अर्चना कुमारी । उमर खालिद को किसी भी हाल में जमानत नहीं दिया जाना चाहिए। उनके पास वह गवाह भी है, जिसने बताया कि आरोपी ने कहा था कि मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र बनाना है। उमर खालिद समेत दूसरे आरोपियों की जमानत याचिका का विरोध करते हुए इंग्लिश की तरफ से कहा गया कि इस मामले में टेरर फंडिंग हुई है। इस मामले के आरोपी ताहिर हुसैन ने काले धन को सफेद करने का काम किया।
अब मामले की अगली सुनवाई 15 फरवरी को होगी। सुनवाई के दौरान स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर अमित प्रसाद ने पहले की दलीलों के बारे में कोर्ट को संक्षेप में बताया। उन्होंने कहा कि दिल्ली हिंसा के लिए टेरर फंडिंग की गई। मुख्य आरोपी ताहिर हुसैन ने काले धन को हिंसा फैलाने के लिए सफेद किया। अदालत में प्रवर्तन निदेशालय का मामला लंबित है ,जिसमें ताहिर हुसैन मुख्य आरोपी है।
उन्होंने एक गवाह विक्टर का मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गए बयान को पढ़ते हुए कहा कि हिंसा के लिए धन का उपयोग किया गया। एक गवाह रॉबर्ट ने मीरान हैदर के खिलाफ और आकिब ने शिफा उर रहमान के खिलाफ बयान दर्ज कराया। इस बीच जमानत याचिका की कार्यवाही सुन रहे कड़कड़डूमा कोर्ट ने सुनवाई को कवर कर रहे मीडियाकर्मियों से कहा कि वे सुनवाई की रिपोर्टिंग करें लेकिन स्क्रीन शॉट न लें।
उन्हें सोशल मीडिया या वेबसाइट पर शेयर बिल्कुल नहीं करें। वैसे जैसे ही सुनवाई शुरू हुई वकील रेबेका जॉन ने कहा कि दाे फरवरी को सुनवाई के दौरान स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर अमित प्रसाद वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान जो शेयर कर रहे थे, उसका कुछ मीडियाकर्मियों ने स्क्रीनशॉट लेकर उसे सोशल मीडिया और वेबसाइट पर डाल दिया। इस पर कोर्ट ने मीडियाकर्मियों से कहा कि आप सुनवाई को कवर करें, लेकिन शेयर की गई सामग्री का स्क्रीन शॉट लेकर उसे सोशल मीडिया या वेबसाईट पर ना डालें।
गौरतलब है कि इसी सुनवाई के दौरान दिल्ली दंगों की तुलना अमेरिका के 9/11 आतंकी हमलों से भी की गई थी और उमर खालिद पर साजिश रचने के लिए बैठक आयोजित करने और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन स्थल की निगरानी करने का आरोप लगाया। पुलिस की तरफ से दलील दिया गया की जैसे अमेरिका में हुए 9/11 हमलों के पहले सभी आतंकियों को बकायदा ट्रेनिंग दी गई थी और हमले को अंजाम देने से पहले सभी अपने ठिकाने पर पहुंच गए थे। ठीक ऐसा ही दिल्ली दंगों के दौरान हुआ ।
बाहरी तौर पर दिखावे के लिए आंदोलन को धर्मनिरपेक्ष बताया गया, जबकि आंदोलन पूर्व नियोजित था। स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर अमित प्रसाद ने कोर्ट में बताया कि 2020 के विरोध प्रदर्शन का मुद्दा सीएए या एनआरसी नहीं बल्कि सरकार को शर्मिंदा करने और ऐसे कदम उठाने का था कि यह अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में आ जाए