कहा जाए। एबीपी पर ‘मास्टर स्ट्रोक’ मारते हुए खुद को महाज्ञानी समझने वाले पुण्य प्रसुन वाजपेई ने घंटे भर हाथ मलते हुए यही साबित करते रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने दलितों के अधिकार छीन लिए। वे साबित करते रहे कि दलितों के पर कैसे अत्याचार हुए। यही हाल कमोबेश हर चैनल ने किए। कुछ चैनलों ने बस यही दिखाया कि दिन भर दंगा कैसे हुआ? किसी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की व्याख्या कर यह नहीं बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार की व्याख्या कि है। निर्दोषों को गिरफ्तार करने से पहले इसकी जांच तो हो कि उसने SC/ST ACT का उल्लंधन किया या नहीं।
कोर्ट ने साफ कहा था कि सीआरपीसी की धारा 41 हर नागरिक पर लागू होता है। जिसमें किसी भी गिरफ्तारी से पहले प्राथमिक जांच जरुरी है। मीडिया के मठाधीश यदि अपने चैनल के सुप्रीम कोर्ट रिपोर्टर की सलाह लेकर भी अपना ज्ञान बढाते तो देश भर में अरबों की संपत्ति नष्ट होने से बचाया जा सकता था। दर्जन से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचाया जा सकता है। मीडिया के मुर्खों और साजिशकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सही व्याख्या की होती तो देश को आग लगने से बचाया जा सकता था।
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