By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept
India Speaks DailyIndia Speaks Daily
  • समाचार
    • देश-विदेश
    • राजनीतिक खबर
    • मुद्दा
    • संसद, न्यायपालिका और नौकरशाही
    • अपराध
    • भ्रष्टाचार
    • जन समस्या
    • English content
  • मीडिया
    • मेनस्ट्रीम जर्नलिज्म
    • सोशल मीडिया
    • फिफ्थ कॉलम
    • फेक न्यूज भंडाफोड़
  • Blog
    • व्यक्तित्व विकास
    • कुछ नया
    • भाषा और साहित्य
    • स्वयंसेवी प्रयास
    • सरकारी प्रयास
    • ग्रामीण भारत
    • कला और संस्कृति
    • पर्यटन
    • नारी जगत
    • स्वस्थ्य भारत
    • विचार
    • पुस्तकें
    • SDeo blog
    • Your Story
  • राजनीतिक विचारधारा
    • अस्मितावाद
    • जातिवाद / अवसरवाद
    • पंचमक्कारवाद
    • व्यक्तिवाद / परिवारवाद
    • राजनीतिक व्यक्तित्व / विचारधारा
    • संघवाद
  • इतिहास
    • स्वर्णिम भारत
    • गुलाम भारत
    • आजाद भारत
    • विश्व इतिहास
    • अनोखा इतिहास
  • धर्म
    • अध्यात्म
    • सनातन हिंदू धर्म
    • पूरब का दर्शन और पंथ
    • परंपरा, पर्व और प्रारब्ध
    • अब्राहम रिलिजन
    • उपदेश एवं उपदेशक
  • पॉप कल्चर
    • इवेंट एंड एक्टिविटी
    • मूवी रिव्यू
    • बॉलीवुड न्यूज़
    • सेलिब्रिटी
    • लाइफ स्टाइल एंड फैशन
    • रिलेशनशिप
    • फूड कल्चर
    • प्रोडक्ट रिव्यू
    • गॉसिप
  • JOIN US
Reading: पुराविद महाभारत का काल ईसापूर्व अधिकतम 900 वर्ष स्वीकारते हैं, जबकि पुराणों के अनुसार ईसा से 3102 वर्ष पूर्व तो कलियुग का ही आरम्भ हुआ है। आखिर ये अंतर क्यों?
Share
Notification
Latest News
अक्षय कपूर जी का हनुमान चालीसा पाठ!
ISD videos
योगिनी एक योद्धा- भाग 5
भाषा और साहित्य
JAINA can help USA in launching ENFORCEABLE “rule-based liberal new global order” only when becomes representative body of Jains in USA
English content
कैसे हुई ओशो की मौत, जहर से या….
उपदेश एवं उपदेशक
ओशो की मृत्यु के 26 साल बाद भी उठ रहे हैं ये 7 सवाल
उपदेश एवं उपदेशक
Aa
Aa
India Speaks DailyIndia Speaks Daily
  • ISD Podcast
  • ISD TV
  • ISD videos
  • JOIN US
  • समाचार
    • देश-विदेश
    • राजनीतिक खबर
    • मुद्दा
    • संसद, न्यायपालिका और नौकरशाही
    • अपराध
    • भ्रष्टाचार
    • जन समस्या
    • English content
  • मीडिया
    • मेनस्ट्रीम जर्नलिज्म
    • सोशल मीडिया
    • फिफ्थ कॉलम
    • फेक न्यूज भंडाफोड़
  • Blog
    • व्यक्तित्व विकास
    • कुछ नया
    • भाषा और साहित्य
    • स्वयंसेवी प्रयास
    • सरकारी प्रयास
    • ग्रामीण भारत
    • कला और संस्कृति
    • पर्यटन
    • नारी जगत
    • स्वस्थ्य भारत
    • विचार
    • पुस्तकें
    • SDeo blog
    • Your Story
  • राजनीतिक विचारधारा
    • अस्मितावाद
    • जातिवाद / अवसरवाद
    • पंचमक्कारवाद
    • व्यक्तिवाद / परिवारवाद
    • राजनीतिक व्यक्तित्व / विचारधारा
    • संघवाद
  • इतिहास
    • स्वर्णिम भारत
    • गुलाम भारत
    • आजाद भारत
    • विश्व इतिहास
    • अनोखा इतिहास
  • धर्म
    • अध्यात्म
    • सनातन हिंदू धर्म
    • पूरब का दर्शन और पंथ
    • परंपरा, पर्व और प्रारब्ध
    • अब्राहम रिलिजन
    • उपदेश एवं उपदेशक
  • पॉप कल्चर
    • इवेंट एंड एक्टिविटी
    • मूवी रिव्यू
    • बॉलीवुड न्यूज़
    • सेलिब्रिटी
    • लाइफ स्टाइल एंड फैशन
    • रिलेशनशिप
    • फूड कल्चर
    • प्रोडक्ट रिव्यू
    • गॉसिप
  • JOIN US
Have an existing account? Sign In
Follow US
  • Website Design & Developed By: WebNet Creatives
© 2022 Foxiz News Network. Ruby Design Company. All Rights Reserved.
India Speaks Daily > Blog > इतिहास > स्वर्णिम भारत > पुराविद महाभारत का काल ईसापूर्व अधिकतम 900 वर्ष स्वीकारते हैं, जबकि पुराणों के अनुसार ईसा से 3102 वर्ष पूर्व तो कलियुग का ही आरम्भ हुआ है। आखिर ये अंतर क्यों?
स्वर्णिम भारत

