सत्ता से बाहर बैठे भेडि़ए दलितवाद के नाम पर देश के संविधान, सुप्रीमकोर्ट और कानून को बंधक बना लेना चाहते हैं! बिहार में जंगलराज के जनक लालू यादव हों, उप्र को अपराध के दलदल में धकेलने वाले अखिलेश यादव हों, नोटों की माला पहनने वाली मायावती हो या फिर इन सभी के कंधे पर सवार होकर भारत को सबसे अधिक लूटने वाली कांग्रेस व उसके युवराज राहुल गांधी हों यह सभी सत्ता की चाभी सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में ढूंढ रहे हैं, जो देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देते हुए मौलिक हितों की बहाली की गारंटी देता है। सत्ता के भूखे भेडि़ए देश के 14 राज्यों में सार्वजनिक संपत्तियों को जलाने से लेकर लोगों की हत्या करने तक पर उतारू हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट में बदलाव करते हुए इस कानून के हो रहे दुरुपयोग पर एक तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। पूर्व में इस कानून के तहत कोई भी एससी/एसटी वर्ग का व्यक्ति किसी पर आरोप लगा देता था कि उसे जातिसूचक शब्द कह कर अपमानित किया है। इसके बाद बिना किसी जांच के आरोपी को गिरफ्तार करने का प्रावधान इस कानून में था। यही नहीं, आरोपी को अग्रीम जमानत भी नहीं मिल सकता था।
एक सर्वेक्षण के अनुसार, 1989 में लागू होने के बाद से ही इस कानून का सर्वाधिक दुरुपयोग हुआ है। राजस्थान में करीब 70 फीसदी ऐसे आरोप जांच में गलत पाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अग्रिम जमानत की व्यवस्था दी है। यही नहीं, 7 दिनों के अंदर शुरूआती जांच पूरा करने का आदेश भी दिया है। अदालत ने कहा है कि दलित एक्ट के तहत गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की अनुमति जरूरी है। सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी के लिए उच्च अधिकारी की अनुमति जरूरी है। यह आदेश पूरी तरह से संविधान में उल्लेखित समानता व मौलिक अधिकारों के आलोक में है, लेकिन देश को बांटने में लगे विपक्षी दल इसे सत्ता प्राप्ति के हथियार के रूप में देख रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट संविधान की व्याख्या करने और उसे लागू कराने का अधिकारी है। संविधान भारत के हर नागरिक को समानता और मौलिक अधिकार की रक्षा करने का एक तरह से वचन देता है। लेकिन पूर्व के एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोपी की समानता और मौलिक अधिकार का पूरी तरह से उल्लंघन हो रहा था, जिसे सुप्रीम कोर्ट कानूनी दायरे में ले आया है। उसने इस कानून को रद्द नहीं किया है, बल्कि इसके हो रहे दुरुपयोग को रोकने के लिए आरोपी की गिरफ्तारी से पूर्व जांच की बाध्यता आरोपित की है। आरोपी को जमानत मिलने के मौलिक अधिकारों का बहाल किया है। क्या देश के किसी नागरिक को बिना जांच किए ही गिरफ्तार करना उसके मौलिक अधिकार का हनन नहीं है
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश आते ही देश को जाति और संप्रदाय में तोड़ने के प्रयास में जुटी कांग्रेस पार्टी और उसके युवरात राहुल गांधी सक्रिय हो गये हैं। उन्हें और उनके भ्रष्टाचारी-जातिवादी-संप्रदायवादी कुनबे को इसमें सत्ता का संजीवनी दिख रहा है। यह काफी हद तक साबित हो गया है कि कांग्रेस ने दुनिया की सबसे बदनाम सर्वे एजेंसी कैंब्रिल एनालिटका की मदद 2019 में सत्ता प्राप्ति के लिए हासिल की है। #cambridgeanalytica ने कांग्रेस के लिए जातीय विखंडन का पूरा रोड मैप तैयार किया है, जिसे आप सबूत के साथ इस वीडियो में देख सकते हैं।
