डॉ विनीता अवस्थी। भारत से पाकिस्तान जाती ‘चंद्रभागा'( चिनाब) नदी के किनारे जम्मू राज्य मे जाने कितने ही सिद्ध देवस्थान हैं जो कि हम जनसाधारण लोग नहीं जानते। हम अपने जीवन पर एक नजर डालें तो ध्यान से चिंतन करने पर हमें ही आभास होगा किसी सिद्ध देव स्थान के दर्शन कुछ आकस्मिक या अनियोजित यात्रा संयोग से अवश्य जुड़े होते हैं। सीधी सी बात है यह हम निर्धारित नहीं करते कि हम देव दर्शन को जाएंगे अपितु स्वयं देव निर्धारण करते हैं कि वह हमें कब आने की आज्ञा देंगे। ऐसी ही एक संध्या पर अचानक फोन पर कॉल आया उठाने पर जिन से बातचीत हुई वे अत्यंत विदुषी व सम्माननीय महिला थी और कई सम्मानित स्कूलों में प्राचार्या रह चुकी थी
उन्होंने बुलाया व उनके पास जाने से पता लगा कि उनके आवास से कुछ दूरी पर चंद्रभागा नदी के किनारे एक अत्यंत प्राचीन मंदिर है। जोकि कई वर्षों पहले खुदाई में मिला था यह सेना के कैंट स्थान पर स्थित था जो कि वैसे ही बाहर के लोगों के लिए निषेध था उन्होंने ही बातों -बातों में मुझसे पूछा क्या मैंने कैंट में स्थित प्राचीन मंदिर देखा है जो की खुदाई में मिला था मेरे अनभिज्ञता प्रकट करने पर उन्होंने कहा कि यह यहां का बहुत ही प्राचीन व मान्यता वाला मंदिर है यह दैव योग था मैं महादेव की लीला के समक्ष नतमस्तक हो गई
अर्थात उन्होंने दर्शनों की आज्ञा दे दी थी। एक मोड़ से लगभग 100 कदम चलकर हम एक मंदिर के द्वार पर पहुंचे, और ठीक सामने सीढ़ियों से उतरकर चंद्रभागा नदी थी हम दाएं ओर वाले मंदिर द्वार से आगे बढ़े वहां बहुत ही सीमित निर्माण था सामने खुले अहाते में श्री नंदीश्वर महाराज स्थापित थे जो महादेव के दर्शन अनवरत रूप से सदियों से कर रहे थे सामने कुछ सीढ़ियां उतरकर एक छोटा सा मंदिर था जहां स्वयंभू शिवलिंग के रूप में महादेव अपनी पूर्ण दिव्यता के साथ विराजित थे।
अलौकिक ऊर्जा का प्रवाह चमत्कृत कर गया महादेव के दाई ओर श्री गणेश जी मूर्ति थी व बायी ओर कोने में मां पार्वती करबद्ध रूप में स्थापित थी। मां की मूर्ति देखकर ही उसकी प्राचीनता का अनुभव होता था शिवलिंग का स्वरूप भी अद्भुत था जो विभक्त था ठीक ऊपर उसी स्थान पर महादेव के ऊपर कलश की जलधारा पड़ रही थी। हमें बताया गया की खुदाई में मंदिर इसी रूप में मिला था। मंदिर के सामने एक महान संत की समाधि बनी थी जो पुजारी जी वहां की देखभाल कर रहे थे उन्होंने बताया कि यह “श्री सिद्ध खिदर पीर जी “की समाधि है जोकि गोरख नाथ पंथ के एक सिद्ध योगी थे उन्होंने यहां जीवित ही समाधि ली थी। प्रभु के अनन्य भक्त संभवतः इच्छा मृत्यु का वरदान पा जाते हैं।
इसी कारण मंदिर का नाम भी’ शिव मंदिर( श्री खिदर पीर) है मंदिर के पुजारी श्री दीपक जी ने बताया की श्री खिदर पीर बाबा गोरख नाथ पंथ से थे वह एक अखंड ब्रह्मचारी व अनन्य योगी थे इसी कारण महिलाओं का समाधि छूना वर्जित था अपितु वह कुछ दूर से पूजा पाठ कर सकती हैं ऐसे स्थानों की कुछ विशेष मर्यादा होती है।
पुजारी जी ने बताया कि वह बहुत ऊंचे सिद्ध योगी थे तथा उन्होंने अपनी साधना से नदी के उस भाग को शांत कर दिया था जो की मंदिर के पास से बहता था तथा जिससे उनकी साधना में व्यवधान पढ़ता था तथा एक बार एक भयानक ओलावृष्टि से उन्होंने वहां की प्रजा की रक्षा की थी तब तत्कालीन राजा ने उन्हें सेवा भाव से मंदिर के आसपास की भूमि दान में दी थी। गोरखनाथ पंथ की महिमा मैंने’ राज योगी’ किताब में पढ़ी थी उनकी साधना रोमांचित व अभिभूत करने वाली थी तभी से गोरख पंथी योगियों के बारे में पता चला था हृदय में अपार का भाव जागृत हो गया था।
मंदिर के परिसर में एक पीपल के वृक्ष के नीचे जो मूर्तियां रखी थी वह भी उत्खनन में मिली थी वह कितने हजारों साल प्राचीन है इसका अनुमान लगाना भी कठिन है , इसी अकनूर शहर में जो भी उत्खनन हुआ है वह लगभग 2 से 3 हजार साल प्राचीन मिला हैऔर यह मंदिर उससे भी अधिक प्राचीन है। हमारे सनातन धर्म अनुसार नदी के तट पर जो मंदिर अथवा शिवालय स्थापित होते हैं वह श्रेष्ठ तथा महत्वपूर्ण माने जाते हैं। मंदिर परिसर में श्री दुर्गा मां मंदिर, श्री हनुमान मंदिर, श्री शनिदेव मंदिर व कुलदेवी मंदिर भी हैं।
एक निर्माणाधीन भाग देखा पूछने पर पता चला कि गोरखनाथ पंथ के योगी जी ने धूनी स्थापित की है वे पुजारी जी के गुरु थे उन्होंने उनको दीक्षित किया था यह उनकी कठिन साधना का प्रारंभ था वैसे भी गुरु के बिना ज्ञान और मुक्ति असंभव है। शिवालय के सामने श्री नंदी महाराज के कान में प्रार्थना कर कोटि-कोटि नमन किया इतने दुर्लभ देवी स्थान पर आने की अनुमति मिली। इसी मंदिर से 50 कदम की दूरी पर एक और मंदिर अवशेष मिले थे जोकि संरक्षित कर दिए गए हैं एक अवशेष तो मंदिर के गुंबद का आकार का है नीचे खुदाई करी जाए तो एक और मंदिर मिलने की संभावना है परंतु जब प्रभु की इच्छा होगी वह स्वयं ही प्रेरित कर प्रकट हो जाएंगे।
इस पवित्र मंदिर की बहुत मान्यता है स्वयं प्रभु जागृत हैं यहां जिन लोगों से भी बात करी उनकी चमत्कारिक रूप से इच्छाएं या दुष्कर कार्य पूरे होने की बात पता चली। ईश्वर की इच्छा है कि हमारे पाठकों को मंदिर के बारे में पता चले वैसे भी गिने-चुने लोग ही यहां पहुंच पाते हैं हम सभी को सदा महादेव का सानिध्य व कृपा मिलें ऐसी शुभेक्षा के साथ ।।हर हर महादेव।।
।। ईति।।