पुराविद महाभारत का काल ईसापूर्व अधिकतम 900 वर्ष स्वीकारते हैं, जबकि पुराणों के अनुसार ईसा से 3102 वर्ष पूर्व तो कलियुग का ही आरम्भ हुआ है। आखिर ये अंतर क्यों?

Courtesy Desk
Last updated: 2018/06/28 at 11:31 AM
By Courtesy Desk 414 Views 10 Min Read
Share
10 Min Read
Sanauli excavation Dr Dharmveer Sharma
SHARE

बीते दिनों उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का सनौली गांव पुरातात्विक खोजों के कारण चर्चा में रहा। डॉ. धर्मवीर शर्मा ने सनौली का उत्खनन कराकर सबसे पहले इसे विश्व के सम्मुख रखा था। किन्तु तब की यूपीए सरकार व उनके वामपंथी विचारकों ने डॉ. शर्मा पर भाजपा, संघ व हिन्दुत्व का होने तथा उत्खनन परिणामों को हिन्दुत्व की स्थापना का प्रयास बताते हुए इस उत्खनन को ही बंद करा दिया था। ऐसे में सनौली उत्खनन की नवीन उपलब्धियों से वे खासे प्रसन्न हैं। उनका मानना है कि सनौली उत्खनन के परिणाम महाभारतकालीन ही नहीं, हमारी वैदिककालीन सभ्यता को भी पुष्ट आधार देने वाले हैं। सनौली की वर्तमान खोजों पर उनकी प्रतिक्रया जानने के लिए हिन्दुस्थान समाचार संवाददाता कृष्णप्रभाकर उपाध्याय ने उनसे सनौली सहित पुरातत्व के विभिन्न बिन्दुओं पर जो चर्चा की, प्रस्तुत हैं बातचीत के अंश-

आजकल सनौली उत्खनन की बहुत चर्चा है। इस उत्खनन में ऐसा क्या है तथा इसका महत्व क्या है?
हमारी वैदिक व पौराणिक संस्कृति को गड़रिये के गीत कहकर नकारने वालों के लिए सनौली एक दर्पण के समान है। वर्तमान उत्खनन में सनौली में मिले 2-3 रथों के अवशेषों के अतिरिक्त शेष सामग्री मेरे उत्खनन के समय भी मिल चुकी है। अब रथ के अवशेष मिलने से हमारी सभ्यता के साहित्यिक वर्णनों की भौतिक सच्चाई और स्पष्ट रूप से सामने आयी है।

सनौली का पहला उत्खनन कब हुआ तथा इसके क्या परिणाम रहे?