कांग्रेस के पुराने वफादार जाति व संप्रदायवादी लालू, मुलायम, अखिलेश, मायावती, ममता, कम्युनिस्ट पार्टियां और लुटियन पत्रकार व मीडिया गिरोह एकाएक मोदी सरकार पर टूट पड़ा कि वह सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका डाले। ऐसा नहीं करने पर यह देश भर में अराजकता का माहौल बनाने में जुट गये। देश भर में उत्पन्न अराजकता से बचने के लिए भारत सरकार के कानून मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका डाला भी, लेकिन आज 2 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इसे सुनने से तत्काल इनकार कर दिया।
इतना होना था कि भारत बंद के नाम पर बिहार, मप्र, राजस्थान, उप्र में सत्ता के भूखे इन भेडि़यों ने दलितवाद के नाम पर अपने कार्यकर्ताओं को उतार दिया। जेल में बंद लालू के गुंडे हथियार के साथ बिहार में लोगों पर टूट पड़े हैं। खबर लिखे जाने तक मप्र और राजस्थान में छह लोगों को इन सत्ता के भेडि़यों के कार्यकर्ताओं ने मौत के घाट उतार दिया था। साजिश का पता इसी से चलता है कि इसी साल मप्र और राजस्थान में विधानसभा का चुनाव है, जबकि 2019 में जीत के लिए बिहार-उप्र के 120 सीटों को जीतना जरूरी है। यानी सत्ता के लालची गिरोह ने मप्र और राजस्थान में विधानसभा चुनाव जीतने और बिहार-उप्र को पूरी तरह से जातियों में बांटने के लिए लोगों के खून से खेलना शुरु कर दिया है।
2004 में सत्ता प्राप्ति के लिए कांग्रेस ने इसी तरह 2002 में गोधरा के साबरमती एक्सप्रेस में 59 लोगों को जलाकर मार डाला था और फिर सांप्रदायिक विभाजन का ऐसा जहर घुला कि उसकी सत्ता 2004 में बन गयी। कैंब्रिज एनालिटिका की योजना को मूर्त रूप देते हुए, कांग्रेस नेतृत्व वाला यह देश विरोधी गिरोह गुजरात में पटेल आंदोलन, हरियाणा में जाट आंदोलन, राजस्थान में गुर्जर आंदोलन,कर्नाटक में लिंगायत आंदोलन खड़ा करने की कोशिश कर चुका है, जिसे देश ने हाल-फिलहाल देखा ही है।
इसलिए यह देश विरोधी गिरोह इस बार दलितवाद के नाम पर संगठित होकर उतरा है। इस गिरोह में शामिल व जेल में बंद लालू यादव को अपने भ्रष्टाचार से ध्यान बंटाने का मौका मिला हुआ है, अखिलेश व मायावती को गोरखपुर व फूलपुर जीतने के बाद जीत की उम्मीद दिख रही है, ममता बनर्जी अपनी जेहादी नीति चलाने की संभावना तलाश रही है, और पिछले चार साल से लूट में हिस्सेदारी से वंचित ‘पेटिकोट पत्रकार’ गिरोह राहुल गांधी को लाकर फिर से दलाली के धंधे को परवान चढाने की अपेक्षा पाले हुए है। यही कारण है कि यह गिरोह संविधान, सुप्रीम कोर्ट और कानून को तार-तार करते हुए देश में आग लगाने पर तुली हुई। देश की जनता को इन जातिवादी-संप्रदायवादी रक्त-पिपासु गिरोह से सावधान होने की जरूरत है।
भारत बंद विपक्षी दलों की साजिश?
* दलितों की दुर्दशा के लिए बीजेपी-आरएसएस कसूरवार-राहुल गांधी
* बीजेपी-आरएसएस के डीएनए में दलित विरोध-राहुल गांधी
* दलित हित पर सरकार आंच नहीं आने देगी-रविशंकर प्रसाद
* सुप्रीम कोर्ट ने सरकार में पुनर्विचार याचिका दाखिल की-रविशंकर प्रसाद
* सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर लोगों में गुस्सा-रामविलास पासवान
* सुप्रीम कोर्ट के फैसले में मोदी सरकार की भूमिका नहीं-रामविलास पासवान
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