सबसे पहले दो तथ्य
*मैं अनुसूचित जाति से हूँ!
*पुलिस विभाग में डीएसपी हूँ। दोनों तथ्य जानने के बाद नीचे पूरा पढ़ लीजियेगा तब आप चाहे दलित हों या (कथित) सवर्ण जितना गाली देना होगा दे दीजियेगा!
एक अप्रैल की रात के नौ बजे बिहार के कैमूर जिले के भभुआ शहर के अनुसूचित जाति छात्रावास के करीब पन्द्रह उत्साही लड़के और छात्र नेता मिलने आये। उन्हें भारत बंद करना था भारत न हुआ खिड़की हो गई। तेज़ हवा आ रही है बंद कर दो। पहले लगा मुरख दिवस का मजाक कर रहे हैं फिर उनका गंभीर चेहरा देख के हम भी गंभीर हो गए पूछने पर इन्होने बताया की कल जुलुस निकालना है। बिहार पुलिस एक्ट, 2007 के अनुसार कोई भी जुलुस चाहे रामनवमी का हो या दुर्गा पूजा या मुहर्रम या राजनितिक आपको एक जुलुस लाइसेंस लेना होता है। जुलुस लाइसेंस डी।एसपी के पास फ्री में मिलता है! बस एक आवेदन देना होता है। इनको नियम मालूम नहीं था जो कोई बड़ी बात नहीं थी इसलिए नियम बताया गया।
पानी पिलाकर मैंने पूछ लिया कि भाई कल और क्या-क्या करना है? बोले भारत बंद करना है ! पूछे क्या तकलीफ हो गई भारत से? एक स्वर में कहा एस।सी।/एस।टी एक्ट में जो हुआ है उसके विरोध में निकालना है। एक बार और पूछा, हुआ क्या है? सब चुप, चार-पांच बार पूछा पुरे भारत को बंद करने के लिए तैयार खड़े हो पर किसलिए यह तो बताओ। एक ने गला साफ़ कर बताया की SC/ST एक्ट में छेड़-छाड़ हुआ है। SC/ST एक्ट न हुआ, लड़की हो गई!
बस जानकारी के लिए बता रहा हूँ। थोडा धैर्य रखकर पढ़ लीजिये समझ लीजिये! डी।एस।पी हूँ अनुसूचित जाति से हूँ इसलिए सुन लीजिये! उसके बाद खिड़की बंद करिए, भारत बंद करिए, दरवाजा बंद करिए जो करना है करिए पर करने से पहले बाबा साहेब ने कहा था उसको जरा याद रखिये और उस क्रम को याद रखिये – Educate, Agitate and Organise। ये लोग भी Educated होने के पहले ही Agitated हो गए थे। ठीक वैसे ही जैसे हमारे समय कुछ ज्यादा तेज़ बच्चे क्लास फांद के सीधे दूसरा क्लास से चौथा में चले जाते थे। हम लोग तो एक क्लास में दू-दू साल लटकते थे।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने (संभवतः) कहा है। संभवतः शब्द इसलिए कि अभी आदेश की कॉपी नहीं मिली है बस अखबारों में पढ़े न्यूज़ के आधार पर बता रहा हूँ, वैसे बाकियों के पास भी उससे ज्यादा जानकारी नहीं है –
एससी।/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तुरंत गिरफ़्तारी नहीं होगी इसके लिए एसपी का आदेश चाहिए। बाकी राज्यों का हाल नहीं पता पर बिहार में तो पहले भी यही था। एससी।/एसटी एक्ट के दर्ज प्राथमिकी में अनुसन्धान आरम्भ होता है फिर डीएसपी सुपरविज़न करते हैं जिसमे तय होता है की साक्ष्य क्या हैं और उस मामले में गिरफ़्तारी करनी है। इसे सुपर-विज़न नोट कहते हैं फिर एस०पी० रिपोर्ट-२ निकालते हैं। जिसमे सुपरविज़न नोट पर अनुमोदन होता है। तब गिरफ़्तारी होती है तो बदला क्या बिहार के मामले कुछ नहीं ?