सनौली उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में है। यहां मैंने 2007 में उत्खनन कराया था। सनौली में मेरा सबसे बड़ा योगदान वैदिक काल के अन्त्येष्टि के वे तरीके थे, जो यहां साक्ष्य के रूप में मिले हैं। मेरे उत्खनन के समय सनौली में मिली 117 कब्रो में 12 पूर्वाभिमुख थीं। अर्थात उनका शवदाह किया गया था। जबकि शेष दक्षिणाभिमुख थीं। इसका अर्थ है कि उन्हें दफन किया गया था। सनौली उत्खनन में वर्तमान में मिले पुरावशेषों में रथ के अतिरिक्त शेष सामग्री जैसे- विशिष्ट शैली के मृदभांड, ताम्रायुध, कब्रें, आभूषण आदि मेरे समय में भी पर्याप्त मात्रा में मिल चुके थे। इस बार की उपलब्धि ताम्र जड़ित रथ का मिलना है। मेरे समय में एक कब्र तो ऐसी मिली थी, जिसमें दफन लड़की के हाथों में सोने के कड़े थे। वह राजकुमारी जैसी प्रतीत होती थी। यहां कुछ शवों को दक्षिणाभिमुख करके दफन किया गया है, तो कुछ को पूर्वाभिमुख कर जलाया गया है। यह जलाने की परम्परा, दफन करने की परम्परा वैदिक काल में भी थी। एक परम्परा के लोग शवों को जलाते थे, तो दूसरी परम्परा के लोग उन्हें दफनाते थे। कुछ लोग शवों को ऊपर खुला छोड़ देते थे, पक्षियों के खाने के लिए। ये सारी परम्पराएं मुझे सनौली में मिली हैं।

More Read

वीरांगना रानी रुद्रमादेवी की वीरगाथा
Ambedkar: A loyal sepoy of Britishers and his anti-India face
क्या सावित्री बाई फुले पहली शिक्षिका थीं? क्या यह भारत के समृद्ध स्त्री इतिहास के साथ छल नहीं है?
लचित बरफुकन: वो असमिया योद्धा जिसके सैनिक राक्षस बनकर मुग़लों से लड़े

सनौली में आज तक -चाहे हड़प्पा, चाहे मोहनजोदड़ो में अन्त्येष्टि स्थल मिला हो, अथवा दूसरे उत्खनन हुए हों, जैसे- राखीगढ़ी या धौलावीरा हो- एक जैसी समानता मिलती है। कमाल यह है कि जहां-जहां ये अन्त्येष्टि स्थल मिलते हैं -जिन्हें हड़प्पा कहते हैं, उनके दफन करने के तरीके से वह निश्चितरूप से वेद में वर्णित तरीके (या और स्पष्ट करूं तो ऋगवेद के पुरुष सूक्त में बताए तरीके) के अनुसार ही हैं।

सनौली में वर्तमान उत्खनन में पुराविदों को जो पुरावशेष मिले हैं, उन्हें महाभारतकालीन कहा जा रहा है। आप इससे कितना सहमत हैं?

सनौली महाभारत काल का ही नहीं, भारत की वैदिक कालीन सभ्यता का भी जीवंत उदाहरण है। महाभारत को जो मिथक मानते हैं उन्हें इस खोज से सबक लेने की आवश्यकता है। महाभारत युद्ध की घटना छोटे-मोटे युद्ध का विवरण नहीं है। मेरा मानना है कि सनौली इन वीरों के अन्त्येष्टि का प्रमुख स्थल रहा है। अगर पूरे सनौली के उत्खनन कराया जाये, तो ऐसे हजारों-लाखों अवशेष मिलें, तो आश्चर्य न होगा।

साथ ही दूसरी खोज यह भी करनी चाहिए कि क्या सनौली कोई ऐसा पवित्र स्थल था, जहां अन्त्येष्टि करना शुभ माना जाता हो। मुझे इसकी काफी संभावना लगती है। वर्तमान में सोनीपत जनपद में बहनेवाली यमुना के बाबरकालीन साक्ष्य ही यह बताते हैं कि उस समय यह सोनीपत के सामने से बहा करती थी। ऐसे में असंभव नहीं कि महाभारतकाल में यमुना सनौली के पास से बहती हो। यह भी संभव है कि सूकरक्षेत्र के वर्तमान नगर सोरों व गया की भांति का कोई तीर्थस्थल रहा हो।

सनौली उत्खनन की उपलब्धियों को कैसे व्याख्यायित करेंगे?

