विपुल रेगे।हिन्दी फिल्म उद्योग खाई के मुहाने पर खड़ा है। कोरोना की पहली लहर ने बॉलीवुड को 700 करोड़ का झटका दिया था। इस वर्ष कोरोना की दूसरी लहर ने बॉलीवुड को पूरी तरह क्रेश कर दिया है। आज की तारीख में ये नुकसान बढ़कर 1000 करोड़ से अधिक का हो चुका है। एक ओर उसे दर्शकों का गुस्सा अब तक झेलना पड़ रहा है और दूसरी ओर कोरोना के चलते उसकी नींव हिलने लगी है। फिल्मों का प्रदर्शन लगातार टाला जा रहा है क्योंकि थियेटर में दर्शक ही नहीं है।
सलमान खान ने अपनी बिग बजट फिल्म राधे का प्रदर्शन टाल दिया है। इससे पहले रोहित शेट्टी ने भी अपनी फिल्म सूर्यवंशी की रिलीज टालने की घोषणा कर दी थी। प्रदर्शन टालते रहने से फिल्म का बजट लगातार बढ़ता रहता है। पोस्ट प्रोडक्शन की प्रक्रिया पूरी होते ही निर्माता को फिल्म प्रदर्शित करने की जल्दी होती है क्योंकि लागत पर ब्याज लगातार चढ़ता रहता है।
और यहाँ तो बड़े प्रोडक्शन हाउसेज की फ़िल्में एक साल से रुकी पड़ी है। शूटिंग का काम ठप हो जाने से फिल्म उद्योग से जुड़े पांच लाख लोग प्रभावित हुए हैं। इनमे जूनियर आर्टिस्ट, मेकअप आर्टिस्ट, सेट डिजाइनर, सेट बनाने वाले कारीगर, बैकग्राउंड डांसर आदि शामिल है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने फिल्म उद्योग को सहायता देने के नाम पर कोरोना काल में शूटिंग की इज़ाज़त दे दी।
शूटिंग की आज्ञा देने का परिणाम सैकड़ों कलाकारों के संक्रमित होने के रुप में सामने आया। मुख्यमंत्री से फिल्म उद्योग अपेक्षा कर रहा था कि वे मनोरंजन कर में कुछ कमी करने के बारे में सोचेंगे ताकि फिल्म उद्योग कुछ तो उबर सके। अन्य भाषाई फिल्म उद्योगों को वहां की राज्य सरकारों ने राहत देना शुरु भी कर दिया है।
केरल की पिनाराई विजयन सरकार ने सिनेमाघरों को इस साल मार्च तक मनोरंजन कर का भुगतान करने से छूट दी है। आंध्र प्रदेश सरकार ने फिल्म इंडस्ट्री फिल्म थिएटर मालिकों और तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री के लिए राहत पैकेज का ऐलान किया। ऐसे राहत पैकेज की आवश्यकता बॉलीवुड के उस वर्ग को है, जो दिहाड़ी पर कार्य कर रहा था।
सलमान खान जैसे सितारों को तो कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। उनका आर्थिक आधार बहुत मजबूत है लेकिन छोटे कलाकारों का क्या होगा। उन बी-टॉउन फिल्म निर्देशकों का क्या होगा, जो कम बजट में नए कलाकारों को लेकर अच्छी फ़िल्में बना रहे थे। बड़े सितारों के प्रति गुस्सा और नेपोटिज्म के पटरी घृणा ने फिल्म उद्योग से जुड़े इस वर्ग को लगभग समाप्त कर दिया है।
जबकि इस मामले में वे कहीं से भी दोषी नहीं माने जा सकते हैं। हालांकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के सरोकार केवल सेलेब्रेटीज वर्ग से रहता है। वे उनसे मिलते हैं, उनकी समस्याएं सुनते हैं लेकिन एक वर्ग को उन्होंने अनदेखा ही कर दिया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को ही दोष क्यों दिया जाए, ऐसे बहुत से हिन्दी पट्टी वाले राज्य हैं, जहाँ मनोरंजन कर अधिक होने का बोझ टिकट खरीदने वाले दर्शक को उठाना पड़ता है।
इस मामले में केंद्र सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्री को एक सार्थक पहल करने की आवश्यकता है। विधाता का खेल देखो, जो दर्शक मनोरंजन कर, फिल्म निर्माता, फिल्म वितरक, कलाकार की फीस, छोटे कलाकारों का भुगतान एक टिकट खरीद कर वहन करता था, आज वह परिदृश्य से अदृश्य हो चुका है।
पॉपकॉर्न की मशीनें उदास बैठी हैं, वीरान सीटें, सुनसान पार्किंग मन में हूक उठाने लगे हैं। हिन्दी सिनेमा मनोरंजन देता है, वह लाखों लोगों को रोजगार देता है। कोरोना ने उसकी कमर तोड़ी और दर्शक ने उसकी टांगे ही तोड़ दी। अब इसमें केंद्र की दखल अत्यंत आवश्यक हो चला है।