दूसरा अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) का प्रावधान पहले नहीं था अब कर दिया गया है। पहले बेल या जमानत को समझ लीजिये। जब किसी मामले में किसी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है तो वह जेल जाने के बाद जेल से बाहर आने के लिए कोर्ट में जमानत याचिका दायर करता है। इसे रेगुलर बेल कहते हैं। दूसरी स्थिति यह होती है की आरोपी को जैसे ही पता चलता है की उसपर कोई केस है वह फरार हो जाता है और वकील के माध्यम से कोर्ट में के लिए यह कहते हुए आवेदन देता है की मुझे फंसाया जा रहा है मुझे गिरफ़्तारी से बचने के लिए बेल दिया जाये। अगर कोर्ट को यह लगता है की सही में मामला ऐसा है तो अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) ग्रांट कर सकता है पर आप सभी की जानकारी के लिए वर्ष 2015 से ही एससी।/एसटी एक्ट के तहत दर्ज अधिकांश मामलों में (चूँकि सात साल से कम की सजा है) इसलिए बेल या जमानत की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी और थाना पर से ही 41 CRPC के तहत बांड पर छोड़ दिया जाता था। सो प्रैक्टिकली बहुत अंतर नहीं पड़ा है।
पहले किसी सरकारी अधिकारी के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत का केस दर्ज होने पर तब तक उसे गिरफ्तार नहीं किया जायेगा जब तक की उसे नियुक्त करने वाले प्राधिकार के द्वारा अनुमति न मिले। CRPC की धारा 197 के अनुसार पहले से ही यह प्रावधान है की किसी लोकसेवक के विरुद्ध न्यायालय में किसी भी मामले में तब तक संज्ञान नहीं लिया जायेगा जब तक की उसे नियुक्त करने वाले प्राधिकारी का अनुमोदन प्राप्त नहीं हो। इसमें मुझे तो कुछ भी गलत नहीं लगता क्योंकि अपने छोटे से सर्विस पीरियड में मैंने भारी पैमाने पर कथित उच्च जाति के पदाधिकारियों को अनुसूचित जाति के कर्मी और इस एक्ट का इस्तेमाल अपने विरोधी कथित सवर्ण पदाधिकारी को दबाने में करते देखा है।
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अब माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से थोडा हट कर –
दुरूपयोग हर कानून और धारा का होता है। मैंने आज तक सबसे ज्यादा दुरूपयोग किसी धारा का देखा है तो वो है चोरी की धारा 379, जो लोग कोर्ट कचहरी पुलिस से जुड़े हैं जानते हैं मारपीट के हर FIR का अंतिम लाइन ये ज़रूर होता है ‘मेरे गले से सोने का चेन छीन लिया” भले घर में खाने को पैसा नहीं हो पर इस देश में हर पिटे हुए व्यक्ति के गले में सोने का चेन ज़रूर होता है। ये लाइन सिर्फ इसलिए हर प्राथमिकी में लोग जोड़ते हैं या वकील भाईसाहब लोग जुड़वाते हैं ताकि चोरी की धारा लगे।
कल रात जिन्हें जुलुस लाइसेंस देने बुलाया था आज उनके बुलावे पर “शांतिपूर्ण प्रदर्शन” करने आये साथियों ने जम कर बवाल काटा। लाठी डंडा लेकर पूरे भभुआ शहर में घूम-घूम कर बवाल काटा। गाड़ियाँ तोड़ी, शीशे फोड़े, दूकान लुटे। कल दस बार समझाया था भीड़ इकट्ठी करना आसान है उसे नियंत्रित करना लगभग असंभव है। कल जिनको पानी पिलाया था आज उनपर प्राथमिकी दर्ज करवा रहा हूँ। सुना है सभी होस्टल छोड़ कर फरार हैं। आज जहाँ भी फरार होंगे मेरी कल की बात को ज़रूर याद कर रहे होंगे क्योंकि जब उन्होंने अपने सहयोगियों को रोकने की कोशिश की तो खुद ही उनसे ही पिटते पिटते बचे।।कल मैंने कहा था बार बार कहा था भीड़ उतनी ही इकट्ठी करना जितने को संभाल सको।
रात ग्यारह बजे एक बड़ी पार्टी के नेता ने फोन किया पहले माननीय रह चुके हैं। बहुत सारे लोगों के नाम के आगे माननीय नहीं लगाने पर रूठ जाते हैं। पूछा आज जो केस हो रहा है तोड़ फोड़ वाला उसमे मेरा नाम है या नहीं। मैंने कहा आप तो कहीं दिखे नहीं सो आपका नाम क्यों रहेगा ? मैंने सोचा सुना कर भूतपूर्व माननीय खुश होंगे की चलो बेकार में फंसे नहीं हुआ उल्टा बताने लगे की नहीं हम तो फलना चौक पर पुरकस विरोध किये हैं आपको हम दिखे कैसे नहीं। फिर बोले केस में देखिएगा, मेरा भी नाम रहेगा तो ठीक रहेगा। मैंने पूछा काहे ठीक रहेगा तो बोले अरे नाम हो जायेगा। दलित वोट में फायदा होगा! पहले सोचे की फोन को अपने सर पर पटक लें लेकिन विचार बदले अपना सर अलग पटके फोन अलग पटके ।
फिर कहता हूँ बाबा साहब ने कहा था – Educate, Agitate, Organise। इस क्रम को याद रखिये। अगर आगे बढ़ना है खुद को तमाशा नहीं बनवाना है तो क्रम को याद रखिये।
पुलिस अधिकारी अजय प्रसाद (बिहार)
साभार: Follow Bharat Sukhwl फेसबुक पेज से।
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