सच तो यह है कि इस कुरू राज्य की गंगा-यमुना के मध्य की सभ्यता के अवशेष- चाहे वह मृद्भांड हों, चाहे कल्चर, चाहे हथियार हों, चाहे ताम्रायुध सभी अपने आप में विलक्षण हैं। ऐसे अवशेष विश्व में और कहीं नहीं मिलते। वास्तव में यही वैदिक सभ्यता है। हां, आर्यावर्त की सीमाओं के पुरावशेषों यथा- हुलासखेड़ा, आलमगीरपुर, अतरंजीखेड़ा आदि में इनकी प्रचुरता है।

आपके अनुसार सनौली पर अभी और क्या किये जाने की आवश्यकता है?

हमारी सभ्यता व संस्कृति को पाश्चात्य मान्यताओं, धारणाओं व वामपंथियों के वैचारिक पूर्वाग्रह ने बर्बाद किया है। ऐसे में पहली आवश्यकता तो इन विचारधाराओं से अलग हटकर इन अनुसंधानों व उत्खनन परिणामों की भारतीय साहित्य से संगति किये जाने की आवश्यकता है।

आजकल आप सरस्वती नदी के प्रकल्प से जुड़े हैं। जबकि अनेक विद्वान इसे अनावश्यक कसरत करार दे रहे हैं।

कोई दुविधा नहीं है। ऋग्वेद व उसके नदी सूत्र पढ़ें। उसमें सरस्वती की स्थिति के बारे में स्पष्ट है। गंगा, यमुना, सरस्वती, शतुद्रा आदि नदियों के क्रम में यमुना के बाद तथा शतुद्रा से पूर्व सदानीरा सरस्वती का नाम है। यह आदि बद्री से निकलती थी। हरियाणा के कुरुक्षेत्र के पास से पंजाब के जींद होती हुई वर्तमान पाकिस्तान के क्षेत्रों से गुजरती गुजरात में कच्छ के रण में विलीन हो जाती थी।

पर इसे वैदिक सभ्यता क्यों कहा जाए?

वैदिक सभ्यता इसलिए कहा जाए कि सरस्वती के किनारे आज जो प्राचीन पुरास्थल हैं, उन्हें देखकर कोई शक नहीं रहता। चाहे वो गुजरात हो, हरियाणा हो, चाहे राजस्थान- सभी में एक लय के साथ वह सारी चीजें उपलब्ध हैं। इसके अलावा गंगा-जमुना के दोआब में ही नहीं, ऋग्वेद में ऋषियों ने जिन 21 नदियों का उल्लेख किया है, उस सम्पूर्ण क्षेत्र में भी वैदिक अवशेष उपलब्ध हैं।

किन्तु अनेक इतिहासकार व विद्वान आपकी इन खोजों का विरोध कर रहे हैं। इस विरोध के कारण क्या हैं?

विरोध का कारण इनकी अंग्रेजी मानसिकता है। विलियम जोन्स जब कलकत्ता आये, तो भारतीय पुरातत्व में उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने बहुत से संस्कृत व अन्य ग्रन्थों के अनुवाद कराए। किन्तु वे एक निश्चित दिशा में थे। इसी कारण वे भारतीय इतिहास का सही कलेवर प्रकट नहीं कर पाए। इसे अब भारत ही नहीं विश्व के विद्वानों को मिलकर खोजना है कि क्या-क्या त्रुटि अंग्रेजों ने भारतीय इतिहास में की जिसकी वजह से वे हमारे वेदों को गड़रियों के गीत कहने लगे। रामायण-महाभारत को काल्पनिक बताते रहे। अंग्रेजों के उपरान्त जो उनके दत्तक पुत्र हैं, उन्होंने भी इस इतिहास को अंग्रेजों से कम दूषित नहीं किया। मैं इन लोगों की भर्त्सना करना चाहता हूं कि इन्होंने कभी भी सही दृष्टिकोण से भारतीय इतिहास को नहीं देखा।

क्या भारतीय इतिहास व पुरातात्विक खोजों के पुनर्पाठ की आवश्यकता है?

नि:सन्देह पुरानी खोजों को पुन: परखने की आवश्यकता है। वैसे अंग्रेजों ने कई चीजों में बहुमूल्य योगदान दिया है। उन्होंने ब्राह्मी लिपि का लेख जो तब तक पढ़ने में नहीं आ रहा था, उन्होंने पढ़ा। अभी हड़प्पन स्क्रिप्ट पढ़ने पर और भी तथ्य प्रकाश में आएंगे। अब जो नया डाटा, नये साक्ष्य सरस्वती ही नहीं भारत के अनेक भागों से आ रहे हैं, वे पूर्ण रूप से स्पष्ट करते हैं कि भारतीय इतिहास को पुन: देखने व व्याख्यायित करने की आवश्यकता है।

पुरातत्वविदों के कालनिर्धारण तथा परम्परागत व पौराणिक काल निर्धारण में बहुत बड़ा अन्तर है। उदाहरण के लिए पुराविद महाभारत का काल ईसापूर्व अधिकतम 900 वर्ष स्वीकारते हैं, जबकि पुराणों के अनुसार ईसा से 3102 वर्ष पूर्व तो कलियुग का ही आरम्भ हुआ है। आखिर ये अंतर क्यों? मैं स्वीकार करता हूं कि इस दिशा में बिल्कुल भी काम नहीं हुआ है। हमारे प्राचीन राजाओं ने जो संवत प्रारम्भ किये- जैसे विक्रम संवत, शक संवत, युधिष्ठिर संवत, कलि संवत आदि। या सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग आदि युग। ये केवल कल्पना नहीं, युगमापन का तरीका हैं। इन्हें जांचने की, पुन: पढ़ने की आवश्यकता है।

साभार: http://www.yugwarta.com/

Keywords: Sonauli excavation, sonauli found chariot, Dr. Dharmaveer Sharma, sonauli of up, Vedic Culture, indus valley civilization, सनौली खुदाई, सनौली, डॉ. धर्मवीर शर्मा, सिंधु घाटी सभ्यता

Related

TAGGED: Ancient india, History
Courtesy Desk June 28, 2018
Share this Article
Facebook Twitter Whatsapp Whatsapp Telegram Print
Previous Article पैगंबर मोहम्मद का जब जन्म भी नहीं हुआ था, तब से अमरनाथ गुफा में हो रही है पूजा-अर्चना! इसलिए इस झूठ को नकारिए कि अमरनाथ गुफा की खोज एक मुसलिम ने की थी!
Next Article भारत का प्राचीन इतिहास काफी गौरवशाली है! वैदिक काल में घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथों का वर्णन मिलता है!
Leave a comment Leave a comment

Share your Comment Cancel reply

Stay Connected

Facebook Like
Twitter Follow
Instagram Follow
Youtube Subscribe
Telegram Follow
- Advertisement -
Ad image

Latest News

अक्षय कपूर जी का हनुमान चालीसा पाठ!
योगिनी एक योद्धा- भाग 5
JAINA can help USA in launching ENFORCEABLE “rule-based liberal new global order” only when becomes representative body of Jains in USA
कैसे हुई ओशो की मौत, जहर से या….

You Might Also Like

नारी जगतस्वर्णिम भारत

वीरांगना रानी रुद्रमादेवी की वीरगाथा

February 27, 2023
गुलाम भारत

Ambedkar: A loyal sepoy of Britishers and his anti-India face

January 7, 2023
अनोखा इतिहास

क्या सावित्री बाई फुले पहली शिक्षिका थीं? क्या यह भारत के समृद्ध स्त्री इतिहास के साथ छल नहीं है?

January 5, 2023
गुलाम भारत

लचित बरफुकन: वो असमिया योद्धा जिसके सैनिक राक्षस बनकर मुग़लों से लड़े

November 25, 2022
//

India Speaks Daily is a leading Views portal in Bharat, motivating and influencing thousands of Sanatanis, and the number is rising.

Popular Categories

  • ISD Podcast
  • ISD TV
  • ISD videos
  • JOIN US

Quick Links

  • Refund & Cancellation Policy
  • Privacy Policy
  • Advertise Contact
  • Terms of Service
  • Advertise With ISD
- Download App -
Ad image

Copyright © 2015 - 2023 - Kapot Media Network LLP.All Rights Reserved.

Removed from reading list

Undo
Welcome Back!

Sign in to your account

Register Lost your password?